CM Rekha Gupta: दिल्ली में सत्ता परिवर्तन के बाद एक नई नीति अपनाई गई, जिसमें प्रशासनिक स्थिरता और सुचारू संचालन को प्राथमिकता दी गई. नई सरकार ने यह तय किया कि अदालतों में चल रहे उन सभी मुकदमों को वापस लिया जाएगा, जो पिछली सरकार द्वारा केंद्र सरकार, एलजी (उपराज्यपाल) और ब्यूरोक्रेट्स के खिलाफ दायर किए गए थे.
नया फैसला क्यों लिये गया गया?
सरकार का मानना है कि ऐसे मुकदमे न केवल न्यायालयों पर बोझ डाल रहे थे, बल्कि प्रशासनिक कार्यों में भी अनावश्यक रुकावटें उत्पन्न कर रहे थे. अधिकारियों और सरकारी विभागों का ध्यान इन मुकदमों में उलझा हुआ था, जिससे विकास योजनाओं और जनता से जुड़ी महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर प्रभाव पड़ रहा था.
शुरू कर दी गई प्रक्रिया
सूत्रों के अनुसार, इस फैसले को लागू करने के लिए सरकार ने कानून विभाग को निर्देश दिए हैं कि वे अदालतों में लंबित इन मामलों को जल्द से जल्द वापस लेने की प्रक्रिया शुरू करें. एक अधिकारी ने बताया कि अगले कुछ दिनों में अदालतों में संबंधित याचिकाएं दायर की जाएंगी, ताकि औपचारिक रूप से इन मुकदमों को समाप्त किया जा सके.
कौनसे मामले वापस लिए जायेंगे?
सरकार द्वारा वापस लिए जाने वाले प्रमुख मामलों में दिल्ली विद्युत नियामक आयोग (डीईआरसी) के चेयरमैन की नियुक्ति, दिल्ली जल बोर्ड को वित्तीय सहायता, दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में सरकारी वकीलों की नियुक्ति और विदेश में शिक्षकों के प्रशिक्षण से जुड़े मामले शामिल हैं. इसके अलावा, एनजीटी (राष्ट्रीय हरित अधिकरण) द्वारा जारी आदेशों को चुनौती देने वाली याचिकाएं भी वापस लेने की योजना बनाई गई है. इसमें यमुना सफाई निगरानी समिति और ठोस कचरा प्रबंधन से जुड़े आदेशों को लेकर सरकार और एलजी के बीच विवाद था.
क्यों का है प्रभाविष्य?
सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, इन मुकदमों ने न केवल प्रशासनिक प्रक्रिया को प्रभावित किया बल्कि राजनीतिक टकराव भी बढ़ाया. नई सरकार का कहना है कि वह विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है और किसी भी प्रकार की अनावश्यक कानूनी लड़ाई में समय और संसाधन बर्बाद नहीं करना चाहती. साथ ही अब जब सरकार ने यह महत्वपूर्ण फैसला ले लिया है, तो आगे की कार्यवाही पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं. यह देखना दिलचस्प होगा कि अदालतें इस फैसले पर कैसी प्रतिक्रिया देती हैं और प्रशासन में इससे क्या बदलाव आते हैं. जनता को भी इससे राहत मिलने की उम्मीद है, क्योंकि इसका सीधा असर सरकारी कार्यों की गति और नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन पर पड़ सकता है.
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