Gujarat News: गुजरात के सोमनाथ जिले में एक ध्वस्त की गई दरगाह पर ‘उर्स’के आयोजन की अनुमति मांगी गई. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई. इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया और अनुमति देने से इनकार कर दिया. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकारी जमीन पर मंदिरों समेत सभी अनधिकृत निर्माण को हटा दिया गया है. ऐसी जगह पर किसी भी धार्मिक अनुष्ठान की अनुमति नहीं दी जा रही है. जानिए पूरा मामला.
दरगाह पर एक से तीन फरवरी तक ‘उर्स’ आयोजित करने की अनुमति देने संबंधी याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी. न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने गुजरात सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की इन दलीलों पर गौर किया कि सरकारी जमीन पर मंदिरों समेत सभी अनधिकृत निर्माण को हटा दिया गया है. मेहता ने कहा कि उक्त भूमि पर हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों समेत किसी भी गतिविधि की अनुमति नहीं दी जा रही, जिस पर पहले अतिक्रमण था.
आवेदक की ओर से उपस्थित वकील ने कहा कि वहां एक दरगाह थी, जिसे प्राधिकारियों ने ध्वस्त कर दिया. उन्होंने कहा कि दरगाह पर ‘उर्स’ उत्सव मनाने की परंपरा पिछले कई वर्षों से जारी है और अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को इसके लिए अनुमति देने से इनकार कर दिया. आवेदक के वकील ने कहा, ‘‘अगर वे (अधिकारी) कह रहे हैं कि उन्हें आशंका है कि कानून-व्यवस्था से जुड़ी समस्या होगी, तो मैं एक बात सुझाऊंगा. 20 लोग कुछ समय के लिए जाएंगे, वे कार्यक्रम करेंगे और बाहर आ जाएंगे.
वकील ने कहा कि यह 1299 ईस्वी से पहले बनी संरचना थी। पीठ ने पूछा, ‘‘क्या अब कोई संरचना है?’’ वकील ने कहा कि इसे ध्वस्त कर दिया गया और यह एक संरक्षित स्मारक था. मेहता ने कहा कि ध्वस्तीकरण अभियान सभी धर्मों पर लागू होता है. उन्होंने कहा, ‘‘जो कुछ भी अनधिकृत था, उसे ध्वस्त कर दिया गया है. यह निर्विवाद रूप से एक सरकारी भूमि है.
पीठ ने आवेदक के वकील से कहा कि अधिकारियों ने मंदिरों को भी ध्वस्त कर दिया है. इसने साथ ही मेहता से कहा कि अधिकारियों को इस स्थल पर किसी भी धार्मिक समारोह की अनुमति नहीं देनी चाहिए. आवेदन को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि मुख्य मामले को सुने बिना याचिका को मंजूरी नहीं दी जा सकती. पिछले साल 28 सितंबर को, गुजरात के सोमनाथ मंदिर के पास सार्वजनिक भूमि पर कथित अतिक्रमण को हटाने के लिए अभियान चलाया गया था. शीर्ष अदालत में दायर अपने हलफनामे में, गुजरात सरकार ने इस कार्रवाई को उचित ठहराते हुए कहा कि यह सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण हटाने का एक सतत अभियान था. (भाषा)
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