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पहले गाजा और अब ईरान, भारत की चुप्पी परेशान करने वाली... सोनिया गांधी बोलीं- अभी भी देर नहीं हुई

इजरायल और ईरान के बीच पिछले 9 दिनों से लगातार जंग जारी है, जिससे दोनों देशों को भारी नुकसान हुआ है. इस बीच कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ईरान पर इजराइली हमले की निंदा की है और कहा है कि ऐसे हालात में भारत की चुप्पी परेशान करने वाली है.

पहले गाजा और अब ईरान, भारत की चुप्पी परेशान करने वाली... सोनिया गांधी बोलीं- अभी भी देर नहीं हुई
Sumit Rai|Updated: Jun 21, 2025, 12:33 PM IST
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इजरायल और ईरान के बीच पिछले 9 दिनों से लगातार जंग जारी है और इस दौरान दोनों देश एक-दूसरे पर जोरदार हमले कर रहे हैं. इजरायल और ईरान के हवाई हमलों में दोनों को भारी नुकसान हो रहा है और कई शहर तबाह हो गए हैं. वॉशिंगटन स्थित ईरानी ह्यूमन राइट्स ग्रुप के अनुसार, अब तक इजराइल में 24 लोग मारे गए हैं, जबकि 900 से ज्यादा घायल हुए हैं. जबकि, ईरान में 722 लोगों की मौत हो चुकी है और 2,546 लोग घायल हुए हैं. इस बीच कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ईरान पर इजराइली हमले की निंदा की है और कहा है कि ऐसे हालात में भारत की चुप्पी परेशान करने वाली है.

पहले गाजा और अब ईरान, भारत की चुप्पी परेशान करने वाली...

द हिंदू में लिखे आर्टिकल में सोनिया गांधी ने कहा है, '13 जून 2025 को दुनिया ने एक बार फिर एकतरफा सैन्यवाद के खतरनाक परिणामों को देखा है, जब इजरायल ने ईरान और उसकी संप्रभुता के खिलाफ एक बेहद परेशान करने वाला और गैरकानूनी हमला किया. कांग्रेस ने ईरानी में हो रहे इन हमलों की निंदा की है, जो गंभीर क्षेत्रीय और वैश्विक परिणामों के साथ एक खतरनाक वृद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं. गाजा में अपने क्रूर और असंगत अभियान के अलावा इजरायल कई हालिया कार्रवाइयों की तरह यह ऑपरेशन नागरिक आम नागरिकों की जान और क्षेत्रीय स्थिरता को पूरी तरह नजरअंदाज करते हुए चलाया गया क्रूर और एकतरफा है. इजरायल के इस तरह के एक्शन सिर्फ क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ाते हैं और आगे आने वाले समय में बड़े संघर्ष के बीज बोते हैं.'

सोनिया गांधी ने आगे लिखा, 'यह हमला ऐसे समय में हुआ है जब ईरान और अमेरिका के बीच कूटनीतिक प्रयास आशाजनक संकेत दे रहे थे, यह और भी अधिक परेशान करने वाला है. इस साल पहले ही पांच दौर की वार्ता हो चुकी थी और छठी वार्ता जून में होने वाली थी. हाल ही में मार्च 2025 में अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गब्बार्ड ने संसद में स्पष्ट रूप से बताया था कि ईरान परमाणु हथियार कार्यक्रम नहीं चला रहा है और 2003 में इस प्रोग्राम को सस्पेंड किए जाने के बाद से अब तक ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खामेनेई ने इसे दोबारा शुरू करने की अनुमति भी नहीं दी है.'

नेतन्याहू ने तनाव को बढ़ाने का काम किया: सोनिया गांधी

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने आगे लिखा, 'यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के नेतृत्व में वर्तमान इजराइली नेतृत्व का शांति को कमजोर करने और उग्रवाद को बढ़ावा देने का एक लंबा और दुर्भाग्यपूर्ण रिकॉर्ड है. उनकी सरकार द्वारा अवैध बस्तियों का निरंतर विस्तार, अति-राष्ट्रवादी गुटों के साथ गठबंधन और दो-राज्य समाधान में बाधा डालने से न केवल फिलिस्तीनी लोगों की पीड़ा बढ़ी है, बल्कि व्यापक क्षेत्र को निरंतर संघर्ष की ओर धकेला है. वास्तव में, इतिहास हमें याद दिलाता है कि नेतन्याहू ने नफरत की आग को हवा देने में मदद की, जिसकी परिणति 1995 में प्रधानमंत्री यित्ज़ाक राबिन की हत्या में हुई, जिससे इजरायल और फिलिस्तीनियों के बीच सबसे आशाजनक शांति पहलों में से एक समाप्त हो गई. इस रिकॉर्ड को देखते हुए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि नेतन्याहू ने जुड़ाव के बजाय तनाव को बढ़ाना चुना.

