MP News-मध्यप्रदेश के चर्चित डीएसपी संतोष पटेल की सोशल मीडिया पोस्ट से बैतूल के एक बेटे को उसके पिता 42 सालों के बाद वापस मिले हैं. बेटा 40 सालों से यह मानकर चल रहा था कि उसके पिता इस दुनिया में नहीं है. 15 जुलाई को संतोष पटेल पत्नी का जन्मदिन मनाने भोपाल के आसरा वृद्धाश्रम पहुंचे. यहां एक बुजुर्ग से बातचीत की. बुजुर्ग ने अपना नाम पूरन सिंह बताया और दावा किया कि वह पुलिस विभाग में सब-इंस्पेक्टर के पद पर तैनात थे. संतोष पटेल ने यह वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया.
इस वीडियो को देख बैतूल के कुछ लोगों ने बुजुर्ग के परिवार को ढूंढ़ने का प्रयास किया. शहर के रवि त्रिपाठी ने पूरन सिंह के परिवार का पता लगा लिया.
युवक ने खोजा परिवार
बैतूल के कोठी बाजार के रहने वाले रवि त्रिपाठी ने पूरन सिंह के परिवार का पता लगाने का बीड़ा उठाया. उन्होंने एक व्यक्ति से बात कि जिसमें पता चता की पूरन सिंह नाम का कोई व्यक्ति फुटबॉल खेलता था. इसके बाद कड़ी से कड़ी जोड़ी और पूरन सिंह के गांव का पता चल गया. वहां गांव के दो लोगों ने पूरन सिंह की पहचान की. उन्होंने बताया कि पूरन सिंह धुर्वे उर्फ पूरन गोंड हैं और टेमनी गांव के रहने वाले हैं.
मानसिक संतुलन खो बैठे
गांव के ही जॉनसन हेराल्ड ने बताया कि पूरन सिंह पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर थे. सागर में उनकी ट्रेनिंग हुई थी और बाद में ग्वालियर में पोस्टिंग हुई. वहां से ट्रांसफर भिंड हो गया. इसके बाद वे भोपाल आ गए. इसी दौरान उनकी पुश्तैनी ज़मीन बैतूल में एक डैम परियोजना की डूब क्षेत्र में आ गई. मुआवजा लेने वे बैतूल वापस गए. यहां शराब की लत में पड़ गए. पत्नी का देहांत हो गया, जिससे गहरा अघात पहुंचा. इसके बाद वे मानसिक संतुलन खो बैठे और कहीं चले गए.
बेटे को नहीं हुआ यकीन
पूरन सिंह जिस समय गुम हुए थे, तब बेटे की उम्र महज डेढ़ साल थी. राज सिंह को उनके चाचा ने पाला. परिवार ने पूरन सिंह को मृत मान लिया और खोजबीन की खास कोशिश नहीं की. राज की परवरिश भोपाल और महाराष्ट्र के मुलताई के पास हुई, अब वे मेडिकल स्टोर पर काम करते हैं. राज को पता चला कि उनके पिता जीवित हैं तो उन्हें यकीन नहीं हुआ. राज सिंह का कहना है कि उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि पिताजी मिलेंगे.
आठ महीने पहले आए आश्रम
आश्रम के संचालक मोहन सोनी और व्यवस्थापक समीना मसीह ने बताया कि पूरन सिंह मानसिक रूप से अस्थिर हालत में करीब आठ महीने पहले आश्रम आए थे. जिस समय वह आश्रम आए थे तब कहीं बेसुध हालत में पड़े मिले थे. आठ महीनों से आश्रम में उनकी पूरी सेवा की गई। डॉक्टरों की मदद से उनकी हालत कुछ सुधरी. इसके बाद ही कुछ बातें धीरे-धीरे सामने आईं.
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