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Haryana Vidhansabha Chunav: 'एक परिवार एक टिकट' की नीति पर क्या टिकी रहेगी BJP, खुद के नियम न बन जाएं चुनौती!

Haryana Vidhansabha Chunav 2024: आगामी हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में भाजपा अपनी 'एक परिवार, एक टिकट' नीति और प्रभावशाली राजनीतिक परिवारों की मांगें दोनों को संतुलित करने में चुनौतियों का सामना कर रही है. भाई-भतीजावाद के खिलाफ भाजपा हमेशा से मुखर रही है, लेकिन बावजूद इसके पार्टी के कई नेता अपने रिश्तेदारों के लिए टिकट मांग रहे हैं.

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Haryana Vidhansabha Chunav: 'एक परिवार एक टिकट' की नीति पर क्या टिकी रहेगी BJP, खुद के नियम न बन जाएं चुनौती!
Prince Kumar|Updated: Aug 25, 2024, 03:28 PM IST
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Haryana Vidhansabha Chunav 2024: आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा अपनी 'एक परिवार, एक टिकट' नीति को बनाए रखने और प्रभावशाली राजनीतिक परिवारों की मांगों को पूरा करने की चुनौती का सामना कर रही है. राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण प्रभाव रखने वाले कई प्रमुख नेता पार्टी में बड़ी भूमिका में हैं और अब अपने परिवार के सदस्यों के लिए टिकट की मांग कर रहे हैं.

भाजपा करती आई है भाई-भतीजावाद की आलोचना
भाजपा की सबसे बड़ी दुविधा यह है कि वह हरियाणा में भाई-भतीजावाद के खिलाफ लगातार मुखर रही है. हरियाणा की राजनीति में चौधरी देवी लाल, बंसी लाल, भजन लाल और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के परिवारों का लंबे समय से दबदबा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक, भाजपा नेताओं ने लगातार वंशवाद की राजनीति की आलोचना की है. हालांकि, अगर पार्टी हरियाणा चुनावों के लिए अपने प्रमुख नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट देती है, तो उसे विपक्ष के तीखे सवालों का सामना करना पड़ सकता है.

RSS BJP की बैठक
फरीदाबाद में आरएसएस और भाजपा की समन्वय बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई, जिसमें भाजपा नेताओं द्वारा अपने परिवार के सदस्यों के लिए टिकट की मांग की गई.
हालांकि, आरएसएस पारिवारिक राजनीति को बढ़ावा देने के खिलाफ रहा है, लेकिन भाजपा के कुछ रणनीतिकारों का मानना ​​है कि हर सीट जीतना अत्यधिक महत्वपूर्ण है, भले ही इसके लिए कुछ समझौते करने पड़ें.

टिकट आवंटन में नीति बनी चुनौती
भाजपा के सूत्रों के अनुसार, पार्टी की नीतियों को ध्यान में रखते हुए, अगर परिवार का कोई सदस्य चुनाव जीतने की स्थिति में है, तो उसकी उम्मीदवारी पर विचार किया जा सकता है. दिलचस्प बात यह है कि भाजपा में पारिवारिक टिकट के लिए जोर देने वाले अधिकांश नेता पहले अन्य दलों में सक्रिय थे और अब भाजपा के पाले में हो चले हैं. उदाहरण के लिए, केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत अपनी बेटी आरती राव को चुनाव मैदान में उतारने के लिए प्रयास कर रहे हैं और अटेली और रेवाड़ी से संभावित तौर पर वो चुनावी मौदान में उतर सकती हैं.

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नेताओं के परिवार वाले बने भाजपा की मुसिबत
वहीं, केंद्रीय मंत्री कृष्ण पाल गुर्जर अपने बेटे देवेंद्र चौधरी के लिए तिगांव और बड़खल से टिकट की मांग कर रहे हैं, जबकि सांसद धर्मबीर सिंह अपने बेटे मोहित चौधरी के लिए सोहना और चरखी दादरी से टिकट चाहते हैं. दूसरी ओर, हाल ही में कांग्रेस से बीजेपी में आईं किरण चौधरी अपनी बेटी पूर्व सांसद श्रुति चौधरी के लिए तोशाम से टिकट चाहती हैं, और भाजपा के राष्ट्रीय सचिव ओम प्रकाश धनखड़ अपने बेटे आदित्य धनखड़ को राजनीति में एंट्री दिलानें की संभावनाएं तलाश रहे हैं.

अपनी मां के लिए टिकट मांग रहे नवीन जिंदल
दूसरी ओर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. ज्ञान चंद गुप्ता अपने भतीजे अमित गुप्ता के लिए पंचकूला से टिकट चाहते हैं. सांसद नवीन जिंदल अपनी मां पूर्व मंत्री सावित्री जिंदल के लिए हिसार से टिकट चाहते हैं, जबकि पूर्व विधायक रणधीर कापड़ीवास अपने भतीजे मुकेश के लिए रेवाड़ी से टिकट मांग रहे हैं. इसके अलावा, ओडिशा के पूर्व राज्यपाल प्रो. गणेशी लाल अपने बेटे मनीष सिंगला को सिरसा से चुनाव लड़ाने के लिए लगातार पार्टी में दबाव बना रहे हैं, जबकि प्रो. राम बिलास शर्मा अपने बेटे को भाजपा की टिकट पर विधानसभा चुनाव में उतारना चाहते हैं. ऐसे में साल 2024 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को न सिर्फ एंटी इनकंबेंसी, कांग्रेस और अन्य पार्टियों से लड़ना है. बल्कि अपनी नीतियों को भी बनाए रखना है.

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