Chhattisgarh Naxalism: पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से साल 1967 में शुरू हुई नक्सलवाद की शुरुआत आज छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है. नक्सलबाड़ी गांव से शुरू हुआ उग्रपंथी आंदोलन आगे चलकर नक्सलवाद कहा गया. इसी नक्सलवाद से छत्तीसगढ़ पिछले 50 सालों से संघर्ष कर रहा है. इतना लंबा वक्त गुजर चुका है, लेकिन नक्सलवाद के घाव को ठीक नहीं किया जा सका है. इस दौरान नक्सलियों ने कई बार सुरक्षाबलों पर हमले किए हैं, जिसमें कई जवानों की मौत हुई है. हम आपको छत्तीसढ़ में हुए नक्सलियों के बड़े हमलों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो नक्सलियों के साथ संघर्ष की कहानी बयां करते हैं.
- 15 मार्च 2007 में बीजापुर जिले के बोदली में बने पुलिस कैंप पर अचानक से नक्सलियों ने हमला कर दिया था, इस घटना में सुरक्षाबलों के 55 जवान शहीद हुए थे. जब तक सुरक्षाबल के जवान संभल पाते तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
- 29 अगस्त 2008 दंतेवाड़ा जिले के जगरगुंडा में 200 नक्सलियों ने सुरक्षाबलों के जवानों पर अचानक से हमला कर दिया था, इसमें 12 एसएफ के जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे.
- 20 अक्टूबर 2008 में बीजापुर के मोडुपाल और कोमपल्ली में नक्सल अटैक हुआ था, जिसमें 12 सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए, करीब 100 से ज्यादा नक्सलियों ने इस हमले को अंजाम दिया था.
- 12 जुलाई 2009 में राजनांदगांव जिले में आने वाले मानपुर में नक्सलियों ने आईईडी ब्लास्ट किया था, जिसमें छत्तीसगढ़ के 30 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे.
- 8 अक्टूबर 2009 राजनांदगांव के ही लहेरी पुलिस चौकी पर नक्सलियों ने हमला कर दिया था, इसमें 17 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे.
- 8 मई 2010 में बीजापुर में नक्सलियों ने एक बुलेट प्रूफ वाहन को उड़ा दिया था, जिसमें सीआरपीएफ आठ जवान शहीद हो गए थे.
- 6 अप्रैल 2010 को दंतेवाड़ा जिले में नक्सलियों ने बड़ा हमला किया था. जिसमें 75 सीआरपीएफ जवान और एक छत्तीसगढ़ पुलिस का जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे.
- 29 जून 2010 को नारायणपुर जिले में नक्सलियों ने अचानक से सीआरपीएफ के जवानों पर हमला कर दिया था, इस हमले में 23 जवान शहीद हो गए थे.
- 4 नवंबर 2011 में बीजापुर के पामेड़ में नक्सलियों ने सुरक्षाबलों पर हमला किया था, इसमें 16 जवान शहीद हुए थे, जिनमें 6 सीआरपीएफ के जवान थे.
- 25 मई 2013 का दिन छत्तीसगढ़ के इतिहास में दर्ज है, क्योंकि इस दिन झीरम घाटी में नक्सलियों ने बडे़ हमले को अंजाम दिया था. जिसमें छत्तीसगढ़ कांग्रेस कमेटी के कई बड़े नेताओं की हत्या नक्सलियों ने कर दी थी, जबकि कई सुरक्षाकर्मी भी शहीद हुए थे.
- 11 मार्च 2014 में सुकमा जिले में ही नक्सलियों ने सुरक्षाकर्मियों पर हमला किया था, जिसमें 15 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए थे.
- 1 दिसंबर 2014 में सुकमा जिले में माओवादियों ने बड़ा हमला किया था, जिसमें दो अधिकारियों की हत्या कर दी थी, जबकि 14 सीआरपीएफ जवानों की शहादत हुई थी.
- 2015 में अप्रैल के महीने में भी 72 घंटों से भी कम समय में माओवादियों ने दंतेवाड़ा में तीन बार हमला किया था, जिसमें 7 जवान शहीद हुए थे.
- मार्च 2017 में सुकमा में नक्सलियों ने घात लगाकर सुरक्षाबलों पर हमला किया था, जिसमें 11 जवानों की शहादत हुई थी.
