Delhi Bomb Threat News: पिछले 10 दिनों में दिल्ली के 100 से अधिक स्कूलों में बम धमकियों से अफरातफरी का माहौल रहा. लेकिन सभी घटनाओं के बाद पुलिस अपराधियों तक पहुंचने में नाकामयाब रही तो क्या वाकई इसमें सिर्फ पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाना लाजिमी है? शायद नहीं, क्योंकि दिल्ली पुलिस के मुताबिक स्कूलों को धमकी देने के लिए वीपीएन (वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क) और प्रॉक्सी सर्वर का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिन्हें ट्रैक करना आसान नहीं होता. इसके अलावा इन सेवाओं से जानकारी प्राप्त करने के लिए देश का कानूनी ढांचा अपर्याप्त है, जिसके कारण जांच में देरी हो रही है.
इस साल मई से अब तक दिल्ली में बम की धमकी वाले 50 से अधिक ईमेल न केवल स्कूलों, बल्कि दिल्ली के अस्पतालों, हवाई अड्डों और एयरलाइन कंपनियों को भी भेजे गए, लेकिन पुलिस को इन मामलों में अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है. दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को स्कूलों को मिल रही धमकियों पर चिंता जताई थी और अपराधी को पकड़ने में पुलिस की विफलता पर सवाल उठाए थे.
धमकी भरे ईमेल भेजने वालों के आईपी एड्रेस का पता जानने के लिए दिल्ली पुलिस ने गूगल, वीके (जो कि अब मेल.रू के नाम से जाना जाता है) और आउटलुक.कॉम जैसे सेवा प्रदाताओं को पत्र लिखे हैं. कुछ मामलों में पुलिस को उत्तर भी मिला है, लेकिन इसकी मदद से पुलिस धमकी देने वालों का सही पता नहीं खोज पाई. पुलिस का कहना है कि उनके सर्वर या डोमेन यूरोपीय या मध्य पूर्वी देशों में पाए गए हैं, वास्तविक मूल स्थान की पुष्टि नहीं हो पाई है, क्योंकि ईमेल वीपीएन या प्रॉक्सी सर्वरों का उपयोग करके भेजे गए थे. केंद्रीय एजेंसियों के माध्यम से दिल्ली पुलिस ने इंटरपोल से भी सहायता मांगी है.
दिल्ली में बम की धमकी के मामलों की जांच दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा को सौंपी गई है. अब तक किसी भी धमकी में कुछ संदिग्ध नहीं पाया गया है, लेकिन हम इनमें से किसी को भी हल्के में नहीं ले सकते. प्रत्येक संदेश को गंभीरता से लिया गया और सभी सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन किया गया. पुलिस अधिकारी के मुताबिक वीपीएन नेटवर्क इंटरनेट पर एक जाल की तरह काम करते हैं, जहां संपर्क करने वाले का मूल स्थान सीधे उसके सर्वर से जुड़ा नहीं होता. उदाहरण के लिए, अगर दो लोग बात कर रहे हैं तो यह सीधे सर्वर से जुड़ा होता है, लेकिन यदि हम वीपीएन के माध्यम से जुड़े हैं तो हमारी बातचीत कई डोमेन सर्वरों के माध्यम से होती है.
मई में मिली थी पहली धमकी
दिल्ली के स्कूलों और अस्पतालों को धमकियां देने का पहला मामला मई में सामने आया था. इसके बाद दिल्ली की कुछ सरकारी संस्थाओं, तिहाड़ जेल और कुछ केंद्रीय मंत्रालयों को भी बम धमकियां मिलीं. अक्टूबर में, दिल्ली से उड़ने वाली 150 से अधिक घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को भी इसी तरह के धमकी भरे संदेश मिले थे, जिन्हें भेजने के लिए वीपीएन नेटवर्क का इस्तेमाल किया गया है.
वीपीएन सेवा प्रदाता दायरे से दूर हैं
साइबर कानून विशेषज्ञ और सुप्रीम कोर्ट के वकील डॉ. पवन दुग्गल का कहना है कि समस्या यह है कि भारत में वीपीएन के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए कोई डेडिकेटेड लॉ नहीं है. उन्होंने बताया कि अधिकांश वीपीएन सेवा प्रदाता भारत की सीमा से बाहर होते हैं, जिससे उनसे जानकारी प्राप्त करना एक महत्वपूर्ण चुनौती बन जाती है. हालांकि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 को अनुभाग 1 और 75 के तहत अतिरिक्त क्षेत्राधिकार प्रदान किया गया है, लेकिन वास्तविकता यह है कि भारत इन वीपीएन सेवा प्रदाताओं के खिलाफ इस क्षेत्राधिकार को लागू करने में सक्षम नहीं है. साइबर अपराधी अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत में कानूनी ढांचा इतना सक्षम नहीं है कि वह वीपीएन सेवा प्रदाताओं से जानकारी हासिल कर पाए.
नहीं पता चलता वास्तविक आईपी एड्रेस
बेंगलुरु स्थित साइबर सुरक्षा कंपनी क्लाउडसेक के शोधकर्ता विकास कुंडू का कहना है कि कुछ ईमेल सेवाएं, जो वीपीएन या टोर के साथ उपयोग की जाती हैं, ऑनलाइन गुमनामी को बढ़ा देती हैं, जिससे कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए किसी व्यक्ति की पहचान का पता लगाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाता है.उदाहरण के लिए प्रोटॉनमेल एक सुरक्षित ईमेल सेवा है, जिसमें एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन होता है और यह उपयोगकर्ताओं के आईपी पते को लॉग नहीं करता, जिससे सेवा प्रदाता के पास अधिकारियों के साथ साझा करने के लिए न्यूनतम डेटा होता है. जब इसे वीपीएन के साथ जोड़ा जाता है तो उपयोगकर्ता का वास्तविक आईपी पता छिप जाता है और वीपीएन सर्वर का आईपी अड्रेस ही दिखाई देता है.
इनपुट: पीटीआई
बीजेपी कार्यालय के बाहर लावारिस बैग मिलने से हड़कंप, पुलिस ने की इलाके की घेराबंदी