DNA Analysis: भगवान बुद्ध ने कहा है- हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही बन जाते हैं। हमारे देश में ऐसे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है, जो हर मौके पर सिर्फ वीडियो बनाने की सोचते हैं. उन्हें सड़क हादसे में तड़पते आदमी की जरूरत नहीं दिखती. उस तड़प, उस जख्म में सिर्फ रील दिखती है. उन्हें मौत का मातम नहीं दिखता. सिर्फ मौत का वीडियो दिखता है. उनकी प्राथमिकता घायलों की मदद करना नहीं. बल्कि सिर्फ उनका वीडियो बनाना है. यानी हम अब, मैन से कैमरामैन बनते जा रहे हैं. कैमरे के मेगापिक्सल तो बढ़ते जा रहे हैं लेकिन हमारी संवेदना और इमोशन के मेगापिक्सल कम होते जा रहे हैं. पिछले 24 घंटे में हमारे पास कानपुर और उन्नाव से दो ऐसी घटनाएं सामने आई हैं. जहां जान बचाने के बजाय, सड़क पर दम तोड़ते लोगों के वीडियो बनाये जा रहे थे. पहले हम आपको कानपुर की घटना से जुड़ी तस्वीर दिखाना चाहते हैं.
कानपुर में कल यानी बुधवार को एक सड़क हादसा हुआ. एक ट्रक ने स्कूटी से जा रहे भाई बहन को टक्कर मार दी. हादसे के बाद दोनों सड़क पर दर्द से कराहते रहे. लेकिन वहां खड़े लोग इनकी मदद करने के बजाय. खड़े होकर उन्हें देखते रह गए. कुछ राहगीर रुककर सड़क पर पड़े जख्मी बच्चों का वीडियो बनाने लगे. हादसे के तुरंत बाद की जो तस्वीरें सामने आई हैं. उसमें भी दिख रहा है कि एक आदमी इनकी मदद करने के बजाय इनका वीडियो बना रहा है. 40 से 45 मिनट तक ये बच्चे वहां पड़े रहे. लोगों ने अपने मोबाइल फोन पर इनका वीडियो तो बनाया. लेकिन उसी मोबाइल फोन से पुलिस या एंबुलेंस को कॉल नहीं किया.
#DNAWithRahulSinha : वो तड़पते रहे.. लोग वीडियो बनाते रहे, 'मैन'.. अब 'कैमरामैन' बनकर रह गया है!
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— Zee News (@ZeeNews) May 29, 2025
इन्हें देखने में बुरा लगता है इसीलिए ये वहां से चले गए. कैसे कोई इतना असंवेदनशील हो सकता है. एक चश्मदीद बता रहा है कि उन्होंने मदद करने की कोशिश भी की लेकिन कोई सामने नहीं आया. लोगों को सिर्फ और सिर्फ इनका वीडियो बनाना था और वहां से चले जाना था.
ये पहला मामला नहीं
इस तरह का ये पहला मामला नहीं है. कई बार हादसे के बाद लोग मदद करने के बजाय हादसे का. हादसे में घायल हुए लोगों का वीडियो बनाते रहते हैं. ये एक आदत बनती जा रही है. एक ट्रेंड बनता जा रहा है. और आपने भी इस ट्रेंड को अपने आस-पास फैलते हुए देखा होगा या देख रहे होंगे.
सारे MAN की जगह कैमरामैन बने
कानपुर की इस घटना में भी सड़क पर तड़पते भाई-बहनों को देखते हुए तमाशबीन तो थे. वो सारे MAN की जगह कैमरामैन बने थे. कोई कैमरे से वीडियो बना रहा था और कोई आंखों से तमाशा देख रहा था. तभी तो करीब 45 मिनट तक भाई-बहन दर्द से कराहते रहे. लेकिन कोई इन्हें बचाने नहीं आया. ये हादसा सुबह 5 बजकर 15 मिनट पर हुआ. 5 बजकर 45 मिनट पर पुलिस पहुंची. 5 बजकर 55 मिनट पर एबुलेंस आई और 6 बजकर 10 मिनट पर दोनों को अस्पताल पहुंचाया गया जहां दोनों को मृत घोषित कर दिया गया.
जरा सोचिए जो आदमी वीडियो बना रहा था, जो लोग वहां खड़े होकर इन्हें मरते हुए देख रहे थे. अगर उन्होंने घायलों को समय से अस्पताल पहुंचा दिया होता तो शायद इनकी जान बच जाती. लोगों ने अपना मोबाइल देखने के बजाय अगर अपने दाएं बाएं देखा होता तो उन्हें सामने ही ये BRS अस्पताल दिख जाता.
