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Delhi University: पाकिस्तान और इस्लाम से जुड़े कोर्स में सुधार की सिफारिश पर विवाद, आखिर क्यों पड़ी जरूरत?

DU Political Science Syllabus Revision : स्टैंडिंग कमेटी और एकेडमिक काउंसिल की सदस्य डॉ. मोनामी सिन्हा के अनुसार पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश का गंभीर अध्ययन जरूरी है क्योंकि यह भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख पहलू है. चीन को भी पाठ्यक्रम से बाहर करना गलत होगा, खासकर तब जब वह वैश्विक मंच पर बड़ी ताकत बनता जा रहा है.

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Delhi University: पाकिस्तान और इस्लाम से जुड़े कोर्स में सुधार की सिफारिश पर विवाद, आखिर क्यों पड़ी जरूरत?
Delhi University: पाकिस्तान और इस्लाम से जुड़े कोर्स में सुधार की सिफारिश पर विवाद, आखिर क्यों पड़ी जरूरत?
Zee News Desk|Updated: Jun 26, 2025, 09:19 AM IST
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Delhi University : डीयू की शैक्षणिक मामलों की स्थायी समिति ने पाकिस्तान और चीन से जुड़े पीजी राजनीति विज्ञान के पांच पाठ्यक्रमों में बदलाव के लिए वापस कर दिया. समिति ने कहा कि इन कोर्स को पाकिस्तान का महिमामंडन किए बिना फिर से तैयार किया जाए. बुधवार को इस पर चर्चा के बाद सदस्यों में मतभेद हो गया. दरअसल,दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के एमए पॉलिटिकल साइंस (राजनीति विज्ञान) पाठ्यक्रम से 'पाकिस्तान', 'चीन', 'इस्लाम' और 'राजनीतिक हिंसा' जैसे महत्वपूर्ण विषयों को हटाने की सिफारिश की गई है. यह सुझाव विश्वविद्यालय की स्टैंडिंग कमेटी ऑन एकेडमिक मैटर्स की बैठक में दिया गया. इस प्रस्ताव को लेकर शिक्षकों में भारी नाराजगी है और उन्होंने इसे राजनीतिक प्रेरित फैसला बताया है. स्टैंडिंग कमेटी और एकेडमिक काउंसिल की सदस्य डॉ. मोनामी सिन्हा के अनुसार 'पाकिस्तान एंड द वर्ल्ड', 'चाइना इन द कंटेम्पररी वर्ल्ड', 'इस्लाम एंड इंटरनेशनल रिलेशंस', 'पाकिस्तान: स्टेट एंड सोसायटी' और 'रिलिजियस नेशनलिज्म एंड पॉलिटिकल वायलेंस' जैसे कोर्स या तो पूरी तरह से हटाए जा सकते हैं या उनकी जगह नए विषय लाए जाएंगे.

क्या है पूरा मामला
एएनआई के अनुसार दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह ने हमें बताया कि यह बदलाव उस समय प्रस्तावित किए गए जब यूनिवर्सिटी प्रशासन ने डिपार्टमेंट हेड्स से कहा कि वे अपने-अपने पाठ्यक्रम की समीक्षा करें और 'पाकिस्तान की अनावश्यक महिमा' को हटाएं. यह कदम जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद उठाया गया. हालांकि इस निर्णय को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन ने अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है. शिक्षकों का कहना है कि यह बदलाव शिक्षावादी सोच के खिलाफ है और इससे छात्रों की वैश्विक समझ और गहराई से अध्ययन करने की क्षमता पर असर पड़ेगा. डॉ. मोनामी सिन्हा का मानना है कि जब दुनिया तेजी से बदल रही है और भारत की विदेश नीति में पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी देशों की भूमिका अहम होती जा रही है, तब ऐसे विषयों को पढ़ाने से हटाना छात्रों को अधूरी जानकारी देना होगा. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का अध्ययन सिर्फ एक देश के रूप में नहीं, बल्कि एक लगातार चुनौती देती भू-राजनीतिक ताकत के रूप में करना जरूरी है. वहीं चीन को पाठ्यक्रम से हटाना उस समय और भी खतरनाक साबित हो सकता है जब वह वैश्विक दक्षिण (Global South) में प्रभावशाली भूमिका निभा रहा है. उनका तर्क साफ है अगर छात्र अपने समय की प्रमुख कूटनीतिक चुनौतियों को नहीं समझेंगे, तो वे भविष्य के निर्णयकर्ताओं के रूप में कैसे सक्षम बनेंगे.