- 24 अप्रैल 2017 में माओवादी ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के अधिकारियों के एक समूह पर घात लगाकर हमला किया. इस घटना में सात जवान शहीद हो गए थे.
- 13 मार्च 2018 में सुकमा जिले में नक्सल अटैक और आईईडी ब्लास्ट में 9 सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए थे.
- 27 अक्टूबर 2018 में बीजापुर जिले में नक्सलियों ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवानों पर हमला किया था, जिसमें चार जवान शहीद हुए थे.
- 21 मार्च 2020 में सुकमा जिले के मिनपा एनकाउंटर में डीआरजी (जिला रिजर्व गार्ड) के 12 सहित 17 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए थे.
- 3 अप्रैल 2021 में सुकमा-बीजापुर जिले की सीमा पर नक्सलियों ने जवानों पर हमला किया था, जिसमें 22 जवान शहीद हो गए थे.
- 20 फरवरी 2023 में सुकमा जिले में नक्सलियों के साथ एनकाउंटर में तीन सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे.
- 25 फरवरी 2023 में सुकमा में पुलिस नक्सली एनकाउंटर में तीन जवान शहीद हो गए थे.
- 26 अप्रैल 2023 दंतेवाड़ा जिले के अरनपुर में नक्सलियों ने लैंड माइन विस्फोट में सुरक्षाबलों की गाड़ी को उड़ा दिया था. इस हमले में 10 जवान शहीद हो गए थ. जबकि सिविलियन ड्राइवर भी इस हमले का शिकार हुआ था.
छत्तीसगढ़ में कैसे शुरु हुआ नक्सलवाद
छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबलों और माओवादियों के बीच पिछले करीब 50 सालों से बस्तर के इलाके में संघर्ष चल रहा है. छत्तीसगढ़ कई राज्यों से घिरा हुआ है, मुख्य तौर पर जो नक्सल प्रभावित क्षेत्र है. वो सीमावर्ती राज्यों से ही लगे हैं. माना जाता है कि छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद की शुरूआत समीपवर्ती राज्य आंध्र प्रदेश की सीमा से लगे बस्तर से हुई है. शांति के टापू छत्तीसगढ़ की स्वर्गस्थली बस्तर में इनका प्रवेश भोपालपटनम क्षेत्र से 1960 के दशक में होना माना जाता है, जब वहां से असामाजिक तत्वों की घुसपैठ हुई. हालांकि तब इसे नक्सलवाद नहीं माना जाता था. 1967-68 में इसे छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के रूप में नामजद किया गया. तबसे ये अपने पैर पसारते गया और धीरे-धीरे छत्तीसगढ़ के लिए नासूर बन गया.
छत्तीसगढ़ 1 नवंबर 2000 में अलग राज्य बन गया, लेकिन नक्सलवाद की समस्या जस की तस बनी रही. अलग राज्य बनने के बाद से छत्तीसगढ़ में 3200 से अधिक मुठभेड़ की घटनाएं हुई हैं, गृह विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2001 से मई 2019 तक माओवादी हिंसा में 1002 माओवादी मारे गए और 1234 सुरक्षाबलों की शहादत हुई. इसके अलावा 1782 आम नागरिक माओवादी हिंसा के शिकार हुए हैं.
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिले
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिलों में पूरा बस्तर संभाग शामिल हैं, बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा, बस्तर, नारायणपुर, कोंडागांव, कांकेर, राजनांदगांव, बालोद, गरियाबंद, धमतरी, महासमुंद, कवर्धा और बलरामपुर ये वो जिले हैं जो नक्सल प्रभावित माने जाते हैं. इन जिलों की सुरक्षा में करीब 60 हजार से भी ज्यादा जवान तैनात है.
निर्णायक लड़ाई शुरू
हालांकि पिछले कुछ सालों में छत्तीसगढ़ में नक्सलियों पर सुरक्षाबलों ने नकेल कसना भी शुरू कर दिया है. पिछले पांच महीने में ही नक्सलियों के 350 से ज्यादा जवानों ने सरेंडर किया है, जबकि 112 नक्सलियों को मुठभेड़ में ढेर किया गया है.
रायपुर से सत्यप्रकाश की रिपोर्ट