Delhi News: शुक्रवार 21 मार्च 2025 को विशेष आपदा अनुसंधान केंद्र (SCDR), JNU और जांभाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर, राजस्थान के सहयोग से एक जरूरी एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस सम्मेलन का उद्देश्य रीति-रिवाजों या मान्यताओं का ज्ञान और सतत जीवनशैली को अपनाने के माध्यम से आपदाओं की रोकथाम और प्रबंधन पर शोध को बढ़ावा देना था. यह कार्यक्रम SCDR सभागार, JNU में आयोजित किया गया. इसमें भारत और विदेशों से कई विशेषज्ञ, शोधकर्ता और अनुभवी व्यक्तियों शामिल हुए.
इन विषययों पर चर्चा
इस सम्मेलन के दौरान 3 जरूरी मुद्दों पर चर्चा की गई. पहला, गुरु जंभेश्वर जी की जीवनदृष्टि को समझकर सतत विकास का ढांचा तैयार करना. दूसरा है आपदा जोखिम को कम करने में पारंपरिक और स्थानीय ज्ञान की भूमिका और तीसरा बिश्नोई समुदाय जैसे सामाजिक समूहों द्वारा जैव विविधता संरक्षण, आपदा प्रबंधन के अपनाए गए तरीकों की समीक्षा. इस सम्मेलन में भारत के दूसरे हिस्सों के साथ-साथ विदेशों से भी शोधकर्ताओं ने अपने विचार सबके सामने रखे.
सम्मेलन के विशिष्ट अतिथि
सम्मेलन में कई प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल हुए जैसे डॉ. दीप नारायण पांडेय – सहायक प्रोफेसर, विशेष आपदा अनुसंधान केंद्र, JNU, प्रो. (डॉ.) इंद्रा बिश्नोई – अध्यक्ष, जांभाणी साहित्य अकादमी, डॉ. पुष्पा कुमार लक्ष्मणन – निदेशक, विधि महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, एल.आर. बिश्नोई – सेवानिवृत्त आईपीएस, पूर्व डीजीपी, मेघालय, डॉ. एम.के. रंजीतसिंह – सेवानिवृत्त IAS, भारतीय वन्यजीव संरक्षण, राज कुमार भाटिया – विधायक, दिल्ली, इन अतिथियों ने मान्यताओं और आधुनिक ज्ञान प्रणालियों को मिलाकर पर्यावरण को बचाने और आपदा प्रबंधन की दिशा में नए रास्तों के बारे में बताया.
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अतिथियों के विचार
कार्यक्रम के दौरान प्रमुख अतिथियों ने अपने विचारों को सबके सामने रखा, जो यह दिखाते हैं कि अपनी पारंपरिक ज्ञान आज की कितना महत्वपूर्ण हो सकता है.
1- डॉ. दीप नारायण पांडेय ने कहा कि गुरु जंभेश्वर जी के 29 सिद्धांत सतत विकास, पर्यावरण संरक्षण और पशु कल्याण को प्रस्तुत करते हैं. उन्होंने बताया कि गुरु जंभेश्वर की विरासत का सम्मान करने के लिए सम्मेलन में एकल-उपयोग प्लास्टिक को खत्म करने का संकल्प लिया गया है.
2- प्रो. इंद्रा बिश्नोई ने गुरु जंभेश्वर जी की शिक्षाओं की सराहना करते हुए कहा कि उनका उद्देश्य सभी लोगों को प्राकृतिक संसाधनों, वन्यजीवों और मानवता के जटिल संबंध के बारे में जागरूक करना था.
3- डॉ. पुष्पा कुमार लक्ष्मणन ने बताया कि स्वदेशी समुदाय हमेशा प्रकृति की पूजा करते थे, लेकिन आधुनिक समाज में हमारे द्वारा प्रकृति से कटने के कारण हमें जैव विविधता की हानि और आपदाओं का सामना करना पड़ा है.
4- एल.आर. बिश्नोई ने अरुणाचल प्रदेश की अपातानी और इडु मिश्मी जनजातियों के उदाहरण दिए, जिन्होंने बाघों को अपने भाई-बहन की तरह माना और यह वन्यजीवों के प्रति उनकी करुणा का प्रमाण था.
5- डॉ. एम.के. रंजीतसिंह ने कहा कि बार-बार होने वाली आपदाओं के पीछे हमारी मानसिकता है, जो प्रकृति के उपहारों की अनदेखी कर भौतिक संपदा के पीछे भाग रही है.
6- राज कुमार भाटिया ने गुरु जंभेश्वर जी के सिद्धांतों में प्रकृति की रक्षा और उसे सर्वोच्च मानने की दृष्टि की बात की.