Mayur Vihar Temples: दिल्ली के मयूर विहार फेज-2 में स्थित कालीबाड़ी, अमरनाथ और बदरीनाथ मंदिरों को तोड़ने के डीडीए (दिल्ली विकास प्राधिकरण) के फैसले से स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश है. डीडीए का कहना है कि ये मंदिर ग्रीन बेल्ट क्षेत्र में अवैध रूप से बने हैं, जबकि स्थानीय लोग इसे अपनी आस्था पर हमला मान रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है और याचिकाकर्ता को दिल्ली हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया है.
35 साल पुरानी आस्था पर खतरा?
मयूर विहार के ये तीनों मंदिर करीब 35 साल से अधिक पुराने हैं. स्थानीय निवासियों का कहना है कि इन मंदिरों को हटाना उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने जैसा होगा. टी. दत्ता नाम के एक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी कि इन मंदिरों को तोड़ने की कार्रवाई पर तुरंत रोक लगाई जाए. उनका दावा है कि ये मंदिर न सिर्फ हिंदू समुदाय बल्कि कश्मीरी पंडितों के लिए भी आस्था का केंद्र हैं, क्योंकि इनके निर्माण में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया था.
डीडीए की कार्रवाई और जनता का विरोध
19 मार्च की रात डीडीए की टीम ने संजय झील पार्क में बने इन मंदिरों पर नोटिस चिपकाया. नोटिस के मुताबिक मंदिर ग्रीन बेल्ट में स्थित हैं और दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के आधार पर इन्हें हटाना जरूरी है. अगले ही दिन 20 मार्च की सुबह, डीडीए की टीम मंदिरों को गिराने के लिए पहुंची, लेकिन स्थानीय लोगों ने भारी विरोध किया. विरोध इतना बढ़ गया कि डीडीए की टीम को वहां से वापस लौटना पड़ा.
राजनीतिक और कानूनी मोर्चे पर लड़ाई
इस मुद्दे ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है. स्थानीय विधायक रविंद्र सिंह नेगी और दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने भी इस कार्रवाई को रोकने की अपील की. मामले की गंभीरता को देखते हुए मंदिर समितियों ने रातों-रात सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, लेकिन अदालत ने सीधे हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि वे पहले दिल्ली हाईकोर्ट में अपनी याचिका दायर करें.
अब क्या होगा आगे
अब सबकी निगाहें दिल्ली हाईकोर्ट पर टिकी हैं, जहां डीडीए को भी अपना पक्ष रखना होगा. हाईकोर्ट का फैसला यह तय करेगा कि क्या ये मंदिर बने रहेंगे या फिर विकास कार्यों के नाम पर इन्हें हटाया जाएगा. इस मामले ने एक बार फिर धार्मिक स्थलों और शहरी विकास के बीच संतुलन की बहस को जन्म दे दिया है. मयूर विहार के लोग अब भी अपने मंदिरों को बचाने के लिए एकजुट होकर संघर्ष कर रहे हैं.
ये भी पढ़िए- अब हर साल चुना जाएगा सबसे बेहतर विधायक, मिलेगा 'सर्वश्रेष्ठ विधायक' पुरस्कार