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Korba News-एक चने के दाने ने ली बच्चे की जान, गले में अटकने से हुई मौत, डॉक्टरो पर लापरवाही का आरोप

Korba News-कोरबा में एक 2 साल के बच्चे की गले में चने के दाने फंसने से मौत हो गई. डॉक्टरों का कहना है कि बच्चे के ऑपरेशन की तैयारी की जा रही थी, लेकिन उससे पहले ही उसकी मौत हो गई. वहीं बच्चे के परिजनों ने डॉक्टरों पर लापरवाही का आरोप लगाया है.

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Korba News-एक चने के दाने ने ली बच्चे की जान, गले में अटकने से हुई मौत, डॉक्टरो पर लापरवाही का आरोप
Harsh Katare|Updated: Jul 25, 2025, 09:56 PM IST
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Chhattisgarh News-छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जहां चने के दाने फंसने से 2 साल के मासूम की मौत हो गई. मासूम दिव्यांश ने खेलते-खेलते गलती से एक चने का दाना निगल लिया था, जो उसके गले में फंस गया. परिजनों का आरोप है कि बच्चे को समय पर सही इलाज नहीं मिल सका और अस्पताल में उसे घंटों तक इलाज से रोका गया. बच्चे के परिजनों ने अस्पताल के डॉक्टरों पर लापरवाही का आरोप लगाया है. 

खेलते-खेलते निगला चना
उत्तर प्रदेश निवासी छोटू कुमार अपने परिवार के साथ कोरबा में पानीपुरी बेचने का काम करता है. गुरुवार सुबह छोटू के 2 साल का बेटा दिव्यांश घर के आंगन में खेल रहा था. खेलते-खेलते वह कमरे में गया और वहां रखे सूखे चने में से एक चना निगल लिया. कुछ ही देर में दिव्यांश को सांस लेने में परेशानी होने लगी और वह रोने लगा. जिसके बाद उसके चाचा उसे तुरंत अस्पताल लेकर पहुंचे.

सही समय पर नहीं मिला इलाज
दिव्यांश के चाचा गोलू बंसल ने बताया कि वे लगातार डॉक्टरों से आग्रह करते रहे कि बच्चे की हालत गंभीर है. लेकिन जवाब में यही कहा गया कि बड़े डॉक्टर आएंगे, वही देखेंगे. डॉक्टरों ने एक पाइपनली (इक्विपमेंट) लाने के लिए कहा जिसे गोलू खुद लेकर आए. लेकिन फिर भी ऑपरेशन शुरू नहीं किया गया. बच्चा पूरे दिन अस्पताल में तड़पता रहा और आखिरकार शाम 7:30 बजे बच्चे ने दम तोड़ दिया. 
 
डॉक्टरों ने दी सफाई
परिजनों ने डॉक्टरों पर लापरवाही का आरोप लगाया. इस मामले में शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. हरबंश ने कहा कि जब बच्चा अस्पताल लाया गया, तब उसकी हालत पहले से ही गंभीर थी. उसकी धड़कन लगभग बंद हो चुकी थी. डॉक्टरों की टीम ने तुरंत उसे वेंटिलेटर पर लिया, ट्यूब डाली और इलाज शुरू किया. लेकिन चना गले से होकर फेफड़ों तक पहुंच गया था, जिससे उसे झटके आने लगे और  इंटरनल ब्लीडिंग भी शुरू हो गई.

डॉक्टरों ने मानी गलती
वहीं डॉक्टर ने यह भी माना है कि बच्चों को बिलासपुर रेफर करना चाहिए था, लेकिन एंबुलेंस में वेंटिलेटर की सुविधा नहीं थी. वहीं मेडिकल कॉलेज में भी ENT विशेषज्ञ की भारी कमी है और इस जटिल ऑपरेशन के लिए 2-3 डॅाक्टरों  की आवश्यकता होती है. सर्जरी की तैयारी की जा रही थी, लेकिन ऑपरेशन से पहले ही बच्चे की जान चली गई. उन्होंने इलाज में किसी भी प्रकार की लापरवाही के आरोप से इनकार किया है

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