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DNA: बद्रीनाथ में 'रील-भक्तों' का हुजूम! मंदिर, पूजा के लिए या मारपीट के लिए? धाम को स्टूडियो समझने वाली सोच का विश्लेषण

DNA में अब मंदिर को स्टूडियो समझने वाली सोच का विश्लेषण करेंगे. कई जन्मों के पुण्य से चार धाम यात्रा का सौभाग्य मिलता है. चार धाम यात्रा को सनातन में कितना महत्व दिया गया है, लेकिन क्या आज धार्मिक यात्रा करनेवाले लोगों में भक्ति और अपने आराध्य के प्रति समर्पण का वही भाव है. ये सवाल हम क्यों पूछ रहे हैं ये आपके लिए जानना बेहद जरूरी है.

DNA: बद्रीनाथ में 'रील-भक्तों' का हुजूम! मंदिर, पूजा के लिए या मारपीट के लिए? धाम को स्टूडियो समझने वाली सोच का विश्लेषण
Shwetank Ratnamber|Updated: Jul 04, 2025, 12:13 AM IST
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चार धाम यात्रा में आजकल आस्था का मेला कम और रीलबाजों की भीड़ ज्यादा नजर आती है. सनातन धर्म है, कोई मजाक नहीं है. मंदिर, हिंदू आस्था का केंद्र है, कोई अखाड़ा नहीं है कि पहलवानी दिखाने लगें. फिर आपमें, और उस तजम्मुल में क्या फर्क रह जाएगा. जो कांवड़ रूट पर पंडित जी वैष्णो ढाबे में गोपाल बनकर काम कर रहा था और हिंदू आस्था से धोखा कर रहा था.

 'पंडित जी' के नाम पर धोखा बद्रीनाथ धाम के बाहर मारपीट

सनातन के दुश्मन वो लोग तो हैं ही जो अपने फायदे लिए अपनी पहचान छिपाकर अपना नाम बदलकर श्रद्धालुओं के साथ छल कर रहे हैं. ये लोग सनातन की पवित्रता और आस्था के लिए बड़ा खतरा है. इनके साथ सनातन के खिलाफ फेक नैरेटिव फैलानेवाला ग्रुप भी सक्रिय है. दूसरी तरफ सनातन की पवित्रता को खतरा उन लोगों से भी है जो अपनी आस्था का खुलकर दिखावा करते हैं.

रीलबाजों से कैसे बचेगी आस्था?

ये वो लोग हैं जिनकी भक्ती भगवान में नहीं रील में है. सोचिए कोई भक्त भला अपने उपास्य के धाम के बाहर कैसे हाथापाई कर सकता है. भक्ति पवित्र मन से भगवान को समर्पित प्रार्थना है. लेकिन जो लोग भगवान के धाम के सामने एक दूसरे से मारपीट करें, एक दूसरे को अपशब्द कहें सोचिए क्या उन्हें भक्त कहा जा सकता है. क्या उनकी भक्ति पवित्र है. क्या ऐसे दिखावटी भक्तों से सनातन की पवित्रता को खतरा नहीं है. चर्चा करते हैं आडम्बर से भरे भक्तों से सनातन के खतरे की.

श्रद्धालु नहीं 'रीलभक्त' कर रहे मारपीट 

दरअसल बद्रीनाथ धाम मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने फोटो खिंचवाने के लिए श्रद्धालु मारपीट कर रहे है. आसपास खड़े दूसरे श्रद्धालु इन्हें रोकने की कोशिश करते हैं, लेकिन मारपीट नहीं रुकती. कुछ कोई वीडियो बनाने में बिजी तो कोई और किसी काम में. अब कहा जाता है कि भक्ति पवित्र मन से ईश्वर की आराधना है. क्या इन तस्वीरों को देखकर हम कह सकते हैं कि भगवान बद्री विशाल के धाम पहुंचे इन तीर्थयात्रियों के मन में भक्ति का भाव है. इनकी श्रद्धा भगवान बद्री विशाल में नहीं, मानो रील में है. क्या इन्हें श्रद्धालु कहना सच्ची आस्था से भरे श्रद्धालुओं का अपमान नहीं है.

क्योंकि ये भगवान बद्रीनाथ के भक्त नहीं हैं बल्कि रीलभक्त हैं. इसलिए आज हम पूरी जिम्मेदारी से इन्हें भक्त नहीं रीलभक्त ही कहेंगे. इन रीलभक्तों ने कैसे बद्रीनाथ धाम की गरिमा गिराई हम आपको बताएंगे. लेकिन पहले आपको सनातन में चार धाम यात्रा के महत्व और पवित्रता पर एक छोटी सी जानकारी जारूरी शेयर करना चाहेंगे.

