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पानी की पूजा..पानी की शादी..भाई को माना जाता है पति, ये है छत्तीसगढ़ की अनोखी शादी

CG NEWS: छत्तीसगढ़ अपनी सभ्यता और संस्कृति के लिए जाना जाता है. आज के आधुनिक दौर में अपनी सभ्यता और संस्कृति को निभाए चलना पूरे समाज में उदाहरण पेश करता है. वैसे तो हिंदू धर्म में रीति-रिवाजों के बहुत मायने होते हैं जिसे इस धर्म के लोग बड़ी श्रद्धा के साथ पालन करते हैं लेकिन क्या आपने कभी सुना है, हिंदू धर्म में भाई-बहन के बीच शादी या फिर अग्नि की जगह पानी को साक्षी मान कर हुई शादी के बारे में? नहीं न, तो आज इस खबर को पढ़ कर आपको छत्तीसगढ़ की इस अनोखी परंपरा के बारे में जानने को मिलेगा. 

 

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शादियों में फेरे लेने का महत्व
शादियों में फेरे लेने का महत्व

हिंदू धर्म में अग्नि को साक्षी मानकर फेरे लिए जाते हैं. किसी शादियों में 4 फेरे तो किसी शादियों में 7 फेरे लेने का रिवाज होता है. हिंदू समाज में इन फेरों के खास महत्व होते हैं. इन सात फेरों का रिवाज, सात जन्मों का रिश्ता मजबूत रखने की बात की अहमियत को बताता है. 

 

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धुरवा समाज
धुरवा समाज

फेरे तो अक्सर अग्नि को साक्षी मानकर ही लिए जाते हैं लेकिन छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का ये मामला थोड़ा अलग है. यहां सालों से धुरवा समाज के लोग शादियों में अग्नि की जगह पानी को साक्षी मानकर फेरे लेने की रस्म को निभाते आ रहे हैं. 

 

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अग्नि को जगह पानी के फेरे
अग्नि को जगह पानी के फेरे

इस समाज के लोग जल, जंगल और जमीन की पूजा करते हैं और इनके लिए जल और वायु का अहमियत अधिक होती है. पानी, इस समाज के लोगों के लिए मां के समान होती है. हर शुभ कार्य में ये लोग पानी को साक्षी मानकर ही अपने रस्मों को पूरा करते हैं. इसलिए धुरवा समाज के लोगों ने इस परंपरा की शुरुआत की. वर वधू के साथ पूरा गांव पानी के फेरे लेता है जिसके लिए तालाब, नदी, सेमल के पेड़, कुएं के पानी का इस्तेमाल किया जाता है.

 

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भाई-बहन में शादी
भाई-बहन में शादी

धुरवा समाज की एक और परंपरा आपको हैरान कर देगी. वैसे तो हिंदू धर्म में भाई-बहन के रिश्ते को बहुत पवित्र माना जाता है. इनके रिश्तों के बारे में गलत कहना ही पाप माना जाता है लेकिन धुरवा समाज के लोगों की ये परंपरा भी बड़ी अटपटी सी है. 

 

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परंपरा खत्म करने की कोशिश
परंपरा खत्म करने की कोशिश

यहां आपस के भाई-बहन में तो नहीं लेकिन दूर के रिश्तेदार भाई-बहनों में शादी कराने की परंपरा निभाई जाती है. यानी की बहन की बेटी और मामा के बेटे से विवाह करने की परंपरा है. अगर कोई इस शादी से मना करता है तो उसपर जुर्माना भी लगाया जाता है. हालांकि इस परंपरा को धीरे-धीरे खत्म करने की कोशिश की जा रही है.

 





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