डॉ. मोनामी सिन्हा का मानना है कि जब दुनिया तेजी से बदल रही है और भारत की विदेश नीति में पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी देशों की भूमिका अहम होती जा रही है, तब ऐसे विषयों को पढ़ाने से हटाना छात्रों को अधूरी जानकारी देना होगा। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का अध्ययन सिर्फ एक देश के रूप में नहीं, बल्कि एक लगातार चुनौती देती भू-राजनीतिक ताकत के रूप में करना जरूरी है। वहीं चीन को पाठ्यक्रम से हटाना उस समय और भी खतरनाक साबित हो सकता है जब वह वैश्विक दक्षिण (Global South) में प्रभावशाली भूमिका निभा रहा है। उनका तर्क साफ है—अगर छात्र अपने समय की प्रमुख कूटनीतिक चुनौतियों को नहीं समझेंगे, तो वे भविष्य के निर्णयकर्ताओं के रूप में कैसे सक्षम बनेंगे?

दूसरे कोर्सों पर भी नजर
राजनीति विज्ञान के अलावा भूगोल (Geography) में भी बदलाव किए गए हैं. एमए भूगोल के पहले सेमेस्टर में 'आंतरिक संघर्ष और धार्मिक हिंसा' से संबंधित यूनिट को हटाने की सिफारिश की गई है. इसमें पॉल ब्रास की किताब 'Bases of Politics in India' को भी हटाने की बात की गई है. सामाजिक भूगोल (Social Geography) में अनुसूचित जातियों की जनसंख्या वितरण से संबंधित टॉपिक पर भी आपत्ति जताई गई है. आपत्ति यह है कि जाति आधारित विषयवस्तु को कम किया जाना चाहिए. सामाजिक शास्त्र (Sociology) के पाठ्यक्रम में भी बदलाव की बात हो रही है. पहले केवल पश्चिमी विचारकों मार्क्स, वेबर और दुर्खीम पर जोर था. अब भारतीय विचारकों और संयुक्त परिवार की अवधारणा को भी शामिल करने का सुझाव दिया गया है. साथ ही, समलैंगिक परिवारों पर आधारित पाठ 'Kath Weston' की रीडिंग पर आपत्ति जताई गई है, क्योंकि भारत में अभी समलैंगिक विवाह वैध नहीं हैं.

शिक्षकों का क्यों हो रहा विरोध
डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (DTF) की सचिव डॉ. आभा देव ने इन बदलावों की निंदा करते हुए कहा कि विभागों की अकादमिक स्वायत्तता खत्म की जा रही है. ये बदलाव छात्रों की शैक्षणिक योग्यता को कमजोर करेंगे और विश्वविद्यालय की साख को नुकसान पहुंचाएंगे. इनके अलावा एकेडमिक काउंसिल के निर्वाचित सदस्य मितुराज धूसिया ने भी आपत्ति जताते हुए कहा कि विश्वविद्यालय का उद्देश्य आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देना है, न कि छात्रों को एक जैसे विचारों का अनुयायी बनाना. उन्होंने कहा हमें 'दूसरे' से भागना नहीं चाहिए बल्कि उसे समझकर उससे संवाद करना चाहिए, तभी हम वैश्विक स्तर पर मजबूत हो सकते हैं.

कोर्स में आरएसएस की विचारधारा पर सवाल 
नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (एनडीटीएफ) के सदस्य हरेंद्र नाथ तिवारी ने कहा, पाकिस्तान पर कई पाठ्यक्रम थे, जिनका हमने पुरजोर विरोध किया. प्रस्ताव में एक पाठ भी शामिल था जिसमें कहा गया था कि कश्मीर को स्वशासित होना चाहिए, जिसका पाठ्यक्रम में कोई स्थान नहीं है. उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम में हिंदुत्व की राजनीति और आरएसएस की विचारधारा को हिंसा के बराबर बताया गया है, जो गलत है.

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