Jallianwala Bagh: देश की आजादी के इतिहास में 13 अप्रैल का दिन एक दुखद नरसंहार के साथ दर्ज है. वह वर्ष 1919 का 13 अप्रैल का दिन था, जब जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा के लिए एकत्र हुए हजारों भारतीयों पर अंग्रेज हुक्मरान ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं, पंजाब के अमृतसर जिले में ऐतिहासिक स्वर्ण मंदिर के नजदीक जलियांवाला बाग नाम के इस बगीचे में अंग्रेजों की गोलीबारी से घबराई बहुत सी औरतें अपने बच्चों को लेकर जान बचाने के लिए कुएं में कूद गईं. निकलने का रास्ता संकरा होने की वजह से बहुत से लोग रास्त में फंस गए और भगदड़ में कुचले गए. इस बार इस दर्दनाक नरसंहार की 106वीं बरसी है.
बैसाखी मनाने गए थे लोग
साथ ही साथ बता दें कि हजारों लोग गोलियों की चपेट में आ गए. बताया जाता है कि लोग बैसाखी मनाने के लिए एकत्रित हुए थे. हलांकि आधिकारिक वेबसाइट और दस्तावेजों से पता चलता है कि ये एक राजनीतिक सभा थी. जनरल डायर के गैरकानूनी ढंग से एकत्र होने पर रोक लगाने के आदेश के बावजूद लोग बाग में एकत्र हुए, जहां दो प्रस्तावों पर चर्चा होनी थी, एक 10 अप्रैल की गोलीबारी की निंदा करने वाला था और दूसरा प्राधिकारियों से उनके नेताओं को रिहा करने का अनुरोध करने वाला था.
दिया आदेश
जैसे ही डायर को ये जानकारी लगी वो अपने सैनिकों के साथ बाग की ओर बढ़ा और गोली चलाने का आदेश दिया. ऐसा कहा जाता है कि 10-15 मिनट तक चली गोलीबारी में 1650 राउंड गोलियां चलीं. जनरल डायर और इरविंग द्वारा बताई गई मृतकों की कुल अनुमानित संख्या 291 थी.हालांकि, आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता वाली समिति सहित अन्य रिपोर्टों में मृत्यु का आंकड़ा 500 से अधिक बताया गया है. बाग में लगी पट्टिका पर लिखा है कि १२० शव तो सिर्फ कुएं से ही मिले. शहर में कर्फ्यू लगा था जिससे घायलों को इलाज के लिए भी कहीं ले जाया नहीं जा सका. लोगों ने तड़प-तड़प कर वहीं दम तोड़ दिया था.
जांच के लिए हंटर कमीशन नियुक्त किया
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस हत्याकाण्ड की विश्वव्यापी निंदा हुई जिसके दबाव में भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट एडविन मॉण्टेगू ने 1919 के अंत में इसकी जांच के लिए हंटर कमीशन नियुक्त किया. कमीशन के सामने ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने स्वीकार किया कि वह गोली चला कर लोगों को मार देने का निर्णय पहले से ही ले कर वहां गया था और वह उन लोगों पर चलाने के लिए दो तोपें भी ले गया था जो कि उस संकरे रास्ते से नहीं जा पाई थीं. हंटर कमीशन की रिपोर्ट आने पर 1920 में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को पदोन्नति करके कर्नल बना दिया गया और अक्रिय लिस्ट में रख दिया गया.
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