Yamuna Nagar News: हरियाणा कांग्रेस में कुमारी सैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट के बीच सीटों के बंटवारे और नेता प्रतिपक्ष नियुक्ति समेत कई मुद्दों पर बार तनाव और विवाद की स्थिति बन चुकी है. इस बीच एक बार फिर यमुनानगर के पूर्व जिलाध्यक्ष राकेश शर्मा को लेकर दोनों गुट आमने सामने आ सकते हैं. दरअसल हरियाणा कांग्रेस में छिड़े घमासान के बीच हाईकमान ने हुड्डा के करीबी प्रदेश पार्टी अध्यक्ष उदयभान के एक फैसले को फिर से पलट दिया है. उदयभान ने 2 मार्च को निकाय चुनाव में पार्टी विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने पर राकेश शर्मा और अनिल गोयल को निलंबित किया था, लेकिन यमुना नगर पहुंची कुमारी सैलजा ने राकेश शर्मा को पार्टी का हिस्सा बताया.
इससे पहले भी प्रदेशाध्यक्ष उदयभान द्वारा की गई नियुक्यिों को प्रभारी व हाईकमान द्वारा होल्ड किया जाता रहा है. कांग्रेस महासचिव कुमारी सैलजा पूर्व जिला अध्यक्ष राकेश शर्मा उर्फ काका के निवास स्थान पर पहुंचीं. उनके निलंबन के सवाल पर सैलजा ने कहा कि राकेश पार्टी का हिस्सा हैं और रहेंगे. उन्हें बाहर कैसे किया जा सकता है. मेरी जनरल सेक्रेटरी से बात हुई है. उन्होंने भी यही कहा कि आप उनके लिए कह सकते हो कि राकेश शर्मा पार्टी का हिस्सा हैं.
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गुटबाजी को 2014 में हवा मिली थी
2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद कुमारी सैलजा और भूपेंद्र हुड्डा के बीच मतभेद उभरे. सैलजा ने अप्रत्यक्ष रूप से हुड्डा के नेतृत्व पर सवाल उठाए. वहीं दूसरी ओर, हुड्डा समर्थकों ने सैलजा पर गुटबाजी का आरोप लगाया. हुड्डा का प्रभाव जाट समुदाय और ग्रामीण क्षेत्रों में मजबूत है, जबकि सैलजा दलित और शहरी मतदाताओं में लोकप्रिय हैं. दोनों का मानना था कि पार्टी को सभी समुदायों को समान महत्व देना चाहिए.
2019 के विधानसभा चुनाव से पहले हुआ टकराव
2019 के चुनाव से पहले टिकट वितरण और सीएम फेस को लेकर दोनों नेताओं के बीच खींचतान देखी गई. कुमारी सैलजा को लगता था कि उनकी अनदेखी हो रही है, जबकि हुड्डा ने खुद को सीएम उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट किया। हालांकि, सैलजा को उस समय राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी गईं, जिससे विवाद कुछ हद तक शांत भी हुआ.
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2024 में सीट बंटवारे पर आए आमने सामने
2024 के हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले दोनों नेताओं के बीच फिर से तनाव की खबरें आईं. कुमारी सैलजा के समर्थकों का आरोप था कि हुड्डा ने टिकट वितरण में अपने करीबियों को तरजीह दी, जिससे सैलजा खेमे को नुकसान हुआ. उन्हें सैलजा को सीमित करने की कोशिश की. चुनाव के बाद जब नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति का सवाल आया तो हुड्डा को यह जिम्मेदारी दी गई. सैलजा समर्थकों का मानना था कि उन्हें यह पद मिलना चाहिए था, जिससे दोनों के बीच तनाव फिर सामने आया.
इनपुट: सोनू सिंह