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एक तरफ कुआं...दूसरे तरफ खाई, बीच मंझधार में फंसे मध्य प्रदेश के किसान और ग्रामीण

Rajgarh Flood Update: मध्य प्रदेश के राजगढ़ में किसानों के लिए एक तरफ खाई, तो दूसरी तरफ कुआं जैसी समस्या बनी हुई है. बारिश के मौसम में जब अजनार नदी उफान पर आती है, तो डैम के दोनों तरफ के किसानों और ग्रामीणों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. 

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मध्य प्रदेश के किसानों की बड़ी मुसीबत
मध्य प्रदेश के किसानों की बड़ी मुसीबत
Manish kushawah|Updated: Jun 20, 2025, 08:37 AM IST
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Rajgarh Dam News: मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले के मूंडला गांव में बने डैम ने गांव के किसानों और ग्रामीणों की जिंदगी अधर में फंसी हुई है. आपको बता दें कि डैम के केचमेंट एरिया में आने वाले खेतों में हर साल बारिश के समय तेज बहाव आता है, जिससे न सिर्फ खड़ी फसल तबाह होती है, बल्कि खेतों की उपजाऊ मिट्टी भी बाढ़ के कारण बह जाती है. जिससे किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ता है. वहीं स्थानीय प्रशासन का कहना है कि ये खेत डैम की डाउन स्ट्रीम में आते हैं, इस लिए ये किसान न तो जमीन अधिग्रण के दायरे में आते हैं न ही इन्हें किसी तरह का मुआवजा दिया जाता है. यही वजह है कि हर बार जब डैम के गेट खोलने का समय आता है, तो विवाद बढ़ जाता है. 

स्थानीय प्रशासन से मिली जानकारी के मुताबिक, जब डैम का गेट खोलने की नौबत आती है, तो किसान गेट खोलने का विरोद करते हैं. क्योंकि किसानों को डर लगता है कि खेत की उपजाऊ मिट्टी और फसलें दोनों बर्बाद हो जाती है, जिससे किसानों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा, जब दूसरी ओर यदि डैम से पानी समय पर नहीं छोड़ा गया, तो ब्यावरा शहर की अजनार नदी में उफान आने के कारण बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं. जिससे ब्यावरा के ग्रामीण कई बार बाढ़ की समस्या से जूझ चुके हैं. 

प्रशासन से सिर्फ आश्वासन
वहीं इसको लेकर एक स्थानीय व्यापारी ने बताया कि 2022 में शहर में पानी तेजी से चढ़ा, लेकिन धीरे-धीरे निकला, क्योंकि डैम से जानबूझकर धीरे-धीरे पानी छोड़ा गया था, जिससे किसानों की फसल को बचाया जा सके. लेकिन इसका खामियाजा शहरवासियों को भुगतना पड़ा था. गांव के सरपंच हेमराज का कहना है कि मूंडला डैम साल 2015 में बना था और तब से ही आस-पास के छोटे किसान हर साल बारिश के मौसम में नुकसान झेल रहे हैं. उनकी खरीफ और रबी दोनों फसलें नहीं हो पा रहीं, क्योंकि डैम से जब पानी छोड़ा जाता है तो वह इतनी तेज रफ्तार से खेतों में आता है कि सब कुछ बहा ले जाता है. प्रशासन से कई बार मुआवजे की मांग की गई, लेकिन सिर्फ आश्वासन मिला. उल्टा जब आवाज उठाते हैं तो पुलिस और प्रशासन के अफसर डराने की कोशिश करते हैं. ये किसान पूरी तरह खेती पर निर्भर हैं, इसलिए उनके पास कोई दूसरा सहारा भी नहीं है.

किसानों की बड़ी मजबूरी
इसके अलावा, अमृतपुरा गांव के किसान ने बताया कि उनके पास सिर्फ 3 बीघा जमीन है, जिससे उनका पूरा परिवार गुजर-बसर करता है. लेकिन डैम से जब पानी छोड़ा जाता है तो न सिर्फ फसल बह जाती है बल्कि जमीन भी खराब हो जाती है. इतने सालों में कभी कोई मुआवजा नहीं मिला है. ऐसे में किसान हर बार गेट न खोलने की जिद करते हैं और यही कारण है कि हर साल वहां पुलिस को तैनात करना पड़ता है. ये किसानों की मजबूरी है, लेकिन प्रशासन इसे कानून व्यवस्था का मुद्दा बनाकर देखता है.

संकट का समाधान कब?
अब सवाल ये उठता है कि इस संकट का समाधान कौन करेगा? ब्यावरा नगरपालिका के सीएमओ इकरार अहमद का कहना है कि इस समस्या की जानकारी कलेक्टर को दी जाएगी. वहीं सिंचाई विभाग के एसडीओ संजय अग्रवाल ने कहा है कि यदि इस बार भी ऐसा ही हालात बनते हैं तो शासन को पत्र भेजकर किसानों की दिक्कत बताई जाएगी और फिर जो आदेश आएंगे उसके मुताबिक ही कोई कार्रवाई होगी. मगर किसान कहते हैं कि हर साल सिर्फ पत्र और आदेश आते हैं, जमीनी स्तर पर न कोई मुआवजा मिलता है, न समाधान. डैम की वजह से एक तरफ गांव जलता है और दूसरी तरफ शहर डूबता है. दोनों के बीच पिसता है सिर्फ किसान. (सोर्सः ETV)

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