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वो दहशतगर्द जो बाद में बना कश्मीर का जेम्स बॉन्ड! 300 आतंकियों को जहन्नुम पहुंचाने वाले की कहानी फिल्मी है

Jammu Kashmir News: हम आपको एक ऐसी कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं जो अपने आप में काफी ज्यादा दिलचस्प है. यह कहानी एक ऐसे शख्स की जिसने बुरा काम छोड़कर नेकी का रास्ता अपनाया और एक ऐसे रास्ते पर चल पड़ा जिसकी वजह से लोग उसे कश्मीर के जेम्स बॉन्ड के नाम से जानने लगे. 

 वो दहशतगर्द जो बाद में बना कश्मीर का जेम्स बॉन्ड! 300 आतंकियों को जहन्नुम पहुंचाने वाले की कहानी फिल्मी है
Syed Khalid Hussain|Updated: Jul 10, 2025, 05:24 PM IST
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James Bond of Kashmir: कहते हैं कि कब कौन किस रास्ते पर चल पड़े इसका भरोसा नहीं रहता. ऐसी ही एक कहानी से हम आपको रूबरू कराने जा रहे हैं. यह कहानी है एक ऐसे शख्स की जिसने दहशतगर्द का रास्ता छोड़कर सेना के कैप्टन तक का सफर तय किया और लोग उसे कश्मीर के जेम्स बॉन्ड के नाम से जानने लगे. अपने 36 साल के हथियार वाहक जीवन में कश्मीर में 300 से ज़्यादा आतंकवादियों को मार गिराया और 500 से ज्यादा युवाओं को आतंक से आजाद कराया. आइए जानते हैं विस्तार से उनके बारे में. 

इस शख्स का नाम मुश्ताक अहमद भट है. आमतौर पर जेम्स बॉन्ड या रोमियो और इश्फाक के नाम से जाना जाता है, दक्षिण कश्मीर के पुलवामा का एक पूर्व आतंकवादी है, जिसकी जीवन कहानी एक जासूसी थ्रिलर से मिलती-जुलती है, जिसकी तुलना जेम्स बॉन्ड जैसे काल्पनिक पात्रों से की जा सकती है. जेम्स बॉन्ड नाम उसे भारतीय सेना ने दिया था क्योंकि वह हर असंभव आतंकवाद-विरोधी अभियान को सफल बनाता था और उसे रोमियो इसलिए कहा जाता था क्योंकि उसकी पोशाक और बाल रोमियो जैसे रहते थे.

मुश्ताक का जन्म दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले के एक छोटे से गांव ज़सू में हुआ था. मुश्ताक 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में जब कश्मीर घाटी आतंकवाद और हिंसा की चपेट में थी आतंकी बना था, दरअसल कांग्रेसी परिवार की पृष्ठभूमि होने के कारण, आतंकवाद के चरम के दौरान "आज़ादी" की वकालत करने वालों ने उन्हें अपमान और धमकियों का निशाना बनाया. राज्य प्रशासन के पतन और पुलिस या सेना की प्रभावी उपस्थिति के अभाव ने मुश्ताक को आतंकवाद में शामिल होने के लिए मजबूर कर दिया, क्योंकि उन्हें लगा कि बंदूक मिलने से उन्हें सम्मान मिलेगा और अराजकता के दौर में अपने परिवार की रक्षा होगी,

मुश्ताक 1989 में पाकिस्तान चला गया जहां उसने अफगान सरदारों के साथ प्रशिक्षण लिया, उसने अफग़ानिस्तान में अहमद शाह मसूद के उत्तरी गठबंधन के ख़िलाफ़ सरकारी बलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, और 1990 के अंत में जमात समर्थित हिज़्बुल मुजाहिदीन से जुड़े एक सशस्त्र आतंकवादी के रूप में कश्मीर में दाखिल हुआ. मुश्ताक अहमद ने कहा  पाकिस्तान के "दोहरे व्यवहार" और अपने हितों के लिए आज़ादी के आख्यान का दुरुपयोग करने से में निराश हो गया, और मैंने मन बदल लिया. 1994 में ने भारतीय सेना के लिए एक अंडरकवर ऑपरेटिव के रूप में काम करना शुरू किया और "रोमियो" और जेम्स बॉन्ड का नाम पाया.

मुश्ताक ने आतंकियों में रहकर भारतीय सेना के लिए काम करना शुरू किया और भारतीय सेना की सबसे मूल्यवान संपत्तियों में से एक बन गया. वह लगभग 100 सक्रिय आतंकवादियों के संपर्क में आया, जिन्होंने सेना के लिए काम करना शुरू कर दिया था. सेना के अंडरकवर एजेंट के रूप में काम करते हुए, उसने खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के लिए 4 बार सीमा पार की और वापस लौटा. पाकिस्तान और कश्मीर में उसकी खुफिया जानकारी जुटाने की कोशिशें महत्वपूर्ण रहीं, जिनमें उसने कारगिल हमले के बारे में एक महत्वपूर्ण सूचना भी शामिल थी, जिसने 1999 के कारगिल युद्ध की दिशा बदलने में मदद की.

