Haryana News: चरखी दादरी जिले के गांव चांदवास में सालों पहले धुलंडी के दिन आग लगने का हादसा हुआ था, जिसमें काफी नुकसान उठाना पड़ा था. उसके बाद से ग्रामीण उस दिन धुलंडी नहीं मनाते बल्कि अगले दिन फाग यानी होली खेलते हैं. इस बार भी ऐसा ही देखना को मिला दूसरे स्थानों पर जहां गुरुवार को होलिका दहन के अगले दिन शुक्रवार को फाग खेला गया, जबकि गांव चांदवास में शनिवार को धुलंडी मनाई गई.
167 साल पहले हुआ हादसा
चरखी दादरी जिले के गांव चांदवास में 167 साल से रंगों का त्योहार फाग के दूसरे दिन मनाया जाता है. ग्रामीणों से इसके पीछे की वजह जानी तो साढ़े 71 वर्षीय रामभगत ने बताया कि वे पूर्वजों से सुनते आ रहे हैं कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद जींद रियासत अंग्रेजों ने एक सरदार को सौंपी थी. उसने गांव चांदवास से अनुसूचित वर्ग के लोगों को गांव से निकालकर समीप में अलग से बसाया था. उन लोगों ने वहां अपनी झोपड़ियां बनाई हुई थी. रामभगत के अनुसार 1858 में रात को होलिका दहन हुआ था और अगले दिन वहां रहने वाले लोग गांव में धुलंडी खेलने के लिए गए हुए थे. उस दौरान तेज आंधी आ गई और जहां होलिका दहन हुआ था, वहां से चिंगारी निकली और झोपड़ियों में आग लग गई.
आग की चपेट में आए थे पशु व बच्चे
फाग खेल रहे लोगों ने आग की लपटे देखी तो वहां पहुंचे और अपने स्तर पर आग पर काबू पाने का प्रयास किया. मगर आग फैल चुकी थी और आंधी चलने के कारण काबू नहीं पाया जा सका. इस आग में वहां रह रहे 15 से 20 परिवारों की झोपड़ियों के साथ घरेलू सामान, गाय, बकरी व दो से तीन छोटे बच्चे जल गए थे.
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होली नहीं खेलने का लिया फैसला
इस हादसे के बाद गांव के मौजिज ग्रामीण एकत्रित हुए थे. जिन्होंने निर्णय लिया था कि होलिका दहन में दिशा का विशेष ध्यान रखना है. होलिका दहन उस दिशा में किया जाएगा जिस दिशा की हवा कम चलती है. इसके अलावा उन्होंने जिन परिवारों की झोपड़ियां जली थी, उनकी मदद कर दोबारा से झोपड़ियां बनाने और होलिका दहन के अगले दिन धुलंडी नहीं खेलने का निर्णय लिया था. उसके बाद से ग्रामीण करीब 167 सालों से उस परंपरा को निभाते आ रहे हैं और होलिका दहन के बाद एक दिन छोड़कर रंगों का त्योहार धुलंडी मनाते है. उसी के तहत चांदवास में गुरुवार को होलिका दहन और शनिवार को धुलंडी मनाई गई, जबकि देशभर में यह त्योहार शुक्रवार को मनाया गया था.
करीब 3 हजार की है आबादी
गांव चांदवास में करीब 3 हजार की आबादी है. यह जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर है और यहां के अधिकतर ग्रामीण कृषि पर आधारित है. इसके अलावा बॉलीबाल के खिलाड़ियों के लिए भी यह गांव जाना जाता है और यहां के युवा सेना में भी देश सेवा कर रहे हैं.
Input: Pushpender Kumar