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Chhattisgarh GK: छत्तीसगढ़ की कितनी जमीन पर होती है खेती-किसानी? जानें कहां कौन-सी होती है फसल

Chhattisgarh Agriculture Area: छत्तीसगढ़ की लगभग 80% जमीन पर लोग खेती-किसानी करते हैं. खेती ज्यादातर छोटे स्तर पर होती है और 75% से अधिक जमीन पर खाद्यान्न फसलें उगाई जाती हैं, जिनमें धान सबसे प्रमुख फसल है.  इसी लिए इसे 'धान का कटोरा' भी कहा जाता है, क्योंकि कुल फसली क्षेत्र का लगभग 60% धान में लगता है.

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छत्तीसगढ़ की कितनी जमीन पर होती है खेती-किसानी?
छत्तीसगढ़ की कितनी जमीन पर होती है खेती-किसानी?
Manish kushawah|Updated: May 30, 2025, 02:23 PM IST
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Chhattisgarh GK: हमारा भारत, एक कृषि प्रधान देश है, जहां देश की अधिकतर आबादी खेती पर आधारित है. यहां किसान दिन-रात मेहनत करके अनाज, फल, सब्जियां और अन्य खाद्य सामग्री पैदा करते हैं, जो हमारे जीवन का आधार है. वहीं क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का 9वां सबसे बड़ा राज्य छत्तीसगढ़ भी खेती पर आधारित है. यहां पर ज्यादातर आबादी खेती-किसानी से जुड़ी हुई है. मीडिया रिपोर्ट की माने तो लगभग 80% जमीन पर लोग खेती-किसानी में लगे हुए हैं. 

मिली जानकारी के अनुसार, राज्य की कुल कामकाजी आबादी में से 55% लोग खुद किसान हैं और 26% लोग खेतों में मजदूरी करते हैं. प्रदेश में खेती ज्यादातर छोटे स्तर पर और मेहनत पर आधारित होती है. यहां 75% से ज्यादा खेती योग्य जमीन पर खाद्यान्न (खाने वाली) फसलें उगाई जाती हैं. इनमें सबसे ज्यादा धान की खेती होती है, जिससे छत्तीसगढ़ को 'धान का कटोरा' कहा जाता है. कुल फसली क्षेत्र का लगभग 60% हिस्सा सिर्फ धान की खेती में उपयोग होता है. वहीं, अबूझमाड़ और पहाड़ी इलाकों में लोग अस्थायी खेती करते हैं, जिसे 'स्थानांतरित खेती' भी कहा जाता है. राज्य में करीब 77% खेत खरीफ सीजन में और 23% खेत रबी सीजन में बोए जाते हैं.

मानसून पर टिकी है यहां पर खेती 
आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ की खेती आज भी काफी हद तक बरसात यानी मानसून पर टिकी हुई है. अगर समय पर बारिश नहीं हो तो सूखा पड़ने की नौबत आ जाती है. सिंचाई की सुविधाएं पूरी तरह से विकसित नहीं हैं और रासायनिक खादों का उपयोग भी बहुत कम होता है, जिसकी वजह से प्रति हेक्टेयर फसल की पैदावार बाकी राज्यों के मुकाबले कम है. किसानों की आर्थिक स्थिति भी कमजोर है और उनमें खेती को लेकर ज्यादा उत्साह नहीं दिखता है. करीब 75% किसान आज भी अशिक्षित हैं और पुराने तौर-तरीकों से ही खेती करते हैं. राज्य के केवल 15 से 20 प्रतिशत किसान ही नई तकनीकों जैसे ट्रैक्टर, अच्छे बीज, खाद और सिंचाई साधनों का उपयोग कर पाते हैं. 

कई तरह की उगाई जाती हैं फसलें
छत्तीसगढ़ में लंबे समय से खेती का बोलबाला रहा है, इसलिए यहां कई तरह की फसलें उगाई जाती हैं. राज्य में मुख्य रूप से खाद्यान्न फसलें बोई जाती हैं, जिनमें से अकेले धान का हिस्सा 60% से भी ज्यादा है. इसके अलावा, राज्य में ऐसी फसलें भी होती हैं, जो उद्योगों को कच्चा माल देती हैं, जैसे कि सोयाबीन, मूंगफली, गन्ना और तिलहन की फसलें. चना, अरहर, उड़द, मक्का और कोदो-कुटकी जैसी फसलें भी यहां बड़े पैमाने पर उगाई जाती हैं.  इन सब फसलों की वजह से न केवल किसानों को रोजगार मिलता है, बल्कि राज्य के आर्थिक ढांचे को भी मजबूती मिलती है. सरकार और किसानों के मिल-जुलकर काम करने से आने वाले समय में खेती को और आगे बढ़ाया जा सकता है.

