Indore Couple Dispute: मध्य प्रदेश के इंदौर कुटुंब न्यायालय ने एक अहम फैसला सुनाया है, जो उन महिलाओं के लिए राहत भरा है जो बच्चों के साथ अलग रह रही हैं. कोर्ट ने कहा कि अगर पति-पत्नी के बीच विवाद के चलते पत्नी बच्चों को लेकर अलग रहने लगे, तो पति को बच्चों के पालन-पोषण का खर्च देना ही होगा, भले ही पत्नी खुद कमाने वाली ही क्यों न हो. इस फैसले में कोर्ट ने साफ किया कि जब तक बच्चे मां के पास हैं, तब तक उनका भरण-पोषण पिता की जिम्मेदारी बनी रहेगी.
यह मामला एक महिला की तरफ से अपने पति के खिलाफ कुटुंब न्यायालय में दायर परिवाद से जुड़ा है. महिला ने कोर्ट को बताया कि उसने अपने पति के साथ रहने की भरपूर कोशिश की, लेकिन पति ने न तो उसे और न ही बच्चों को साथ रखने की इच्छा दिखाई. महिला ने वकील रघुवीर सिंह रघुवंशी के जरिए कोर्ट में परिवाद दायर करते हुए मांग की कि पति हर महीने तय राशि भरण-पोषण के रूप में दे. उसकी शादी संदीप नाम के व्यक्ति से मार्च 2012 में हुई थी और उनके दो बच्चे हैं. 12 साल की बेटी और 10 साल का बेटा. 2017 से दोनों के बीच विवाद चला आ रहा है, जो इतना बढ़ गया कि पति ने मारपीट तक की.
उसे बच्चों का खर्च देना चाहिए
महिला ने कोर्ट को बताया कि मारपीट के दौरान जब बेटा बीच-बचाव करने आया, तो पति ने उसे धक्का दे दिया जिससे वह सीढ़ियों से गिर गया और उसे गंभीर चोट आई. पति ने न तो इलाज करवाया और न ही बच्चों और पत्नी को घर में रखा, बल्कि उन्हें बाहर निकाल दिया. बाद में पति ने दूसरी शादी भी कर ली. जवाब में पति ने दावा किया कि पत्नी ₹20,000 प्रति माह कमाती है, इसलिए वह बच्चों और खुद का भरण-पोषण कर सकती है. लेकिन पत्नी का कहना था कि पति एक इंजीनियर है और ₹75,000 हर माह कमाता है, इसलिए उसे बच्चों का खर्च देना चाहिए.
हर महीने राशि देना अनिवार्य
सुनवाई के बाद कोर्ट ने पति को आदेश दिया कि वह हर महीने अपनी बेटी को ₹15,000 और बेटे को ₹7,000 दे, जो कि बच्चों की मां के पास जाएगा. यह राशि हर महीने की 10 तारीख तक देना अनिवार्य होगा. साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह भुगतान उस दिन से लागू होगा जब से पति-पत्नी अलग हुए थे. यदि पति ने बीच में कोई रकम दी है तो उसका समायोजन किया जा सकता है. कोर्ट के इस फैसले को एक मिसाल के तौर पर देखा जा रहा है, जिससे कई महिलाओं को न्याय मिलने की उम्मीद जगी है. (सोर्सः ETV)
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