Himachal Rain: एक प्रदेश देश के नक्शे से मिट सकता है. ये प्रदेश कोई समंदर के किनारे नहीं है, जो उसे लील जाएगा. इस प्रदेश को भूकंप जैसी किसी तबाही से भी मिट जाने का खतरा नहीं है. इस प्रदेश को इंसान तबाह कर रहा है और नतीजे में वो कुदरत की तबाही झेल रहा है. हिमाचल की तबाही की तस्वीरें और वीडियोज हर जगह वायरल हैं. खूबसूरत हिमाचल प्रदेश जहां से पिछले कुछ वर्षों में ऐसी तस्वीरें सबसे अधिक आती हैं. टूटते-बिखरते पहाड़, नदियों का सैलाब, तिनके की तरह बहती घर-गृहस्थी और जिंदगियां. बरसात का मौसम कुछ ऐसी ही मनहूसियत लेकर हिमाचल के पहाड़ों में दस्तक देता है. लेकिन हिमाचल की इस हालत को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत ने क्या टिप्पणी की है? कितनी गंभीर बात कही है? चलिए जानते हैं.
...तो हिमाचल गायब हो जाएगा नक्शे से?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर हालात न बदले तो हिमाचल नक्शे से गायब हो जाएगा. आप हैरान हुए होंगे. लेकिन यही टिप्पणी आई है. खूबसूरत हिमाचल गायब हो जाएगा. अब सवाल उठता है कि कोर्ट को इतनी सख्त टिप्पणी क्यों करनी पड़ी? क्योंकि सुप्रीम कोर्ट हिमाचल प्रदेश में विकास के नाम पर चल रही गतिविधियों को लेकर चिंतित है, हैरान है.
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— Zee News (@ZeeNews) August 2, 2025
दरअसल, हिमाचल में अलग-अलग तरीके के निर्माण कार्यों की वजह से पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है. ऐसे में सवाल गंभीर है कि पहाड़ों में विकास के काम करते हुए कहां चूक हो रही है. लोगों तक सुविधाएं पहुंचाना सरकार और सिस्टम की जिम्मेदारी है. लेकिन हर इलाके की अपनी बहुत कुछ साइंटिफिक जरूरतें होती हैं. बाध्यताएं होती हैं, जिन्हें आप नजरअंदाज नहीं कर सकते. सवाल है कि क्या हम हिमाचल की भौगोलिक परिस्थितियों को नहीं समझ पा रहे हैं?
4 हफ्ते में सरकार ने मांगी रिपोर्ट
इसी पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर हालात में जल्द सुधार नहीं हुआ तो वो दिन दूर नहीं जब पूरा हिमाचल प्रदेश ही देश के नक्शे से 'हवा में गायब' हो जाएगा. भगवान करें कि ऐसा न हो. लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि पर्यावरण संतुलन को कायम करने के लिए जरूरी कदम जल्द से जल्द उठाये जाएं. अब कोर्ट ने राज्य सरकार से 4 हफ्ते में रिपोर्ट मांगी है. पूछा है कि पर्यावरण को बचाने के लिए उसकी ओर से क्या कदम उठाए गए हैं और आगे उनकी क्या योजना है?
सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने कहा कि हिमाचल में पर्यावरण असंतुलन की स्थिति बद से बदतर हो गई है. इसी कारण पिछले कुछ वर्षों में राज्य को गंभीर प्राकृतिक आपदा झेलनी पड़ी है. केंद्र और राज्य सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि राजस्व कमाना ही उनका मकसद नहीं है. पर्यावरण की कीमत पर राजस्व अर्जित नहीं किया जा सकता.
'प्रकृति भी नाराज है'
कोर्ट ने कहा कि हिमाचल में जो चल रहा है. जाहिर है कि प्रकृति उनसे नाराज है. इस साल भी सैकड़ों लोग भूस्खलन और बाढ़ की वजह से मारे गए हैं. करोड़ों की संपति बर्बाद हो गई. लेकिन राज्य में विनाश के लिए सिर्फ प्रकृति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. ये आपदाएं मानव निर्मित हैं. पहाड़ों का खिसकना, मकानों का गिरना, सड़क धंसना, सब इसी का नतीजा है.
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी राज्य सरकार की ओर से कुछ इलाकों को ‘ग्रीन एरिया’ घोषित करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान आई. ये चुनौती एक होटल्स और रिजॉर्ट का बिजनेस करने वाली एक कंपनी ने दी थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. कोर्ट ने सरकार के नोटिफिकेशन की सराहना भी की, लेकिन इसे देर से उठाया गया कदम कहा.
जब बात हिमाचल में तबाही की चल रही है तो मॉनसून के इस सीजन में वहां जो कुछ हुआ है उसके बारे में भी आपको जानना चाहिए. आंकड़े आपको डराएंगे. सोचने पर मजबूर करेंगे कि आखिर हिमाचल में हो क्या रहा है? हिमाचल इंसानी गलती की इतनी बड़ी कीमत क्यों चुका रहा है?
हिमाचल में भयानक तबाही
प्रदेश में अब तक अलग अलग आपदाओं में 20 जून से अब तक 173 लोगों की मौत हो चुकी है. पिछले 24 घंटों में कई इलाकों में रिकॉर्ड बारिश हुई है. राज्य भर में 380 से अधिक सड़कें बंद हैं. 750 के करीब बिजली ट्रांसफॉर्मर बंद पड़े हैं. 250 पेयजल योजनाएं भी प्रभावित हुई हैं. चिंता की बात ये है कि आने वाले दिनों में भी मौसम खराब बने रहने का पूर्वानुमान है.
बात मौजूदा वक्त की करें तो भारी बारिश से प्रदेश के तमाम इलाकों में तबाही का आलम है. पूरा ऊना जलमग्न है.चंडीगढ़-धर्मशाला हाईवे पर पहाड़ टूटकर गिरने से आवाजाही में भारी परेशानी आई है. हाईप्रोफाइल इलाकों में भी पानी भरा है. कुल्लू मुख्यालय को जोड़ने वाली सड़क क्षतिग्रस्त हो गई है. रास्ते में दरारें आ गई हैं. घाटी के नदी-नाले उफान पर हैं.
पेड़ों को जब हमने काटा...
हरियाली से नाता तोड़ा...।
पत्थर तोड़े, नदियां मोड़ीं,
धरती का सीना हमने चीर डाला...।
पहाड़ जो चुपचाप सहता रहा,
हर वार, हर ज़ुल्म को सहता रहा...।
किंतु कब तक थमेगा वो आक्रोश?
एक दिन फूट पड़ा क्रोध का घोष...।
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