मुश्ताक  ने कहा हमारी जानकारी और एक्शन से 300 से ज़्यादा आतंकवादियों को मार गिराने में सेना को मदद मिली है और 500 से ज़्यादा कट्टरपंथी कश्मीरी युवाओं को मुख्यधारा में वापस लाने में मदद मिली. उनमें से कई को टरटोरियल सेना में भर्ती किया गया और कई को आतंकवाद से दूर रखने के लिए मार्गदर्शन किया गया. सेना के अंडरकवर एजेंट के रूप में वर्षों तक काम करने के बाद, मुश्ताक 1999 में एक्सपोज हुआ, तभी फिर वो प्रादेशिक सेना की 162वीं बटालियन में सक्रिय रूप से शामिल हुआ. आतंकवाद से लड़ने में उनके योगदान को देखते हुए, भारत के राष्ट्रपति ने उन्हें सीधे जेसीओ के रूप में नियुक्त किया.

जल्द ही मुश्ताक ने अपने समर्थकों के साथ लगभग 90 आतंकवादियों को प्रादेशिक सेना में शामिल करवा लिया और यह समूह शोपियां-पुलवामा में एक जेम्स बॉन्ड समूह बन गया, जहां उन्होंने कई आतंकवाद-रोधी अभियान चलाए. उन्होंने और उनकी यूनिट ने अपने 26 साल के सैन्य कार्यकाल के दौरान लगभग 300 सक्रिय आतंकवादियों को मार गिराया. इसके अलावा, उन्होंने 500 से ज्यादा युवाओं को, जो आतंकवाद में शामिल होने के लिए कट्टरपंथी बन गए थे या आतंकवादी संगठनों में शामिल हो गए थे, परामर्श दिया और उन्हें मुख्यधारा में वापस लाया.

मुश्ताक ने कहा कि हम हमेशा उन आतंकवादियों को गिरफ्तार करते हैं जिन्हें मेरी तरह आतंकवादी बनने के लिए मजबूर किया गया था और उन्हें जेल में डाल दिया गया था. हमने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि उन्हें मारा न जाए. 2021 में मुश्ताक भारतीय सेना से कैप्टन के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद इस अंडरकवर ऑपरेटिव्स का सच के सामने आने वाले खतरों के बावजूद, मुश्ताक ने अपनी सेवानिवृत्ति के 4 साल बाद अपनी पहचान उजागर करने का फैसला किया और अपनी कहानी हमारे साथ साझा की.

“द ब्रेवहार्ट्स” नामक एक पुस्तक भी प्रकाशित हुई है जिसमें उन्होंने अपने पूरे सफ़र का वर्णन किया है. पुस्तक की कहानी को खतरे, मुक्ति और देशभक्ति की कहानी के रूप में वर्णित किया गया है. उनका काम इस बात का उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति एक विरोधी से आतंकवाद-रोधी प्रयासों में प्रमुख योगदानकर्ता बन सकता है. उनके कार्यों ने सैकड़ों लोगों की जान बचाई और कट्टरपंथी युवाओं को समाज में पुनः शामिल होने में मदद की.

मुश्ताक़ ने कहा मेरा योगदान कारगिल में पाकिस्तान की योजनाबद्ध घुसपैठ के बारे में शुरुआती खुफिया जानकारी प्रदान करना था. उनकी गुप्त सूचना ने भारतीय सेना को घुसपैठ की तैयारी और उसका मुकाबला करने में मदद की, जो बाद में कारगिल युद्ध बन गया.आतंकवादी से सैनिक बने मुश्ताक अहमद भट का सफ़र आसान नहीं था. उन्होंने इसके लिए कई बलिदान दिए हैं. उन पर दो बार आतंकवादियों ने हमला किया गया, उनके पैरों में गोलियां लगीं, उनका घर दो बार जलाया गया और उनके चाचा मारे गए. इतनी भयावह स्थिति के बावजूद, मुश्ताक ने अपने परिवार का समर्थन कभी नहीं खोया, उनकी पत्नी और बच्चे हमेशा उनके साथ रहे, हालांकि उनके दो बेटे और बेटी ने अपनी पढ़ाई पूरी करने तक 16 स्कूल बदले.

बेटी अब डॉक्टर है, एक बेटा कनाडा में बस गया है और दूसरा अपने पिता के साथ यहीं रह रहा है. उनका कनाडा में रहने वाला बेटा उन्हें कनाडा आने के लिए मजबूर कर रहा है, लेकिन वह इस बात पर अड़े हैं कि उन्हें अपने उन दोस्तों की मदद करनी है जिन्होंने उनकी यात्रा में उनका साथ दिया और साथ ही नई पीढ़ी को आतंकवाद या अलगाववाद में शामिल होने से रोकना है. अब सार्वजनिक रूप से सामने आकर, मुश्ताक ने खुद को आतंकवादी समूहों से संभावित प्रतिशोध के लिए उजागर कर दिया है, लेकिन मुश्ताक का कहना है मेरा यह निर्णय दूसरों को प्रेरित करने और राष्ट्र सेवा की संभावना को उजागर करने है ताकि पाकिस्तान का खेल ख़त्म हो. 

मेरा लक्ष्य है की आतंकवाद के मूल कारणों, जैसे कट्टरपंथी, अलगाव और बेरोज़गारी, को दूर करना और इस क्षेत्र में अपनी कोशिश जारी रखना चाहता हूं. लेकिन मुश्ताक को जम्मू-कश्मीर की खुफिया शाखा से शिकायत है, पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ भारत का योद्धा होने के बावजूद, उसे और उसके समूह को अभी भी खुफिया शाखा के रिकॉर्ड में आतंकवादी बताया जा रहा है, जिससे खुफिया शाखा की कार्यप्रणाली पर कई सवाल उठते हैं.  मुश्ताक और उसके साथियों के परिवार और बच्चे अपने माता-पिता से पूछ रहे हैं कि हम देशद्रोही हैं या देशभक्त?

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