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दलित भोज! मिशन 2028 के लिए MP कांग्रेस हर फ्रंट पर एक्टिव, बीजेपी की खोज रही काट

MP Politics: एमपी कांग्रेस अब अपनी ही खोई जमीन को पाने की कोशिश में लग गई है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मिशन 2028 के लिए अभी से एक्टिव हो गए हैं और पूरी जी-जान के साथ मेहनत में लगे हुए हैं.   

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MP Congress proactively pursuing Dalit politics
MP Congress proactively pursuing Dalit politics
Divya Tiwari Sharma |Updated: Jun 24, 2025, 06:21 PM IST
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MP Congress: मध्य प्रदेश में कांग्रेस अपनी खोई जमीन तलाशने की जी-तोड़ कोशिश कर रही है. प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी रोजाना लगभग पूरा दिन कांग्रेस कार्यकर्ताओं या आम जनता के बीच बिताते हैं. जिला अध्यक्ष परिवारवाद को किनारे कर, जमीनी स्तर से खोजे जा रहे हैं. मिशन 2028 के लिए लगातार प्रयास जारी है. हाल ही में 10 साल बाद एमपी पीसीसी मुख्यालय में राहुल गांधी पहुंचे, 5 घंटे बिताए, गुरू मंत्र दिया. कहने के लिए 2028 अभी बहुत दूर है, तो ये जल्दबाजी क्यों, ये हड़बड़ाहट क्यों. दरअसल मध्य प्रदेश की राजनीतिक पन्ने पलट कर देखेंगे तो कांग्रेस की बेचैनी के पीछे की वजह समझ आएगी. पिछले लगभग दो दशकों से मध्य प्रदेश में बीजेपी ने ऐसी जड़ें बनाई है, जिसे कांग्रेस खुरच भर पाई, वो भी सिर्फ 15 माह के लिए, जब कांग्रेस की सरकार रही, उसे भी किसी फिल्मी पटकथा की तरह सिंधिया की मदद से गिरा दिया गया था. 

2025 में 2028 के लिए इतनी बेचैनी?
इस बार के लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस अपने सबसे मजबूत छिंदवाड़ा के किले तक को नहीं बचा पाई, जो उसके मनोबल के लिए बड़ी क्षति थी. इसपर कांग्रेस की अंदरुनी कलह. कमलनाथ और पटवारी के गुटों में कोल्ड वॉर पार्टी के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है. अब तो ये कोल्ड वॉर धीरे धीरे खुलकर मंच तक आ पहुंचा है. ऐसे में राहुल गांधी का पूरा मोर्चा खुद संभालना और एमपी कांग्रेस का 2025 में 2028 के लिए इतनी बेचैनी दिखाना लाजमी है. एमपी की सत्ता पानी है तो सबसे पहला मोर्चा होता है दलित, जो राज्य में सत्रह से अठारह प्रतिशत यानि करीब करीब 64 लाख है. मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा की सीटों में से 35 सीट दलित समाज के लिए सुरक्षित सीटें हैं. 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए खुद पीएम मोदी ने इस सत्रह से अठारह प्रतिशत पर खास फोकस किया था और बम्पर जीत हासिल की थी. इसी गणित पर कांग्रेस 2028 के लिए अभी से काम कर रही है. 

दलित भोज में शामिल हो रही कांग्रेस

मंगलवार को कांग्रेस ने दलितों के साथ बैठकर भोजन किया. प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा कांग्रेस का दलितों के साथ भोजन कर एक जुट होने का संदेश है. पटवारी ने दलितों के साथ भोजन करते हुए कहा जिनके साथ भोजन कर रहा हूं वो संविधान के प्रहरी है. मोहन सरकार में प्रदेश दलितों के साथ अत्याचार की राजधानी बन गया है. पटवारी ने यह भी कहा साथ में भोजन करने का संदेश यह भी है कि देश में संविधान बचाना है तो एकजुट हो जाओ. इसपर भाजपा ने तंज कसते हुए कहा खाना बाहर से मंगाया जा रहा है, खाने की बस नौटंकी की जा रही है. भाजपा ने कहा कांग्रेस दलितों के नाम पर पाखंड कर रही है. नौटंकी कर रही है, बाबा साहब अंबेडकर के अंतिम संस्कार के लिए जगह तक कांग्रेस ने नहीं मिलने दी थी.  कांग्रेस के पाप नहीं धुलने वाले.
 

एमपी कांग्रेस के सामने पांच बड़ी चुनौती

दलित और आदिवासी तो ठीक हैं पर एमपी में कांग्रेस के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं, जिन्हें कंट्रोल करना सबसे अहम है. ये 5 चुनौतियां सबसे बड़ी है

पहली... सबसे बड़ी समस्या है गुटबाजी. ये तेरी कांग्रेस, ये मेरी कांग्रेस नहीं रोका तो 2028 में भी 2023 वाला नुकसान हो सकता है. पहले विधानसभा उसके बाद लोकसभा में पूरी 29 की 29 सीटें हारने के बाद से तो आपसी तानाबाना पूरी तरह हिला हुआ है. सीनियर नेताओं में समन्वय बनने के आसार तक नजर नहीं आ रहे. 

दूसरी... देशभर में कांग्रेस के गिरते ग्राफ के बाद से जमीनी स्तर पर पार्टी के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं की भी कमी हो गई है. गांव गांव जाकर काम करने वाले कार्यकर्ता नहीं है.  बूथ लेवल पर संगठन कमजोर है. 

तीसरा... अनुभवी और लोकप्रिय नेताओं की नाराजगी. इस समय दिग्विजय सिंह को छोड़ दें तो पार्टी के पास एक भी नेता नहीं हैं जिसपर जनता आंख बंद कर भरोसा कर सके. 2023 की हार के बाद से कमलनाथ मौसमी नेता हो गए हैं. आए तो आए वर्ना कहां है पता नहीं. सिंधिया हाथ का साथ छोड़ चुके हैं. इनके आगे की पीढ़ी को अनुभव नहीं है. 

चौथा.... दो दशकों तक सत्ता से बाहर रहने के बाद जनता के मन में विश्वास जगाता कि प्रेदश में कमल के अलावा भी कोई सूबा संभाल सकता है. 

पांचवा....संघ का साथ. बीजेपी ने पिछले सारे विधानसभा चुनाव संघ के साथ से जीते हैं और मध्य प्रदेश खासतौर पर मालवा संघ का वो मजबूत गढ़ है, जिसमें सुराख करना भूसे में सुई खोजने जैसा है. 

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