चार धाम की कहानी

- आदि शंकराचार्य ने करीब 1200 साल पहले आठवी शाताब्दी में चार प्रमुख धामों को प्रतिष्ठित किया.

- चार धाम यात्रा को सनातन के चार पुरुषार्थधर्म, अर्थ, काम, मोक्षको प्राप्त करने का साधन माना गया

- गंगा और यमुना के उद्गम तक पहुंचना आत्मशुद्धि का प्रतीक है

- मान्यता है कि केदारनाथ में भगवान शिव की आराधना सभी पापों का नाश करती है.

- मान्यता है कि बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु के दर्शन से मोक्ष प्राप्त होता है.

संक्षेप में कहें तो चार धाम यात्रा धर्म और मोक्ष की प्राप्ति का साधन है. यहां हम आपको बताना चाहेंगे की आज तकनीक के विकास के साथ ही चार धाम यात्रा आसान हो गई है. पहले इसे बेहद दुर्गम और कठीन यात्रा माना जाता था. जनश्रुति है कि गृहस्थ अपने सभी दायित्वों को पूरा करने के बाद जब वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश करते थे तभी चारधाम की यात्रा करते थे. इसलिए इस यात्रा को मोक्ष का द्वार भी कहा जाता है.

इंस्टाग्राम का द्वार?

सोचिए ऐसी पवित्र यात्रा को इंस्टाग्राम का द्वार बना दिया गया है. जो यात्रा आसक्ति का त्याग कर सांसारिक मोह से मुक्त होकर स्वंय को ईश्वर के चरणों में समर्पित करने यात्रा थी उसे लाइक्स और कमेंट के होड़ में इन रीलभक्तों ने इंस्टाग्राम का द्वार बना दिया है.

साल में करीब 6 महीने ही चार धाम यात्रा होती है. इन 6 महीने में भी खराब मौसम और दुरुह परिस्थितयों के कारण कई बार यात्रा रोक दी जाती है. श्रद्धालु आज भी कठिन परिस्थितियों और दुर्गम रास्तों से होते हुए केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम पहुंचते हैं.

सोचिए ऐसी पवित्र यात्रा को आडम्बर से भरे इन रीलभक्तों ने रील, फोटो और वीडियो ब्लॉग का स्रोत बना दिया है. आडम्बर से भरे इन रील के श्रद्धालुओं के लिए आस्था प्रमुख भाव नहीं है, आस्था का प्रदर्शन ही प्रमुख है. आज हम सनातन की पवित्रता को चोट पहुंचानेवाले इन रीलबाज धार्मिक पर्यटकों को याद दिलाना चाहते हैं कि भक्ति में आडम्बर नहीं आराध्य के प्रति समर्पण और पवित्रता ही प्रमुख भाव होता है. सोचिए जो श्रद्धालु धैर्यपूर्वक चार धाम यात्रा शुरू होने की प्रतिक्षा करते हैं उन्हें इन तस्वीरों से कितनी ठेस पहुंची होगी. भक्ति का पहला चरण कलुषित भावों का त्याग होता है.

डीएनए स्पेशल

लेकिन यहां सिर्फ एक फोटो के लिए मारपीट हो रही है. मोक्ष के द्वार को इंस्टाग्राम का द्वार बनाने वाले इन रीलभक्तों को आज हम 17 जून 2025 को DNA में दिखाई गई कहानी जरूर याद दिलाना चाहेंगे. 17 जून को हमने कंचन कुमारी उर्फ कमल कौर भाभी नाम की सोशल मीडिया स्टार की कहानी दिखाई थी. सोशल मीडिया पर उनके 4 लाख से ज्यादा फॉलोअर्स थे. उनके वीडियो हजारों-लाखों, करोड़ों लोग देखते थे. लेकिन जब उनका अंतिम संस्कार हुआ तो उन 4 लाख फॉलोअर्स में से 4 लोग भी नहीं आए.

इसलिए अब हम लाइक, कमेंट और शेयर की लालसा में मोक्ष के द्वार को इंस्टाग्राम का द्वार बनानेवाले रीलभक्तों से ये कहेंगे कि सोशल मीडिया पर दिखावा और खुद को सेलिब्रिटी बताने वाले क्षणिक सुख के लिए आस्था को ठेस नहीं पहुंचाएं. वो चाहें तो किसी पर्यटक स्थल पर जाकर रील बना सकते हैं. उन्हें समझना चाहिए की पवित्र धाम में रील बनाने और सोशल मीडिया पर उनके प्रदर्शन से श्रद्धालुओं की आस्था को ठेस पहुंचती है.

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