ये हैं छत्तीसगढ़ की प्रमुख फसलें
धानः
छत्तीसगढ़ की सबसे प्रमुख फसल है. कुल खाद्यान्न उत्पादन का 84% हिस्सा धान से आता है. लगभग 61% कृषि भूमि पर सिर्फ धान बोया जाता है. दुर्ग जिला धान उत्पादन में सबसे आगे है, जहां 71.67% खेतों में धान की खेती होती है. इसके अलावा रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव, कोरबा, जांजगीर-चांपा और सरगुजा जिले भी धान उत्पादन में आगे हैं.

गेहूं: गेहूं की खेती कम होती है, कुल अनाज उत्पादन में इसका हिस्सा सिर्फ 1.95% है. इसकी खेती मैदानी इलाकों में होती है. सरगुजा, दुर्ग, बिलासपुर, रायपुर और राजनांदगांव इसके प्रमुख उत्पादक जिले हैं.

अरहर (तुवर): यह दलहनी फसलों में प्रमुख है. सरगुजा जिला अरहर उत्पादन में सबसे आगे है. इसके अलावा दुर्ग, रायपुर, राजनांदगांव, कवर्धा, जशपुर, कोरिया और बिलासपुर में भी इसकी खेती होती है.

ज्वार: राज्य में ज्वार बहुत कम बोया जाता है, सिर्फ 0.19% क्षेत्र में. इसकी खेती महासमुंद, दंतेवाड़ा, सरगुजा, कोरिया और बस्तर जिलों में होती है.

मक्का: मक्का की खेती कुल कृषि भूमि के 1.64% हिस्से में होती है. सरगुजा, रायपुर, बस्तर, कोरिया, कोरबा, बिलासपुर, जशपुर और दंतेवाड़ा इसके प्रमुख क्षेत्र हैं.

उड़द: उड़द की खेती लगभग 2.18% क्षेत्र में होती है. इसे जुलाई में बोते हैं और अक्टूबर में काटते हैं. रायगढ़, कोरबा, महासमुंद और धमतरी जिलों में इसकी खेती ज्यादा होती है.

चना: चना सबसे ज्यादा बोई जाने वाली दलहनी फसल है. यह रबी सीजन की मुख्य फसल है. कवर्धा, दुर्ग, रायपुर, बिलासपुर और राजनांदगांव जिलों में इसकी खेती अधिक होती है.

सोयाबीन: यह राज्य की सबसे लोकप्रिय तिलहनी फसल है. प्रोटीन और तेल के लिए इसका उपयोग होता है. राजनांदगांव, दुर्ग, बिलासपुर और कवर्धा जिलों में ज्यादा बोया जाता है.

सरसों: राज्य की कुल कृषि भूमि का 0.91% हिस्सा सरसों में लगता है. सरगुजा, जशपुर, रायपुर, दंतेवाड़ा, जगदलपुर, कवर्धा और कोरिया में इसकी खेती होती है.

मूंगफली: खरीफ सीजन की यह नकदी फसल है. तिलहनी क्षेत्र का लगभग 10% हिस्सा मूंगफली को दिया जाता है. रायगढ़, सरगुजा, महासमुंद, बिलासपुर, रायपुर और जांजगीर-चांपा इसके प्रमुख क्षेत्र हैं.

तिल: यह खरीफ की तिलहनी फसल है. मैदानों के साथ खेत की मेढ़ों पर भी बोई जाती है. सरगुजा, रायपुर, रायगढ़, कवर्धा, कोरिया, कोरबा और दंतेवाड़ा प्रमुख जिले हैं.

अलसी: राज्य की लगभग 2% कृषि भूमि पर अलसी बोई जाती है. यह सभी तरह की मिट्टी में होती है. दुर्ग, सरगुजा, कवर्धा, राजनांदगांव, रायपुर और बिलासपुर जिलों में प्रमुखता से उगाई जाती है. 

गन्ना: गन्ने की खेती कम है लेकिन धीरे-धीरे बढ़ रही है. इसके लिए ज्यादा नमी और गर्मी चाहिए. कवर्धा, सरगुजा, बस्तर, रायगढ़, बिलासपुर और कोरिया जिलों में इसकी खेती होती है.

कोदो और कुटकी: ये मोटे अनाज हैं, जो चावल के बाद सबसे ज्यादा बोए जाते हैं. राज्य की करीब 6% कृषि भूमि में इनकी खेती होती है. बस्तर इनका सबसे बड़ा उत्पादक जिला है, इसके अलावा जशपुर, रायपुर, दंतेवाड़ा, कोरिया, कवर्धा और सरगुजा में भी खेती होती है. (नोट: इस खबर में दी गई जानकारी इंटरनेट एवं विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक दी गई है. इन तथ्यों की पुष्टि ZEE NEWS नहीं करता है. कृपया इसे संदर्भ के रूप में ही लें.)

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