Delhi News: 1999 के कारगिल युद्ध में दुश्मन के ठिकानों को तबाह करने वाले तोपखाने के जांबाज कैप्टन अखिलेश सक्सेना का जीवन साहस, दृढ़ता और देशप्रेम की एक अविस्मरणीय गाथा है. उन्होंने न केवल सीमा पर अपना शौर्य दिखाया, बल्कि युद्ध के बाद जीवन की चुनौतियों को भी उसी जुझारूपन से पार किया, जो उन्हें एक सच्चा नायक बनाता है.
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सैन्य परिवार से आने वाले कैप्टन सक्सेना, जिन्होंने सैनिक स्कूल गोरखल और एनडीए से प्रशिक्षण लिया, 1995 में भारतीय सेना की आर्टिलरी रेजिमेंट में शामिल हुए. कारगिल युद्ध के दौरान उन्होंने 2 राजपूताना राइफल्स और 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स के साथ मिलकर टोलोलिंग, हंप और थ्री पिंपल्स जैसे महत्वपूर्ण मोर्चों पर दुश्मन के ठिकानों पर सटीक गोले बरसाए. युद्ध के बीच, गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभाई और अपनी टीम को जीत तक पहुंचाया.
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टाटा कम्युनिकेशंस में वाइस प्रेसिडेंट के पद पर कार्यरत
युद्ध के दौरान उन्होंने अपनी पत्नी को एक भावुक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने शहादत पर गर्व करने की बात कही थी. यह पत्र आज भी उनकी अटूट देशभक्ति और साहस की कहानी कहता है. युद्ध के बाद, स्वास्थ्य कारणों से उन्हें सेना से रिटायर होना पड़ा, लेकिन यह उनके लिए अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत थी. उन्होंने MBA में गोल्ड मेडल हासिल किया और कॉर्पोरेट जगत में कदम रखा. विप्रो और एयरटेल जैसी शीर्ष कंपनियों में महत्वपूर्ण पदों पर काम करने के बाद आज वे टाटा कम्युनिकेशंस में वाइस प्रेसिडेंट के पद पर कार्यरत हैं.
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