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कौन थे राजा भभूत सिंह, जिनके नाम पर हो रही मोहन कैबिनेट की बैठक, कहानी सुन करेंगे तारीफ

Raja Bhabhut Singh: पचमढ़ी में मोहन कैबिनेट की बैठक राजा भभूत सिंह के नाम पर हो रही है, जिन्होंने अपने समय में अंग्रेजों को खदेड़ दिया था, जिनका इतिहास वीरता और शौर्य से भरा पड़ा है.

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राजा भभूत सिंह की कहानी
राजा भभूत सिंह की कहानी
Arpit Pandey|Updated: Jun 03, 2025, 11:06 AM IST
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Mohan Cabinet Meeting: पचमढ़ी की पहचान मध्य प्रदेश के एकमात्र हिल स्टेशन से होती है, लेकिन सतपुड़ा की रानी और दक्षिण का कैलाश कहे जाने वाले पचमढ़ी के राजा भभूत सिंह को नर्मदाचंल का शिवाजी कहा जाता था, जिनकी वीरता की कहानियां भी पचमढ़ी की एक बड़ी पहचान है, यही वजह है कि मोहन कैबिनेट की डेस्टिनेशन बैठक आज पचमढ़ी में होने जा रही है, जो आदिवासी राजा भभूत सिंह को समर्पित है, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों से लोहा लिया था. आदिवासी राजा भभूत सिंह गोरिल्ला युद्ध में माहिर थे और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में तात्या टोपे का भी साथ दिया था, वह तीन साल तक जंगलों में रहे और अंग्रेजों के खिलाफ लगातार लड़ते रहे, जिससे अंग्रेज उनके पास जाने से डरते थे. मोहन कैबिनेट की बैठक आज उन्हीं के नाम पर पचमढ़ी में होने जा रही है. 

नर्मदाचंल के शिवाजी थे राजा भभूत सिंह 

राजा भभूत सिंह पचमढ़ी जागीर के ठाकुर अजीत सिंह के वंश में हर्राकोट राईखेड़ी शाखा के जागीरदार परिवार में पैदा हुए थे. वह अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने की वजह से सबसे पहले चर्चा में आए थे. राजा भभूत सिंह गोंड जनजाति के प्रमुख राजा थे, उनका राज्य जबलपुर और सतपुड़ा की पहाड़ियों तक फैला था. 1857 की आजादी की पहली लड़ाई के दौरान उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया और जंगलों और पहाड़ी रास्तों का इस्तेमाल करके अंग्रेजों को कई बार हराया था. उनकी रणनीति और नेतृत्व ने स्थानीय लोगों में आत्मविश्वास भरा, वे न केवल एक योद्धा थे, बल्कि लोगों के हित में काम करने वाले नेता भी थे. 

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भगवान शिव के भक्त थे राजा भभूत सिंह

इतिहासकार बताते हैं कि राजा भभूत सिंह भगवान शिव के भक्त थे और उन्होंने अपने शासन में कई शिव मंदिरों का निर्माण भी करवाया था, इसके अलावा उन्होंने सिंगानामा में कुंड और शिवलिंग का निर्माण करवाया था, राजा भभूत सिंह न केवल युद्ध में महारथ रखते थे बल्कि उन्हें वैद्य का ज्ञान भी था, वह जंगलों की औषधियों से भलिभाति परिचित थे, जिससे वह युद्ध में घायल सैनिकों की भी सबसे ज्यादा मदद करते थे. दरअसल, बताया जाता है कि राजा भभूत सिंह के दादा मोहन सिंह ठाकुर ने नागपुर में पेशवा अप्पा साहेब भोंसले के साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी थी, तब राजा भभूत सिंह छोटे थे, लेकिन यही से उनके दिल में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत शुरू हो गई थी, ऐसे में उन्होंने पहले स्वतंत्रता संग्राम में तात्या टोपे का साथ दिया था. 

पचमढ़ी के जंगलों में लड़ी लड़ाई 

बताया जाता है कि राजा भभूत सिंह के दादा ने पचमढ़ी और आसपास के इलाकों में आदिवासियों के संगठित किया था, ऐसे में जब कमान राजा भभूत सिंह के हाथों में आई तो वह भी युद्ध में माहिर रहे. राजा भभूत सिंह पचमढ़ी के चप्पे-चप्पे से वाकिफ थे, ऐसे में यहां अंग्रेजों की दाल नहीं गलती थी, वह मधुमख्खियों के छत्ते से अंग्रेजों पर हमला बोलते थे और पूरी तरह से नेस्तानाबूत कर देते थे. देनवा घाटी का युद्ध सबसे बड़ा माना जाता है, जहां उन्होंने अंग्रेजी मिलिट्री सेना और मद्रास इन्फेंट्री की टुकड़ी से युद्ध जीता था. अंग्रेजों के लिए राजा भभूत सिंह कितनी बड़ी समस्या थे, इसकी बात खुद अंग्रेजों ने बताई थी, क्योंकि उन्हें पकड़ने के लिए अंग्रेजों को मद्रास इन्फेंट्री को बुलाना पड़ा था. 1860 में भेदियों की मदद से अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. 

पचमढ़ी में आज भी मौजूद है उनके अवशेष

राजा भभूत सिंह से जुड़े अवशेष आज भी पचमढ़ी और उसके आसपास के इलाकों में मिलते हैं. मढ़ई और पचमढ़ी के घने जंगलों में किले का द्वार लोहारों की भट्टियां मौजूद है, जिससे पता चलता है कि उनकी खुद की औजार फैक्ट्री थी, जिसके दम पर वह अंग्रेजों से लड़ाई लड़ते थे. क्योंकि वह न केवल हथियार बनाते थे बल्कि उससे ही अंग्रेजों से लड़ते थे. राजा भभूत सिंह की स्मृति में ही मोहन सरकार ने आज मंत्रिमंडल की बैठक यहां करने का फैसला किया है. ताकि लोगों के उनके शौर्य की गाथा का पता चल सके. (सोर्स दैनिक भास्कर) 

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