Holi 2025: हिंदू धर्म में रंगों का त्योहार होली का विशेष महत्व है. यह पर्व हर साल फाल्गुन मास में मनाया जाता है, जिसमें सभी वर्ग के लोग एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाते हैं. इस साल होली 14 मार्च को मनाई जाएगी, जबकि होलिका दहन 13 मार्च को होगा. होली का यह पर्व न केवल एकता और भाईचारे का प्रतीक है, बल्कि यह प्राचीन पौराणिक कथाओं से भी जुड़ा हुआ है. आइए जानते हैं कि कथाओं के अनुसार सबसे पहले होली किसने खेली थी.
होली से जुड़ी पौराणिक कथाएं
होली से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं. एक कथा के अनुसार, धरती से पहले होली देवलोक में खेली गई थी. हरिहर पुराण के अनुसार, सबसे पहले भोलेनाथ ने होली खेली थी. इस समय तारकासुर ने तांडव मचाया था, जिससे सभी देवी-देवता परेशान थे.
कामदेव और रति की भूमिका
तारकासुर को समाप्त करने के लिए भोलेनाथ को समाधि से जगाने का कार्य प्रेम के देवता कामदेव और उनकी पत्नी रति को सौंपा गया. दोनों ने मनमोहक नृत्य किया, जिससे भोलेनाथ की समाधि भंग हो गई. इससे क्रोध में आकर भगवान शंकर ने कामदेव को भस्म कर दिया गया, लेकिन रति की याचना पर भोलेनाथ ने उन्हें पुनर्जीवित कर दिया. कामदेव और रति ने इस खुशी में ब्रह्म भोज का आयोजन किया, जिसमें भोलेनाथ और अन्य देवी-देवताओं ने हिस्सा लिया. इस भोज में चंदन का टीका लगाकर रति ने खुशी व्यक्त की. यह आयोजन फाल्गुन पूर्णिमा के दिन हुआ था.
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देवी-देवताओं ने मनाई थी सबसे पहले होली
हरिहर पुराण में एक और कथा का उल्लेख है, जिसमें भोलेनाथ ने डमरू बजाया और विष्णु जी ने बांसुरी बजाई. वहीं माता पार्वती और देवी सरस्वती ने वीणा बजाकर गीत गाए. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसी समय से फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होली का पर्व मनाया जाने लगा.
होलिका हदन की राख से क्या करते हैं?
इस दिन देवी-देवताओं को रंग और गुलाल अर्पित किया जाता है. होलिका दहन की राख या भस्म से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है. इस प्रकार, होली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि प्रेम, एकता और धार्मिक मान्यताओं का प्रतीक है.