Mustafabad Name Change: दिल्ली की राजनीति में नाम बदलने की बहस ने एक नया मोड़ ले लिया है. मुस्तफाबाद विधानसभा क्षेत्र का नाम बदलने का प्रस्ताव आज दिल्ली विधानसभा में पेश होने जा रहा है. बीजेपी विधायक और विधानसभा उपाध्यक्ष मोहन सिंह बिष्ट यह प्रस्ताव रखेंगे कि मुस्तफाबाद का नाम बदलकर 'शिव विहार' कर दिया जाए.
नाम बदलने की मांग और राजनीतिक संदर्भ
बीजेपी विधायक मोहन सिंह बिष्ट ने यह तर्क दिया है कि जब किसी क्षेत्र में 60% से अधिक आबादी हिंदू समुदाय की है, तो उस क्षेत्र का नाम हिंदू संस्कृति से जुड़ा क्यों न हो. उनके अनुसार यह कदम 'गुलामी की मानसिकता' को खत्म करने की दिशा में है. चुनाव के दौरान उन्होंने यह वादा किया था, जिसे अब वे विधानसभा में औपचारिक रूप से प्रस्ताव के रूप में पेश कर रहे हैं. हालांकि, यह 'निजी सदस्य प्रस्ताव' (Private Member Resolution) है, जिसे सरकार की आधिकारिक मंजूरी नहीं मिली है. ऐसे मामलों में अंतिम निर्णय निर्वाचन आयोग (Election Commission) लेता है, न कि राज्य सरकार. इसलिए इसे एक राजनीतिक रणनीति के रूप में भी देखा जा रहा है.
इतिहास और परंपरा बनाम नया बदलाव
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मुस्तफाबाद का ऐतिहासिक महत्व है. कहा जाता है कि इसका नाम हजरत मुस्तफा बाबा के नाम पर रखा गया था, जिनकी समाधि यहां स्थित है. इस क्षेत्र में मुस्लिम, ओबीसी, ब्राह्मण, गुर्जर और अन्य समुदायों की मिश्रित आबादी है. लंबे समय से यह क्षेत्र अपने वर्तमान नाम से जाना जाता रहा है, लेकिन अब इसके बदलाव को लेकर राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई है. नाम बदलने को लेकर समाज दो भागों में बंटा हुआ नजर आ रहा है. एक पक्ष इसे सांस्कृतिक पहचान का मुद्दा मानता है, जबकि दूसरा पक्ष इसे धार्मिक ध्रुवीकरण और चुनावी राजनीति का हिस्सा बता रहा है.
क्या होगा प्रभाव?
अगर यह प्रस्ताव पारित होता है, तो सरकारी दस्तावेजों, आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और अन्य आधिकारिक रिकॉर्ड में बदलाव की प्रक्रिया होगी. लोगों को प्रशासनिक स्तर पर कई दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. हालांकि, बीजेपी इसे सांस्कृतिक पुनरुद्धार और क्षेत्र की नई पहचान के रूप में देख रही है. पार्टी के अनुसार यह नाम परिवर्तन स्थानीय जनता की भावना का सम्मान करने और इतिहास को सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने का प्रयास है. अब देखना होगा कि विधानसभा में इस प्रस्ताव को समर्थन मिलता है या यह केवल एक चुनावी एजेंडा बनकर रह जाता है.
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