Greater Noida : यमुना एक्सप्रेसवे और लैंड फॉर डेवलपमेंट (एलएफडी) प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहीत जमीन को लेकर वर्षों से संघर्ष कर रहे 11 गांवों के ग्रामीणों की उम्मीद अब फिर से जाग उठी है. यमुना प्राधिकरण ने आबादी लीजबैक के दावों की फिर से जांच करने का फैसला किया है, जो ग्रामीणों के लिए एक बड़ी राहत मानी जा रही है.
क्या है मामला
यूपी सरकार ने यमुना एक्सप्रेसवे और एलएफडी के लिए जेपी इंफ्राटेक को जमीन सौंपी थी. गौतमबुद्ध नगर से लेकर आगरा तक पांच-पांच सौ हेक्टेयर की जमीन अधिग्रहीत की गई, जिसमें नोएडा जिले के 11 गांव प्रमुख रूप से प्रभावित हुए. ग्रामीणों का आरोप है कि अधिग्रहण में केवल खेत नहीं बल्कि उनकी आबादी वाले मकान भी शामिल कर लिए गए और तोड़ दिए गए. ग्रामीण लगातार यमुना प्राधिकरण से आबादी के हिस्से की लीजबैक की मांग कर रहे थे, लेकिन प्राधिकरण 2012 की सेटेलाइट इमेज को आधार बना रहा था. चूंकि गांवों की आबादी पहले ही उजाड़ दी गई थी, इसलिए 2012 की इमेज से उनकी पुष्टि कर पाना संभव नहीं हो पा रहा था.
अब क्या बदला है
ग्रामीणों की परेशानी और लंबे समय से चल रहे विवाद को देखते हुए यमुना प्राधिकरण के बोर्ड ने एक अहम फैसला लिया है. अब 2012 से पहले की सेटेलाइट इमेज को भी जांच का आधार बनाया जाएगा. इससे उन ग्रामीणों के दावों की भी पुष्टि हो सकेगी जिनकी आबादी अधिग्रहण के दौरान उजाड़ दी गई थी. यीडा के सीईओ डॉ. अरुणवीर सिंह ने बताया कि अब जमीन अधिग्रहण शुरू होने की तारीख से लेकर 2012 तक की इमेज की मदद से यह देखा जाएगा कि किस गांव में कितनी आबादी थी और क्या वाकई वहां निर्माण था या नहीं. इसके आधार पर आबादी लीजबैक पर फैसला लिया जाएगा.
ग्रामीणों को राहत
यह फैसला उन ग्रामीणों के लिए बड़ी राहत साबित हो सकता है, जिनकी आवाज अब तक दस्तावेजी प्रमाणों के अभाव में अनसुनी रह गई थी. अब उम्मीद है कि वर्षों पुरानी उनकी मांगों पर न्याय होगा और लीजबैक की प्रक्रिया में तेजी आएगी.
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