Delhi Assembly Session: दिल्ली की राजनीति में सत्ता के साथ समीकरण भी बदलते हैं. चेहरे भले वही हों, लेकिन उनका कद, भूमिका और प्रभाव वक्त के साथ अलग होता जाता है. 2020 की विधानसभा में जो नेता सत्ताधारी दल के बेंच पर बैठते थे, वे आज विपक्ष में हैं और जो कभी सरकार को घेरते थे, वे आज दिल्ली की नई सत्ता के केंद्र में हैं. ठीक वैसे ही, जैसे कभी आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायक कपिल मिश्रा पर हमला करने वाले आज खुद उस स्थिति में हैं, जहां उन्हें सरकार से लड़ना होगा.
जब विधानसभा में हुई थी हाथापाई
साल 2017 में दिल्ली विधानसभा का सत्र हो रहा था. आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार थी और कपिल मिश्रा जो कभी पार्टी के प्रमुख चेहरे थे और सरकार से बगावत कर चुके थे. उन्होंने केजरीवाल सरकार पर भ्रष्टाचार ( 2 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने ) के आरोप लगाए थे और विधानसभा में इस मुद्दे को उठाने की कोशिश की थी. लेकिन जैसे ही उन्होंने बोलना शुरू किया, AAP विधायकों ने उन्हें घेर लिया. देखते ही देखते माहौल गरमा गया और मामला हाथापाई तक पहुंच गया. कपिल मिश्रा को सदन से बाहर निकाल दिया गया, लेकिन उस घटना ने दिल्ली की राजनीति में हलचल मचा दी थी.
पद वही और भूमिका अलग
आज 2025 की दिल्ली विधानसभा में स्थितियां बिल्कुल उलट चुकी हैं. अब वह AAP, जो कभी सत्ता पर काबिज थी और विपक्ष के तीखे सवालों को दबाने की कोशिश करती थी, खुद विपक्ष में आ चुकी है और जिस भाजपा ने 27 साल तक दिल्ली में सत्ता का इंतजार किया, वह अब सरकार चला रही है. दिल्ली की 8वीं विधानसभा में सत्ता और विपक्ष की भूमिकाएं बदली हुई हैं. भाजपा की रेखा गुप्ता मुख्यमंत्री बन चुकी हैं और उनके सामने विपक्ष की नेता प्रतिपक्ष के रूप में AAP की आतिशी हैं. सदन में अब भाजपा का बहुमत है और आम आदमी पार्टी सवालों की झड़ी लगाने के लिए तैयार बैठी है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या अब वही घटनाएं दोहराई जाएंगी? क्या अब भाजपा सरकार विपक्ष की आवाज को उसी तरह दबाएगी, जैसे पहले AAP सरकार के कार्यकाल में हुआ था.
सत्ता में रहने के बाद विपक्ष का स्वाद
आम आदमी पार्टी के लिए यह स्थिति बिल्कुल नई है. पिछले 10 सालों में उसने दिल्ली की सत्ता चलाई, लेकिन अब उसे विपक्ष में बैठकर सरकार को घेरने की भूमिका निभानी होगी. यह देखना दिलचस्प होगा कि जो विधायक कभी सत्ता के विशेषाधिकारों का इस्तेमाल करते थे, वे अब अपने सवालों को बुलंद रखने के लिए किन रणनीतियों का सहारा लेंगे. आतिशी के नेतृत्व में AAP सरकार को हर मोर्चे पर चुनौती देने की तैयारी कर रही है. पार्टी का फोकस भाजपा के चुनावी वादों पर रहेगा, खासकर महिलाओं को 2500 रुपये देने के वादे पर. सदन में इस मुद्दे को उठाने की पूरी तैयारी हो चुकी है.
क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?
राजनीति में अक्सर हालात बदलते हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या सत्ता परिवर्तन के बावजूद लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांत कायम रहेंगे? क्या अब सदन में विपक्ष की आवाज को सम्मान मिलेगा या फिर वही सियासी टकराव दोहराया जाएगा, जो कभी कपिल मिश्रा के साथ हुआ था? यह देखना दिलचस्प होगा कि 2025 की दिल्ली विधानसभा में सत्ता और विपक्ष का संघर्ष किस दिशा में जाता है.
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