Delhi News: दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को बारामुल्ला से सांसद शेख अब्दुल राशिद, जिन्हें इंजीनियर राशिद के नाम से भी जाना जाता है. उनके द्वारा दायर नियमित जमानत याचिका के संबंध में राष्ट्रीय जांच एजेंसी ( एनआईए ) को नोटिस जारी किया.
राशिद वर्तमान में आतंकी फंडिंग मामले में तिहाड़ जेल में बंद है. उसे 2017 के आतंकी फंडिंग मामले में कथित संलिप्तता के लिए गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत एनआईए ने गिरफ्तार किया था. अब उसने ट्रायल कोर्ट के 21 मार्च के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी. इसके अलावा, राशिद ने दूसरी अपील में अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों को चुनौती दी है. कार्यवाही के दौरान, एनआईए के वकील ने अपील दायर करने में 1,104 दिनों की देरी की ओर इशारा किया और तर्क दिया कि कानूनी प्रावधानों के अनुसार, 90 दिनों से अधिक की देरी को माफ नहीं किया जा सकता है. हालांकि, राशिद के कानूनी प्रतिनिधियों, अधिवक्ता आदित्य वाधवा और विख्यात ओबेरॉय ने तर्क दिया कि देरी उचित होगी और कानून के तहत 90 दिन की सीमा को कठोर नहीं माना जाना चाहिए. खासकर जब मामला किसी व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता से संबंधित हो. इन तर्कों को स्वीकार करते हुए, अदालत ने क्षमा आवेदन के संबंध में नोटिस जारी किया और मामले की सुनवाई 29 जुलाई, 2025 को निर्धारित की.
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राशिद को अगस्त 2019 में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था. हिरासत में रहते हुए उन्होंने जेल से 2024 के संसदीय चुनावों के लिए अपना नामांकन दाखिल किया और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को 204,000 मतों के अंतर से हराकर जीत हासिल की. 2022 में, पटियाला हाउस स्थित एनआईए कोर्ट ने राशिद और हाफिज सईद, सैयद सलाहुद्दीन, यासीन मलिक, शब्बीर शाह, मसरत आलम, जहूर अहमद वटाली, बिट्टा कराटे, आफताब अहमद शाह, अवतार अहमद शाह, नईम खान और बशीर अहमद बट (जिन्हें पीर सैफ़ुल्लाह के नाम से भी जाना जाता है) सहित कई अन्य प्रमुख हस्तियों के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश दिया.
ये आरोप जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के वित्तपोषण की जांच से जुड़े हैं. एनआईए का आरोप है कि लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन, जैश-ए-मोहम्मद और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) सहित विभिन्न आतंकवादी समूहों ने क्षेत्र में नागरिकों और सुरक्षा बलों को निशाना बनाकर हमले करने के लिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ सहयोग किया. जांच के अनुसार, ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (एपीएचसी) का गठन 1993 में अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए किया गया था, जिसे कथित तौर पर हवाला और अन्य गुप्त चैनलों के माध्यम से वित्तीय सहायता दी गई थी. एजेंसी का दावा है कि हाफिज सईद और हुर्रियत नेताओं ने इन फंडों का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में अशांति भड़काने के लिए किया - कथित तौर पर सुरक्षा बलों पर हमले कराने, हिंसक विरोध प्रदर्शन भड़काने, स्कूलों को जलाने और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए. एनआईए का कहना है कि इन कार्रवाइयों का उद्देश्य क्षेत्र को अस्थिर करना और राजनीतिक प्रतिरोध की आड़ में आतंकवाद को बढ़ावा देना था.