Delhi Crime: दक्षिणी दिल्ली की साकेत स्थित सत्र न्यायालय में हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया, जिसने कानून के दुरुपयोग की गंभीरता को उजागर कर दिया. एक पिता ने अपनी ही 17 वर्षीय बेटी पर मानसिक दबाव बनाकर रिश्तेदारों के खिलाफ यौन उत्पीड़न का झूठा मामला दर्ज करवाया. इस मामले की सुनवाई कर रहीं अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनु अग्रवाल ने इसे 'कानून के प्रावधानों के दुरुपयोग का क्लासिक उदाहरण' बताया.
अदालत में प्रस्तुत क्लोजर रिपोर्ट में कई ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग शामिल थीं, जिनमें स्पष्ट रूप से यह प्रमाणित हुआ कि लड़की ने पिता के कहने पर झूठी शिकायत की थी. इन रिकॉर्डिंग्स की फॉरेंसिक रिपोर्ट ने भी पुष्टि की कि आवाज और बयान लड़की के ही थे और उसके साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं हुई थी. मामला तब और गंभीर हो गया जब यह पता चला कि लड़की के पिता के खिलाफ पहले से ही उसकी भाभी और पत्नी ने बलात्कार की शिकायतें दर्ज कराई हुई थीं. अदालत ने माना कि इन मामलों में खुद को बचाने और रिश्तेदारों से बदला लेने की नीयत से पिता ने अपनी बेटी को झूठा बयान देने पर मजबूर किया. इस प्रक्रिया में लड़की को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया.
न्यायाधीश ने कहा कि यह मामला बताता है कि कैसे एक पिता ने अपने पारिवारिक झगड़ों को निपटाने के लिए एक मासूम लड़की को कानूनी हथियार बना दिया. ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई जरूरी है, ताकि कानून की पवित्रता बनी रहे. अदालत ने क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए संबंधित थाना प्रभारी (SHO) को निर्देश दिया है कि वह लड़की के पिता के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम की धारा 22(1) के अंतर्गत FIR दर्ज करें, जो झूठी शिकायत या गलत सूचना देने से संबंधित है. यह मामला न केवल कानून के दुरुपयोग की एक चेतावनी है, बल्कि यह भी याद दिलाता है कि किसी भी शिकायत को दर्ज करते समय उसकी सच्चाई और मंशा की गहन जांच बेहद जरूरी है. कानून का उद्देश्य पीड़ितों को न्याय दिलाना न कि किसी के निजी स्वार्थ की पूर्ति करना है.
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