आसपास 8-10 अस्पताल हैं, लेकिन किसी ने भी बच्चों को उठाकर वहां तक नहीं पहुंचाया. कल कानपुर की इस सड़क पर सिर्फ दो बच्चों की जान नहीं गई है. बल्कि वहां खड़े लोंगो की इंसानीयत ने भी दम तोड़ दिया. मर गई मानवता यहां लोगों के अंदर का MAN मर चुका था. सिर्फ CAMERAMAN जिंदा था. इन लोगों को उस पिता की बात सुननी चाहिए. जिनके दो बच्चे एक पल में चले गए. आज ये पिता उन सभी कैमरामैन से सवाल पूछ रहा है जिनके लिए इनके बच्चों की जान से ज्यादा जरूरी उनका वीडियो था.
MAN होने का ढोंग करने वाले कैमरामैन सिर्फ कानपुर में ही नहीं हैं. बल्कि यहां से 30-35 किमी आगे उन्नाव में भी हादसे के वक्त खुद को मैन बताने वाले कैमरामैन पहुंचे थे. एक तेज रफ्तार टैंकर ने कार को रौंद दिया. कार के अंदर चार लोग सवार थे. हादसे में एक महिला और एक बच्ची की मौत हो गई. दो की हालत गंभीर है. लेकिन हादसे वाली जगह से जो तस्वीरें सामने आई हैं. उसपर गौर कीजिएगा. एक्सीडेंट के स्पॉट पर भीड़ जमा है. ऐसा लग रहा है जैसे यहां मेला लगा हो. लोग काम धाम छोड़कर यहां वीडियो बनाने आए हैं. यहां भी तस्वीरों को देखकर यही कहा सकता है कि इन लोगों की संवेदनना मर चुकी है. इनके अंदर का मैन मर चुका है. सिर्फ जिंदा है कैमरामैन.
लेकिन सवाल उठता है कि ये लोग हादसे के बाद ऐसे वीडियो बनाते क्यों हैं. ये लोग वीडियो बनाकर इसका करते क्या हैं. किसे दिखाते हैं. कहां शेयर करते हैं. वीडियो बनाकर इन लोगों को मिलता क्या है. क्या ये नहीं जानते हैं कि अगर वीडियो बनाने के बजाय लोगों को अस्पताल पहुंचा दिया जाए तो इनकी जान बच सकती है. यहां श्रीमद्भगवद्गीता की कुछ पंक्तियां याद आती हैं जो कलियुग के बारे में लिखी गई हैं. अपने स्क्रीन पर जो श्लोक आप देख रहे हैं, ये श्रीमद्भगवद्गीता का है. जिसका अर्थ है कि कलयुग में व्यक्ति की याद करने की क्षमता के साथ-साथ सच्चाई, स्वच्छता, सहिष्णुता, दया, जीवनकाल, शारीरिक बल आदि भी घटता जाएगा। आज इसका उदाहरण साफ तौर पर देखा जा सकता है.
लोग सड़क पर मदद मांगते मांगते आखिरकार मर जाते हैं. लेकिन वहां से गुजर रहे लोगों को जरा भी दया नहीं आती. गौतम बुद्ध ने अच्छे इंसान होने की जो परिभाषा दी है, उसके मुताबिक जो सत्य, दया, करुणा, प्रेम, और अहिंसा में विश्वास रखता है. जो, दूसरों के लिए अच्छा कार्य करता है, जो जरूरतमंदों की मदद करता है. वही अच्छा इंसान कहलाता है. लेकिन हमारे देश में इंसानों का एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जिसके लिए रील और वीडियो..इंसानियत से बढ़कर है.
हमारा मकसद सिर्फ खबर बताना नहीं है. बल्कि आपको समझाना है कि सड़क हादसों में घायल लोगों की मदद करना कितना जरूरी है. इसे ऐसे जानिए. किसी सड़क हादसे के बाद का पहला एक घंटा ‘गोल्डन ऑवर’ कहलाता है. इस दौरान इलाज न मिल पाने से कई मौतें हो जाती हैं.
2023 में लगभग 1.5 लाख लोगों की सड़क हादसों में मौत
भारत में 2023 में लगभग 1.5 लाख लोग सड़क हादसों में मारे गए. 2024 में जनवरी-अक्टूबर के बीच 1.2 लाख जानें गईं. एक अनुमान के मुताबिक इनमें से 30-40% यानी दो साल में करीब 1 लाख लोगों ने समय पर इलाज न मिलने पर दम तोड़ दिया.
कुछ ऐसा ही कानपुर के दोनों बच्चों के साथ हुआ. लेकिन लोग यहां मदद करने के बजाय वीडियो बनाते रहे. यहां एक बड़ा सवाल ये भी उठता है कि आखिर मैन, कैमरामैन बन कैसे गया. मोबाइल कैमरे का मेगापिक्सल 3 से 300 पहुंच गया है. लेकिन इंसान की संवेदनाएं जीरो होती जा रही हैं. दुनिया में सबसे संवेदनशील देशों की एक लिस्ट बनाई गई. जिसमें 148 देशों की लिस्ट में भारत की रैंकिंग 88 थी. इस स्टडी के हिसाब से भारत में सिर्फ 48% लोगों के अंदर संवेदनाएं बची है. बाकी के 52% लोगो में संवेदनाओ की मात्रा बहुत कम बची है. इसका मतलब ये हुआ की इन लोगों को खुशी, गम, जिंदगी, मौत. इन चीजों से कोई खास फर्क ही नहीं पड़ता है.