अब डोनाल्ड ट्रंप भी अपनी बात से मुकरे: सोनिया गांधी

सोनिया गांधी ने आगे लिखा, 'यह बेहद अफसोस की बात है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जिन्होंने कभी अमेरिका के अंतहीन युद्धों और सैन्य-औद्योगिक परिसर के प्रभाव के खिलाफ आवाज उठाई थी, अब इस विनाशकारी रास्ते पर चलने के लिए तैयार हैं. उन्होंने खुद बार-बार इस बात की ओर इशारा किया है कि इराक के पास सामूहिक विनाश के हथियार होने के बारे में जानबूझकर किए गए झूठे दावों के कारण कितना महंगा युद्ध हुआ, जिसने क्षेत्र को अस्थिर कर दिया और इराक में भारी तबाही मचाई. ऐसे में 17 जून को डोनाल्ड ट्रंपका अपनी ही खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट को खारिज करते हुए यह दावा करना कि ईरान परमाणु हथियार हासिल करने के 'बहुत करीब' था, यह बेहद निराशाजनक है. दुनिया को ऐसे नेतृत्व की उम्मीद और जरूरत है जो तथ्यों पर आधारित हो और कूटनीति से प्रेरित हो, न कि बल या झूठ से.'

दोहरे मानदंडों के लिए कोई जगह नहीं: सोनिया गांधी

सोनिया गांधी ने लिखा, 'क्षेत्र के भयावह इतिहास को देखते हुए परमाणु-सशस्त्र ईरान के बारे में इजरायल की सुरक्षा चिंताओं को खारिज नहीं किया जा सकता है. हालांकि, दोहरे मानदंडों के लिए कोई जगह नहीं हो सकती है. इजरायल खुद एक परमाणु हथियार संपन्न देश है, जिसका अपने पड़ोसियों के खिलाफ सैन्य आक्रामकता का लंबा रिकॉर्ड है. इसके विपरीत, ईरान परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हिस्सा है और 2015 की संयुक्त व्यापक कार्य योजना के तहत प्रतिबंधों में राहत के बदले यूरेनियम संवर्धन पर सख्त सीमाओं पर सहमत हुआ था. यह समझौता संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों (अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस), जर्मनी और यूरोपीय संघ जैसे देशों की निगरानी में हुआ था. हालांकि, साल 2018 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा एकतरफा रूप से छोड़ दिया गया. उस निर्णय ने वर्षों की कड़ी कूटनीति को खत्म कर दिया और एक बार फिर क्षेत्र की नाजुक स्थिरता पर एक लंबी छाया डाल दी.

उन्होंने आगे लिखा, 'भारत ने भी उस विच्छेद के परिणामों को झेला है. ईरान पर प्रतिबंधों के फिर से लागू होने से भारत की अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (North-South Transport Corridor) और चाबहार बंदरगाह के विकास सहित प्रमुख रणनीतिक और आर्थिक परियोजनाओं को आगे बढ़ाने की क्षमता पर गंभीर रूप से प्रतिबंध लगा है. इस पहल से मध्य एशिया के साथ बेहतर संपर्क और अफगानिस्तान तक अधिक सीधी पहुंच सुगम हो सकती है.

भारत का रुख परेशान करने वाला, अभी भी देर नहीं हुई: सोनिया गांधी

सोनिया गांधी ने आगे लिखा, 'इस मानवीय आपदा के सामने नरेंद्र मोदी सरकार ने शांतिपूर्ण दो-राज्य समाधान के लिए भारत की दीर्घकालिक और सैद्धांतिक प्रतिबद्धता को लगभग त्याग दिया है, जो एक संप्रभु, स्वतंत्र फिलिस्तीन की कल्पना करता है जो आपसी सुरक्षा और सम्मान के साथ इजरायल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर रह सके. गाजा में तबाही और अब ईरान के खिलाफ अकारण तनाव पर नई दिल्ली की चुप्पी हमारी नैतिक और कूटनीतिक परंपराओं से एक परेशान करने वाला प्रस्थान दर्शाती है. यह न केवल आवाज का नुकसान, बल्कि मूल्यों का समर्पण भी दर्शाता है. अभी भी बहुत देर नहीं हुई है. भारत को स्पष्ट रूप से बोलना चाहिए, जिम्मेदारी से काम करना चाहिए और तनाव को कम करने और पश्चिम एशिया में बातचीत की वापसी को बढ़ावा देने के लिए उपलब्ध हर कूटनीतिक चैनल का उपयोग करना चाहिए.

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