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'सुझाव देना आलोचना या निंदा नहीं; गंदी सियासत से बचें पार्टियां', उपराष्ट्रपति धनखड़ का मौजूदा राजनीति पर कटाक्ष

Jagdeep Dhankhar: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राजनीतिक दलों के बीच सौहार्द और आपसी सम्मान की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा, 'मैं देश के राजनीतिक परिदृश्य के सभी लोगों से अपील करता हूं. कृपया एक-दूसरे का सम्मान करें. कृपया टीवी या अन्य माध्यमों पर एक-दूसरे के नेताओं के खिलाफ अनुचित भाषा का प्रयोग न करें. 

'सुझाव देना आलोचना या निंदा नहीं; गंदी सियासत से बचें पार्टियां', उपराष्ट्रपति धनखड़ का मौजूदा राजनीति पर कटाक्ष
Md Amjad Shoab|Updated: Jul 20, 2025, 08:22 PM IST
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Jagdeep Dhankhar: उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने रविवार, 20 जून को राजनीतिक दलों के बीच सौहार्द की अपील की. उन्होंने इस दौरान कहा कि सुझाव देना न तो आलोचना है और न ही निंदा. सभी दल रचनात्मक राजनीति करें. मैं कल्पना नहीं कर सकता कि कोई राजनीतिक दल ‘भारत’ की संकल्पना के विरोध में हो. उपराष्ट्रपति ने आग्रह किया कि एक-दूसरे का सम्मान करें, टीवी पर अनुचित भाषा का प्रयोग न करें, व्यक्तिगत हमलों से बचें. टीवी बहसों में कटुता पर बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि 'कानों को थकान नहीं हो रही क्या? हमारे कान पक गए हैं, है ना?'.

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राजनीतिक दलों के बीच सौहार्द और आपसी सम्मान की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा, 'मैं देश के राजनीतिक परिदृश्य के सभी लोगों से अपील करता हूं. कृपया एक-दूसरे का सम्मान करें. कृपया टीवी या अन्य माध्यमों पर एक-दूसरे के नेताओं के खिलाफ अनुचित भाषा का प्रयोग न करें. यह संस्कृति हमारी सभ्यतागत परंपरा का हिस्सा नहीं है। हमें अपनी भाषा को लेकर सतर्क रहना चाहिए. व्यक्तिगत हमलों से बचिए. मैं सभी राजनेताओं से अपील करता हूं. एक-दूसरे को गलत नामों से पुकारना बंद करें. जब विभिन्न दलों के लोग वरिष्ठ नेताओं के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, तो इससे हमारी संस्कृति को नुकसान होता है.

'हमें पूरी गरिमा, आपसी सम्मान बनाए रखना चाहिए. यही हमारी संस्कृति की मांग है. अन्यथा हम विचारों में एकता कैसे रख पाएंगे?. यकीन मानिए, अगर राजनीतिक संवाद उच्च स्तर पर हो, अगर नेता आपस में अधिक घुल-मिलें, एक-दूसरे से चर्चा करें, विचारों का व्यक्तिगत स्तर पर आदान-प्रदान करें — तो राष्ट्र का हित निश्चित रूप से सुरक्षित रहेगा. हमें आपस में क्यों लड़ना चाहिए? हमें अपने भीतर दुश्मन क्यों ढूंढ़ने चाहिए? मेरे ज्ञान के अनुसार, हर भारतीय राजनीतिक दल और हर सांसद राष्ट्रवादी है. वह देश पर विश्वास करता है। वह देश की प्रगति में विश्वास करता है.'

लोकतंत्र ऐसा नहीं होता कि एक ही पार्टी हमेशा सत्ता में बनी रहे. हमने अपने जीवनकाल में देखा है — राज्य स्तर पर, पंचायत स्तर पर, नगर पालिका स्तर पर परिवर्तन होता है, यही लोकतांत्रिक प्रक्रिया है. लेकिन एक बात निश्चित है. विकास की निरंतरता होनी चाहिए, हमारी सभ्यतागत परंपराओं की निरंतरता होनी चाहिए, और यह केवल एक बात से संभव है. हमें लोकतांत्रिक संस्कृति का सम्मान करना होगा.

'बातचीत करनी होगी, टकराव समाधान नहीं है'

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आगे कहा, 'एक सशक्त लोकतंत्र लगातार कटुता के वातावरण में नहीं रह सकता. जब आप राजनीतिक कटुता देखते हैं, जब आप राजनीतिक वातावरण को उलटी दिशा में जाते देखते हैं, तो आपका मन अशांत होता है. मैं देश के हर व्यक्ति से आग्रह करता हूं कि राजनीतिक तापमान कम किया जाना चाहिए. राजनीति टकराव नहीं है, राजनीति कभी एकपक्षीय नहीं हो सकती. विभिन्न राजनीतिक विचार होंगे, लेकिन राजनीति का मतलब है एक ही लक्ष्य को अलग-अलग तरीकों से पाना. मैं दृढ़ता से मानता हूं कि इस देश का कोई भी व्यक्ति राष्ट्रविरोधी नहीं सोच सकता. मैं कल्पना नहीं कर सकता कि कोई राजनीतिक दल ‘भारत’ की संकल्पना के विरुद्ध हो सकता है. उनके सोचने के तरीके अलग हो सकते हैं, दृष्टिकोण अलग हो सकते हैं, लेकिन उन्हें एक-दूसरे से संवाद करना सीखना होगा, बातचीत करनी होगी, टकराव समाधान नहीं है.'

