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Chaitra Navratri 2025: हरियाणा के इस शक्तिपीठ मंदिर में हुआ था भगवान कृष्ण का मुंडन, जानें क्या है इसका इतिहास

Kurukahetra News: कुरुक्षेत्र में हरियाणा का एक मात्र शक्तिपीठ मां भद्रकाली मंदिर, जहां घोड़े चढ़ाएं हैं. यह मां सती का दाए पैर का टखना (घुटने के नीचे का भाग) विराजमान है. पांडवों ने भी विजय के लिए पूजा यहां पूजा की थी. ऐसा मान्यता है कि कुरुक्षेत्र के इस मंदिर में मांगी गई आपकी मन्नत पूरी होती है. 

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Chaitra Navratri 2025: हरियाणा के इस शक्तिपीठ मंदिर में हुआ था भगवान कृष्ण का मुंडन, जानें क्या है इसका इतिहास
Zee Media Bureau|Updated: Mar 29, 2025, 07:20 PM IST
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Kurukahetra News: कुरुक्षेत्र के झांसा रोड स्थित है हरियाणा के एकमात्र शक्तिपीठ मां भद्रकाली मंदिर में नवरात्री से पहले ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ है. श्रद्धालु मां भद्रकाली मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए पहुंचने लगे हैं. 

शक्तिपीठ मां भद्रकाली मंदिर में गिरा था मां सती के दाए पैर का टखना
बता दें कि कुरुक्षेत्र में हरियाणा का एक मात्र शक्तिपीठ मां भद्रकाली मंदिर, जहां घोड़े चढ़ाएं हैं. यह मां सती का दाए पैर का टखना (घुटने के नीचे का भाग) विराजमान है. भगवान कृष्ण और उनके भाई बलराम का इस मंदिर में मुंडन हुआ था. इसके अलावा पांडवों ने भी विजय के लिए पूजा यहां पूजा की थी. ऐसा मान्यता है कि कुरुक्षेत्र के इस मंदिर में मांगी गई आपकी मन्नत पूरी होती है तो यहां घोड़े चढ़ाने की प्रथा है. 

कुरुक्षेत्र के शक्तिपीठ मां भद्रकाली मंदिर का इतिहास

शक्तिपीठ मां भद्रकाली मंदिर में हुआ था श्रीकृष्णा का मुंडन
शक्तिपीठ मंदिर के पीठाअध्यक्ष सतपाल शर्मा ने कहा कि मंदिर के इतिहास की बात की जाए तो पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान शिव मां सती के शरीर को लेकर भ्रमाण्ड के चक्कर लगा रहे थे, तब भगवान विष्णु ने अपने दिव्य सुदर्शन चक्र से मां सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया था. जो विभिन्न स्थानों पर जाकर गिरे. इनमे से मां सती का दाए पैर का टखना (घुटने के नीचे का भाग) यहां पर गिरा था. इसका महत्व तब और बढ़ जाता है, जब इसमें भगवान श्रीकृष्ण का जिक्र शामिल हो जाता है. कहा जाता है कि भद्रकाली शक्तिपीठ मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण और बलराम का मुंडन हुआ था.

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महाभारत का युद्ध जीतने पर पांडवों ने घोड़े किए थे दान
यह भी माना जाता है कि महाभारत युद्ध में विजय का आशीर्वाद लेने पांडव श्रीकृष्ण के साथ यहां आए थे. मन्नत पूरी होने के बाद पांडवों ने मंदिर में आकर घोड़े दान किए थे. तब से यहां घोड़े दान करने की प्रथा चली आ रही है. पहले यह जीवित घोड़े चढ़ाए जाते थे, फिर यहां भक्तों द्वारा सोने-चांदी के घोड़े चढ़ाए जाने लगे. अब यहां लोग मिट्टी के घोड़े चढ़ाते है. 

कैसे बने ये शक्तिपीठ: जब महादेव शिवजी की पत्नी सती
माता सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई, तब उसी यज्ञ में कूदकर वह भस्म हो गईं. शिवजी को जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया. बाद में शिवजी अपनी पत्नी सती की जली हुई देह को लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे. जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गीरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए. हालांकि पौराणिक आख्यायिका के अनुसार देवी के देह के अंगों से इन शक्तिपीठों की उत्पत्ति हुई, जो भगवान विष्णु के चक्र से विच्छिन्न होकर 108 स्थलों पर गिरे थे, जिनमें में 51 का खास महत्व है.

कहां हैं कुरुक्षेत्र का शक्तिपीठ मां भद्रकाली ?
इस पीठ में भद्रकाली विराजमान है और गणों के रूप में दक्षिणमुखी हनुमान, गणेश तथा भैरव विद्यमान हैं. यहीं स्थाणु शिव का अद्भुत शिवलिंग भी है, जिसमें प्राकृतिक रूप से ललाट, तिलक एवं सर्प अंकित हैं. यह शक्तिपीठ हरियाणा के कुरुक्षेत्र जंक्शन तथा थानेश्वर रेलवे स्टेशन के दोनों ओर से 4 किलोमीटर दूर झांसी मार्ग पर, द्वैपायन सरोवर के पास स्थित है. 

मन्नत का धागा 
वहीं एक श्रद्धालु पूनम ने कहा कि जो सच्चे मन से जो भी मांगता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है. यहां पर एक धागा बांधा जाता है, मनोकामना पूरी होने पर उसको खोला जाता है. 

बता दें कि देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्तिपीठों की संख्या 52 बताई गई है. साधारतः 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं. तंत्रचूड़ामणि में लगभग 52 शक्तिपीठों के बारे में बताया गया है. 

INPUT: DARSHAN KAIT

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