Chhattisgarh News In Hindi: छत्तीसगढ़ के सूरजपुर का देवनगर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अब सिर्फ़ नाम का अस्पताल बनकर रह गया है. यहां के लगभग 35,000 ग्रामीणों की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ एक आरएमए डॉक्टर संभाल रहा है जो पिछले 10 सालों से अपनी सेवाएं दे रहा है. अस्पताल में न तो कोई और डॉक्टर है, न पैरामेडिकल स्टाफ, न लैब टेक्नीशियन, न ड्रेसर. यहां तक कि चपरासी और सफाई कर्मचारी भी मौजूद नहीं रहते. एक कमरे में चलने वाले इस अस्पताल में रोज़ाना 70-80 मरीज़ आते हैं. सुविधाओं के अभाव में ग्रामीण निजी अस्पतालों में इलाज कराने को मजबूर हैं, जिससे उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है.
यह भी पढ़ें: Ambikapur News-घरों में घुसा पानी तो मेयर ने दिया अजीबोगरीब बयान, कहा-भगवान मेरी सुन ही नहीं रहे
एक डॉक्टर के भरोसे 35 हजार लोग
दरअसल, सूरजपुर के देवनगर का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली बयां कर रहा है. यहां 35 हज़ार ग्रामीण सिर्फ़ एक आरएमए डॉक्टर के भरोसे हैं, जो सरकार के स्वास्थ्य सुविधाओं के दावों की पोल खोलता है. देवनगर स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की आबादी लगभग 27 हज़ार है और यह अस्पताल आसपास के गांवों को मिलाकर कुल 35 हज़ार लोगों की ज़िम्मेदारी संभाल रहा है. आज यह अस्पताल खुद वेंटिलेटर पर है. हालत यह है कि पूरे अस्पताल की बागडोर सिर्फ़ एक आरएमए डॉक्टर के हाथों में है, जो पिछले 10 सालों से अपनी सेवाएं दे रहा है.
अस्पताल की हालत खराब
अस्पताल की हालत ये है कि यहां न तो कोई डॉक्टर तैनात है और न ही पैरामेडिकल स्टाफ. जो डॉक्टर पहले नियुक्त थे उनका भी तबादला हो चुका है. सिर्फ़ एक लैब टेक्नीशियन था जिसका तबादला हो चुका है और तब से कोई नई नियुक्ति नहीं हुई है. ड्रेसर आठ साल पहले रिटायर हो गए और उनकी जगह आज तक किसी को नहीं भेजा गया. हालात इतने बदतर हैं कि अस्पताल में चपरासी तक नहीं है, न स्वीपर, न नर्स, न फार्मासिस्ट. एक कमरे वाले अस्पताल में सिर्फ़ एक आरएमए बैठकर ओपीडी देखता है, ड्रेसिंग करता है, इमरजेंसी संभालता है और दवाइयां भी ख़ुद ही बांटता है.
यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ को स्टील हब बनाने की कोशिश, CM विष्णुदेव साय का ऐलान विशेष अनुदान मिलेगा
प्रतिदिन 70 से 80 मरीज पहुंचते हैं
बता दें कि मुख्य मार्ग पर स्थित होने के कारण यहां प्रतिदिन 70 से 80 मरीज पहुंचते हैं. कई बार मरीज रात में भी पहुंचते हैं लेकिन उन्हें भी कोई सुविधा नहीं मिल पाती है. दूर दराज के ग्रामीण प्रतिदिन अस्पताल पहुंचते हैं लेकिन या तो उन्हें निजी अस्पतालों में इलाज कराने को मजबूर होना पड़ता है या फिर खाली हाथ लौटना पड़ता है. निजी अस्पताल में इलाज कराने के कारण ग्रामीणों को आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ रहा है. जबकि स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी इस पूरे मामले पर मौन हैं.
रिपोर्ट- ओपी तिवारी