Muslim Report in India: वैसे तो राजनीतिक तौर पर देश में मुसलमानों को लेकर खूब बात होती है लेकिन हाल ही में एक ऐसी रिपोर्ट आई है जिसमें भारत के मुसलमानों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर पिछले 10 वर्षों में पहली बार एक विस्तृत रिपोर्ट सामने आई है. इस रिपोर्ट का नाम Rethinking Affirmative Action for Muslims in Contemporary India है जो अल्पसंख्यकों के लिए सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों का आकलन करती है. साथ ही भविष्य के लिए एक रूपरेखा प्रस्तुत करती है. यह रिपोर्ट मुसलमानों की शिक्षा, रोजगार और जीवन स्तर को समझने के लिए विभिन्न सरकारी डेटा और सर्वेक्षणों का विश्लेषण करती है.
मुसलमानों का पिछड़ापन क्यों बना मुद्दा?
असल में इस पर इंडियन एक्सप्रेस ने एक विस्तृत रिपोर्ट दी है. इसके मुतबिक भारत में मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति लंबे समय से चिंता का विषय रही है. 2006 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने प्रधानमंत्री के 15-सूत्रीय कार्यक्रम की शुरुआत की जो अल्पसंख्यकों के लिए विशेष योजनाओं को बढ़ावा देने पर केंद्रित था. इससे पहले सच्चर कमेटी (2006) और रंगनाथ मिश्रा आयोग (2007) ने अपनी रिपोर्ट में यह सुझाव दिया था कि मुसलमानों को एक वंचित समुदाय के रूप में देखा जाए और उनके लिए विशेष नीति बनाई जाए.
2014 के बाद एनडीए सरकार ने ‘सबका साथ, सबका विकास’ की नीति अपनाई और अल्पसंख्यकों के लिए योजनाओं को पुनर्गठित किया. हालांकि इस दौरान मुसलमानों को किसी विशेष समूह के रूप में अलग रखने की नीति में बदलाव देखा गया और कल्याणकारी योजनाओं को समावेशी दृष्टिकोण से लागू किया गया.
इस रिपोर्ट के मायने क्या हैं..
रिपोर्ट ने मुसलमानों के हालात को चार मुख्य बिंदुओं पर विश्लेषण किया है.
रिपोर्ट के मुताबिक मुस्लिम बच्चों की उच्च शिक्षा में भागीदारी सबसे कम है. हालांकि हाल के वर्षों में इसमें सुधार हुआ है. मुस्लिम युवाओं का स्नातक स्तर तक पहुंचने का प्रतिशत अन्य सामाजिक-धार्मिक समूहों की तुलना में सबसे कम है. रोजगार के मामले में मुसलमानों को नियमित वेतन वाली नौकरियां पाने में अधिक संघर्ष करना पड़ता है. हालांकि उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले मुसलमान अन्य समुदायों के बराबर अवसर प्राप्त कर सकते हैं लेकिन व्हाइट-कॉलर नौकरियों में उनकी हिस्सेदारी अब भी कम है.
सुधार भी इस रिपोर्ट में दिए गए. रिपोर्ट ने मुसलमानों के लिए सकारात्मक कार्रवाई को पुनर्परिभाषित करने के लिए दो मुख्य सिद्धांत सुझाए हैं.
इसके आधार पर रिपोर्ट ने सात सिफारिशें दीं हैं.
कुल मिलकर रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि भारत में मुसलमानों को अब भी आर्थिक और सामाजिक असमानताओं का सामना करना पड़ रहा है. सरकार की नीतियों में बदलाव आए हैं लेकिन मुसलमानों की शिक्षा और रोजगार में स्थिति में अधिक सुधार की जरूरत है. रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया है कि समावेशी विकास और धर्म-निरपेक्ष सामाजिक नीतियों को अपनाकर मुसलमानों की स्थिति को बेहतर किया जा सकता है.
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