'जब हम आपस में लड़ते हैं, राजनीतिक क्षेत्र में भी, तब हम अपने दुश्मनों को मजबूत करते हैं. हम उन्हें हमारे बीच विभाजन का पर्याप्त अवसर देते हैं. इसलिए, युवा मन एक शक्तिशाली दबाव समूह है. आपके पास एक मजबूत शक्ति है. आपकी सोच ही नेताओं, सांसदों, विधायकों, पार्षदों को दिशा देगी. राष्ट्र के बारे में सोचिए. विकास के बारे में सोचिए.'

'हमारा एजेंडा हमारे दुश्मनों से प्रभावित क्यों हो?'

राज्यसभा इंटर्नशिप प्रोग्राम (RSIP) के आठवें बैच के उद्घाटन समारोह को उपराष्ट्रपति धनखड़ ने आज  उपराष्ट्रपति निवास में संबोधित करते हुए कहा, 'राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए, विकास के मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए, देश की प्रगति के मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए, राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रीय चिंता के मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. और ऐसा तभी संभव होगा जब भारत वैश्विक मंच पर गर्व से खड़ा हो. हमारी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा बहुत ऊंची है. भारत को बाहरी ताकतों से संचालित किया जा सकता है. यह विचार ही हमारी संप्रभुता के खिलाफ है. हम एक संप्रभु राष्ट्र हैं. फिर हमारा राजनीतिक एजेंडा उन ताकतों द्वारा क्यों तय हो, जो भारत के विरोध में हैं? हमारा एजेंडा हमारे दुश्मनों से प्रभावित क्यों हो?

'बस ज़रा देखिए, हम क्या देखते हैं? क्या सुनते हैं?'

राजनीतिक दलों के बीच कटुता और टीवी डिबेट्स में दिख रही तल्खी की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए उन्होंने कहा, 'हर राजनीतिक दल में परिपक्व नेतृत्व है. हर राजनीतिक दल, चाहे बड़ा हो या छोटा, राष्ट्रीय विकास के लिए प्रतिबद्ध है और इसलिए युवाओं का कर्तव्य है कि वे इस सोच को आगे बढ़ाएं. यह सोच सोशल मीडिया पर दिखनी चाहिए. और जब आप हमारे  टीवी डिबेट्स को शांतिपूर्ण, सकारात्मक और आकर्षक पाएंगे तो कल्पना कीजिए कितना बदलाव आएगा. बस ज़रा देखिए, हम क्या देखते हैं? क्या सुनते हैं? कानों को थकान नहीं होती क्या? कान पक गए हैं ना? भाई, ऐसा क्यों है? हमारी संस्कृति महान है। हमारी विचारधारा की एक मजबूत नींव है. हमारे विचारों में भिन्नता हो सकती है, मतांतर हो सकता है — लेकिन मनभेद कैसे हो सकता है? हम भारतीय हैं। हमारी संस्कृति हमें क्या सिखाती है? — अनंतवाद. अनंतवाद का अर्थ है — वाद–विवाद. वाद–विवाद का अर्थ है — अभिव्यक्ति. अभिव्यक्ति का अर्थ है — आप खुलकर अपनी बात कहें. लेकिन अपने विचार पर इतना यकीन मत करिए कि वही अंतिम सत्य हो. यह न मान लीजिए कि आपके विचार से भिन्न कोई दूसरा विचार हो ही नहीं सकता.'

 मानसून सत्र पर क्या बोले उपराष्ट्रपति?

आगामी मानसून सत्र में सार्थक चर्चा की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए धनखड़ ने कहा, टहमें लचीला रहना चाहिए। हमें अपने दृष्टिकोण पर विश्वास होना चाहिए, लेकिन साथ ही हमें दूसरे के दृष्टिकोण का सम्मान भी करना चाहिए. अगर हम मान लें कि सिर्फ हम ही सही हैं और बाकी सब गलत — तो  यह न लोकतंत्र है, न हमारी संस्कृति. यह अहंकार है. यह घमंड है. हमें अपने अहंकार पर नियंत्रण रखना चाहिए. हमें अपनी अभिमान की भावना पर नियंत्रण रखना चाहिए. हमें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि दूसरा व्यक्ति अलग राय क्यों रखता है — यही हमारी संस्कृति है. भारत को ऐतिहासिक रूप से किस लिए जाना जाता है? वाद–संवाद, चर्चा, बहस और मंथन के लिए.

आजकल संसद में यह सब दिखाई नहीं देता. मुझे लगता है कि आगामी सत्र महत्वपूर्ण होगा. मुझे पूरी उम्मीद है कि उसमें  सार्थक और गंभीर विचार-विमर्श होगा, जो भारत को और ऊंचाइयों तक ले जाएगा. यह नहीं कहा जा सकता कि सब कुछ ठीक है. हम कभी ऐसे समय में नहीं रहेंगे जब सब कुछ पूर्ण हो. हमेशा किसी न किसी क्षेत्र में कुछ कमियां रहेंगी. और हमेशा सुधार की गुंजाइश रहती है. अगर कोई किसी चीज़ को सुधारने के लिए सुझाव देता है, तो वह आलोचना नहीं है, वह निंदा नहीं है — वह केवल आगे के विकास के लिए एक सुझाव है. इसलिए मैं सभी राजनीतिक दलों से अपील करता हूं कि रचनात्मक राजनीति में भाग लें. और जब मैं ऐसा कहता हूं, तो मैं सभी दलों से अपील करता हूं-सत्ता पक्ष से भी, और विपक्ष से भी.

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