शायद ये वही लोग हैं जिनके लिए किसी की जान से ज्यादा कीमती उनका वीडियो है. यहां हम आपको ये भी बता दें की लोगों के हाथ में फोन आने के बाद से ये ट्रेंड ज्यादा बढ़ा है. आपने कई बार ऐसा देखा होगा की कुछ लोग ऐसे हादसों के वीडियो अपने स्टेटस पर शेयर करते हैं. लोग श्मशान घाट पर किसी का अंतिम संस्कार करने जाते हैं तो उसे स्टेटस पर अपलोड कर देते हैं. आखिर लोगों में आदत कहां से आ रही है. जाहिर सी बात है. लोग ऐसे वीडियो को लाइक. शेयर भी करते होंगे. तभी तो लोग अपलोड करते हैं. ऐसे में इस मानसिकता को भी समझने की जरूरत है.
अब आगे हम आपको जो बताने जा रहे हैं आप उसे नोट कर के भी रख सकते हैं. क्योंकि ये जानकारी शायद ही आज से पहले आपने कहीं पढ़ी होगी. मरते हुए व्यस्थि की मदद करने के बजाय उसका वीडियो बनाना एक मेंटल DISORDER यानी मानसिक विकार है. इसे BYSTANDER EFFECT कहते हैं. ऐसे DISORDER से ग्रसित लोगों को ये लगता है कि सामने पड़े शख्स की मदद करना उनकी जिम्मेदारी नहीं है. उन्हें लगता है बाकी लोग मदद कर ही देंगे. ऐसे ही लोग सड़क पर मदद की गुहार लगा रहे लोगों की वीडियो बनाते रह जाते हैं.
बीते पांच-सात मिनट से हम इस मुद्दे पर बात कर रहे हैं. आंकड़ों के हिसाब से जाएं तो हमारे अभी तक न जाने कितने हादसे हो चुके होंगे और इन हादसों में दो लोगों की मौत हो चुकी होगी. और मानकर चलिए की कोई न कोई शख्स इस वक्त सड़क किनारे खड़ा होकर उनकी जान बचाने के बजाय उनका वीडियो बना रहा होगा. ऐसे वीडियोज को लोग बाद में सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं.. जिसे आगे लाइक, शेयर और फॉर्वर्ड किया जाता है.
सोशल मीडिया का ट्रेंड ये बताता है कि लोग देश में पॉजिटिल से ज्यादा निगेटिव कॉन्टेंट को देखते हैं. एक स्टडी के मुताबिक निगेटिव स्टोरीज जल्दी वायरल या ट्रेंड करने लगती हैं. हादसों के वीडियो भी निगेटिव कैटेगरी में ही आते हैं. लिहाजा लोग इन वीडियोज को शेयर करते हैं. ताकि उनके वीडियो को ज्यादा से ज्यादा देखा जाए.और वो भी पॉपुलर हों.. लेकिन इस बीच ये भूल जाते हैं कि अगर हादसे के बाद वो कैमरामैन की जगह मैन बन जाते. मोबाइल को जेब में रखकर सामने वाले की मदद कर देते तो शायद वो आज जिंदा होते.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि आज की तारीख में मैन, कैमरामैन बन गया है.. सोशल मीडिया पर हर रोज जितने वीडियोज अपलोड होते हैं.. ये आंकड़े भी यही कह रहे हैं..
भारतीय यूट्यूब पर रोजाना 5 लाख वीडियो अपलोड करते हैं. भारत में इंस्टाग्राम पर हर दिन 60 लाख वीडियो अपलोड होते हैं. फेसबुक पर हर दिन भारतीय 40 करोड़ वीडियो अपलोड करते हैं. इन करोड़ों वीडियोज में से एक बड़ा हिस्सा. सड़क हादसों का होता है. वैसे ही वीडियोज होते हैं. जो कानपुर हादसे के वक्त ऑरेंज गमछा लेपेटे हुए ये आदमी बना रहा था. उन्नाव हादसे के बाद वहां खड़े दो लोग बना रहे थे.
हम ये नहीं कह रहे हैं कि आप वीडियो न बनाएं. मोबाइल फोन, इसमें बेहतरीन कैमरा, ये एक शानदार आविष्कार है. हम अपने हैप्पी मोमेंट्स इस कैमरे में कैद करते हैं. सालों तक ये मोमेंट्स सहेज कर रखते हैं. लेकिन आपसे ये अनुरोध है कि किसी हादसे के बाद सड़क पर पड़े किसी आदमी को अगली बार देखें तो इस आविष्कार को अपनी जेब में रख दें और उनकी मदद करें. कैमरामैन न बनें. मैन बनें.
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