Sagar News-मध्यप्रदेश के सागर के एक आदिवासी बाहुल्य गांव गर्मियों के मौसम में पानी के संकट से जूझ रहा है. यहां कि महिलाएं 30 फीट गहरे कुएं में उतरकर पानी लाने को मजबूर हैं. गांव में हो रहे जलसंकट ने यहां के लोगों कोी जिंदगी को थाम सा दिया है. करीब 1200 की आबादी वाले गांव में गर्मियों का मतलब है कि सिर्फ कुएं में उतरना, पानी खींचना और सिर पर उठाकर सीढ़ियां चढना.
इस गांव की महिलाओं का कहना है कि हर दिन उन्हें ऐसा लगता है, जैसे उनकी जिंदगी दांव पर लगी हो. उनका कहना है कि इमलिया गांव में उनकी भूलकर भी शादी नहीं होनी थी, यहां शादी कर पछता रहे हैं.
चार महीने रहती है परेशानी
सागर से करीब 18 किमी दूर स्थित इमलिया गांव में जलसंकट के हालात हैं. इस जलसंकट से महिलाओं की जिंदगी और दिनचर्या पर इसका खासा असर पड़ रहा है. गर्मियों के चार महीने पूरा गांव पानी के लिए परेशान रहता है. गांव में हो रहे जलसंकट की शिकायत गांव के लोग सरपंच, सचिव, विधायक से लेकर कलेक्टर तक से कर चुके हैं, लेकिन समाधान नहीं हो पाया है.
पाइपलाइन डली लेकिन पानी नहीं
1200 की आबादी वाले इस गांव में मात्र एक हैंडपंप है लेकिन उसमें भी पानी की मात्रा बहुत कम है. ग्रामीणों का कहना है कि हैंडपंप का पानी पीने योग्य नहीं है. गांव में नल-जल योजना के अंतर्गत गांव में पाइपलाइन तो डाली गई है, लेकिन न किसी घर में कनेक्शन दिए गए हैं और न ही पानी सप्लाई करने के लिए टंकी का निर्माण हुआ.
कुएं में उतरती हैं महिलाएं
भीषण गर्मी के बीच जब सरकारी जलस्रोत सूख जाते हैं, तब इमलिया गांव के ग्रामीणों को मजबूरन निजी कुओं का सहारा लेना पड़ता है. गांव के पास स्थित पंडा का कुआं इस संकट का विकल्प बन चुका है. इस निजी कुएं में 25 से ज्यादा सीढ़ियां हैं और इसकी गहराई लगभग 30 फीट है. पानी लेने के लिए महिलाएं अपनी जान जोखिम में डालकर कुएं में उतरती हैं. बाल्टी से पानी भरती हैं, फिर सिर पर गुंडी या कुप्पा रखकर सीढ़ियों के सहारे ऊपर चढ़ती हैं और उसे घर तक पहुंचाती हैं. ऐसे में हादसा होने की आशंका बनी रहती है.
शिकायत के बाद भी हालात वैसे ही
ग्रामीणों का कहना है कि गांव में पानी की समस्या बेहद गंभीर है. रोज कुएं की सीढ़ियां चढ़कर पानी लाना पड़ता है. कई बार शिकायतें कीं, अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई है. गर्मियों की शुरुआत में जलसंकट शुरू हो गया है. अगर निजी कुओं में भी पानी सूख गया तो ग्रामीणों के पास कोई विकल्प नहीं बचेगा.
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