Delhi Assembly Elections 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 का शंखनाद हो चुका है. इस बार के चुनाव में दो विधानसभाओं पर सबकी निगाहें हैं. वो दोनों विधानसभाएं हैं- करावल नगर और मुस्तफाबाद. 2020 में हुए दिल्ली दंगों का दंश यहां आजतक देखने को मिलता है. 5 साल बाद फिर से ये क्षेत्र सियासत का केंद्र बन गया है. इस बार इन क्षेत्रों में राजनीति का रंग अलग है. सवाल यही है कि क्या करावल नगर और मुस्तफाबाद विकास के रास्ते पर आगे बढ़ेगा या फिर दंगों और सांप्रदायिकता की पुरानी परछाई में उलझा रह जाएगा. करावल नगर से भाजपा ने कपिल मिश्रा और आम आदमी पार्टी ने मनोज त्यागी को चुनावी मैदान में उतारा है. वहीं मुस्तफाबाद से आप ने आदिल अहमद को टिकट दिया है, जबकि भाजपा ने अभी तक अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है.
दिल्ली दंगों का दर्द अब भी ताजा
साल 2020 के दंगे करावल नगर और आसपास के इलाकों के लिए एक गहरी चोट थे. इन दंगों में घर जल गए, दुकानें लूट ली गईं और लोगों का विश्वास टूट गया. पांच साल बाद भी दंगों के घाव पूरी तरह से नहीं भरे हैं. न केवल पीड़ित बल्कि पूरे क्षेत्र ने उस पीड़ा को सहा और इस बार चुनाव में यह मुद्दा सबसे ज्यादा चर्चित है.
चांद बाग के रहने वाले मोहम्मद नसीम जो दंगों में अपना घर खो चुके हैं, वो कहते हैं कि हर बार नेता आते हैं और बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है. हमें आज तक मुआवजा नहीं मिला. वहीं शीतल गुप्ता जिन्होंने दंगों में अपनी आजीविका गंवाई, वो कहती हैं कि हर चुनाव में नेता हमारी पीड़ा का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन समाधान के लिए कोई कदम नहीं उठाते. इस बार हम सोच-समझकर वोट देंगे.
चुनावी समीकरण और उम्मीदवारों का गणित
इस बार के चुनाव में भाजपा ने कपिल मिश्रा को मैदान में उतारा है, जो 2020 में अपने बयानों के लिए चर्चा में थे. वहीं, आप ने अपने स्थानीय नेता मनोज त्यागी को टिकट दिया है. कांग्रेस ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए स्थानीय चेहरे पर भरोसा किया है, लेकिन उनकी स्थिति कमजोर नजर आ रही है. साथ ही भाजपा इस बार कानून-व्यवस्था और सांप्रदायिक सुरक्षा को चुनावी मुद्दा बना रही है. पार्टी यह सुनिश्चित करना चाहती है कि 2020 के दंगों से नाराज हिंदू मतदाता उनके साथ आएं. वहीं, आप विकास और मोहल्ला क्लीनिक जैसे मुद्दों को जोर-शोर से उठा रही है. पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद करावल नगर में कई रैलियां कर चुके हैं और हमेशा ही क्षेत्र के मतदाताओं को विकास के भरोसे पर लुभाने की कोशिश करते रहे हैं.
चुनाव के मुख्य मुद्दे: दंगे बनाम विकास
करावल नगर के लोग दो बड़ी समस्याओं से जूझ रहे हैं. दंगों के बाद का न्याय और बुनियादी विकास.
दंगे और उसका असर
बहुत से दंगा पीड़ित आज भी न्याय का इंतजार कर रहे हैं. मुआवजा, पुनर्वास और सुरक्षा के वादे अब तक अधूरे हैं. भाजपा इसे सांप्रदायिकता बनाम सुरक्षा का मुद्दा बना रही है, जबकि आप दंगों के जख्मों को पीछे छोड़कर विकास की राजनीति पर जोर दे रही है.
बुनियादी समस्याएं
साथ ही जलभराव, खराब सड़कें और बेरोजगारी जैसी समस्याएं करावल नगर के रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित कर रही हैं. लोग इन मुद्दों पर स्पष्ट जवाब चाहते हैं, लेकिन राजनेता अभी भी वादों और आरोप-प्रत्यारोप में उलझे हैं.
क्या इस बार बदलेगी राजनीति?
करावल नगर के मतदाताओं की सोच में इस बार बदलाव दिख रहा है. युवा मतदाता विशेष रूप से चाहते हैं कि क्षेत्र की छवि दंगों और सांप्रदायिकता से हटकर विकास और रोजगार पर आधारित हो. दयालपुर के रहने वाले सुधीर शर्मा कहते हैं कि हमने बहुत दर्द देखा है. इस बार हमें ऐसा नेता चाहिए जो हमारे लिए काम करे, न कि हमें बांटे.
चुनाव में क्या है आगे की राह
करावल नगर का यह चुनाव सिर्फ एक सीट का नहीं, बल्कि दिल्ली की राजनीति की दिशा तय करेगा. क्या मतदाता पुराने घावों से बाहर निकलकर एक नई शुरुआत करेंगे या फिर राजनीति की पुरानी खाई में उलझे रहेंगे. जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है, करावल नगर की सड़कों पर चुनावी गर्मी बढ़ रही है. हर पार्टी अपने वादों और मुद्दों के साथ जनता को साधने की कोशिश कर रही है. अब यह जनता पर निर्भर करता है कि वे अपनी प्राथमिकताओं को ध्यान में रखकर फैसला लें. साथ ही 2025 का यह चुनाव न केवल करावल नगर, बल्कि पूरे दिल्ली को एक संदेश देगा कि राजनीति विकास के रास्ते पर आगे बढ़ेगी या दंगों और नफरत की दीवारों में कैद रहेगी.
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