trendingNow/india/madhya-pradesh-chhattisgarh/madhyapradesh12111006
Home >>Madhya Pradesh - MP

बैंकॉक, थाईलैंड और कंबोडिया भेजे भगवान बुद्ध के शिष्यों के अस्थि कलश,मिली खास अनुमति

Raisen News: भारत सरकार द्वारा रायसेन जिले के सांची में बौद्ध स्तूप परिसर में स्थित भगवान बुद्ध के शिष्यों अर्हन्त सारिपुत्र और अर्हंत महामोगल्यान के पवित्र अवशेषों को दर्शनार्थ के लिए बैंकॉक, थाईलैंड और कंबोडिया विहार ले जाने की अनुमति मिल गई है.

Advertisement
बैंकॉक, थाईलैंड और कंबोडिया भेजे भगवान बुद्ध के शिष्यों के अस्थि कलश,मिली खास अनुमति
Shyamdatt Chaturvedi|Updated: Feb 14, 2024, 11:46 PM IST
Share

Raisen News: भोपाल/रायसेन। भारत सरकार द्वारा रायसेन जिले के सांची के बौद्ध स्तूप परिसर में स्थित भगवान बुद्ध के शिष्यों अर्हन्त सारिपुत्र और अर्हंत महामोगलायन के पवित्र अवशेषों को दर्शनार्थ हेतु बैंकॉक, थाईलैंड और कंबोडिया विहार ले जाने की अनुमति दी गई है. अब इन्हें यहां से भोपाल फिर दिल्ली और इसके बाद बैंकॉक, थाईलैंड और कंबोडिया ले जाया जाएगा. इसके लिए प्रशासन सरकार ने सारी प्रक्रिया कर ली है.

कलेक्टर ने सौंपे अवशेष
आज भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और मप्र शासन के संस्कृति विभाग के निर्देशानुसार पवित्र अवशेषों को आज महाबोधि सोसायटी श्रीलंका के प्रमुख बानगल उपतिस्स नायक थेरो की उपस्थिति में कलेक्टर अरविंद दुबे ने भारत सरकार द्वारा अधिकृत तथा राष्ट्रीय संग्रहालय के प्रतिनिधि डीजे प्रदीप को सुरक्षित तरीके से सौंपा. भोपाल से पवित्र अवशेषों को हवाई जहाज के माध्यम से दिल्ली और फिर वहां से बैंकॉक, थाईलैंड और कंबोडिया विहार दर्शन के लिए ले जाए जाएंगे.

कब वापस आएंगे भारत
पवित्र अवशेष 22 फरवरी से 18 मार्च तक दर्शनार्थ हेतु रहेंगे और इसके उपरांत पुनः वापस भारत लाए जाएंगे. शासन के निर्देशानुसार महाबोधि सोसायटी श्रीलंका के अध्यक्ष वानगल की मौजूदगी में कलेक्टर अरविंद दुबे राष्ट्रीय संग्रहालय के प्रतिनिधि डीजे प्रदीप को पूर्ण प्रक्रिया तथा पंचनामा तैयार कर अवशेष सौंपे हैं. इस अवसर पर आईबीसी के डायरेक्टर विजयेंद्र थापा, पुलिस अधीक्षक विकास शहवाल भी साथ रहे.

अंग्रेजों ने भेज दिया था इंग्लैंड
बता दें अंग्रेज जनरल कनिंघम ने यहां खुदाई कराकर दोनों की अस्थियों को अन्य बौद्ध शिक्षकों के अस्थि कलश के साथ इंग्लैंड भेज दिया था. 100 साल बाद 1952 में भारत सरकार और श्रीलंका महाबोधि सोसायटी के प्रयासों से नवंबर माह के अंतिम रविवार को इन्हें वापस भारत लाया गया और सांची के चैता गिरी में रखा गया था.

तीर्थ है सांची
कई बौद्ध अनुयायी देशों से लोग सांची को तीर्थ से कम नहीं है. खुद श्रीलंका के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, क्रिकेटर सांची में आकर खुद को धन्य होने की बात कर चुके हैं. सांची में सारिपुत्र और महामोगग्लायन के अस्थि कलश होने के साथ विशेष आस्था का एक कारण यह भी है कि सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा सांची से बोधिसत्व की शाखा लेकर श्रीलंका गए थे. उन्होंने बोधिसत्व स्थापित कर बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया था.

Read More
{}{}