women's day 2025 special: किसी ने सच ही कहा है कि जिसका कोई नहीं होता उसके लिए उपरवाला ही सबकुछ होता है. ऐसा हम इसलिए कह रहे क्योंकि मध्यप्रदेश के आगर मालवा की ये खबर आपको भी भावुक कर देगी. आज महिला दिवस के खास मौके पर हम आपको बताने जा रहे भगवान की भेजी हुई उस देवी के बारे में जो आज कई बेसहारे बुजुर्गों का सहारा बनी हैं. दर- दर ठोकर खा रहे इन बुजुर्गों को नई जिंदगी देने वाली मीना की कहानी बेहद ही प्रेरणादायक है. जहां इन बुजुर्गों के अपनों ने इन्हे ठुकरा दिया वहीं फरिश्ता बनकर आई मीना ने इनके जिंदगी के नए द्वार खोल दिए हैं.
बुजुर्गों के लिए खुला वृद्धाश्रम
मध्यप्रदेश के आगर मालवा की ये कहानी कहीं-कहीं आज के समय की हकीकत को दर्शाती है. आज लोग अपने काम- काज में इतने व्यस्त हो चुके हैं कि उन्हें अपने माता - पिता का ध्यान ही नहीं है, कुछ तो ऐसे भी लोग है जो अपने माता- पिता के साथ रहना ही नहीं चाहते हैं. भींड की रहने वाली मीना इन जैसे लोगों को उनकी हकीकत दिखाई है. मीना बेसहारे हुए बुजुर्गों के लिए काम करती हैं. उनके रहने खाने-पिने से लेकर हर जिम्मेदारी अब मीना के हाथों में है. बुढ़ापे का सहारा बनी मीना ने उज्जैन में 'अपनाघर' नाम से एक वृद्धाश्रम भी खोला है. मीना का कहना है कि उनके जीवन का सपना था कि वो जब लोगो की मदद करने के काबिल हो जाऐंगी तब वो वृद्धजनों की सेवा करेगी.
बुजुर्गों की कहानी
उज्जैन निवासी देवीप्रसाद मिश्रा इस वृद्धाश्रम में रहने वाले एक ऐसे ही बुजुर्ग है जिनका कोई पुत्र नहीं है, है तो सिर्फ 3 लड़कियां और उनकी भी शादी हो चुकी है. बेटियों की शादी के बाद देवीप्रसाद पत्नी के सहारे अपना जीवन बिता रहे थे लेकिन एक दिन पत्नी का भी निधन हो गया था. पत्नी के गुजर जाने के बाद उनकी जिंदगी बदहाल स्थिति से गुजर रही थी. बेटियों के घर रहना भी अच्छा नहीं लगता था जिससे परेशान होकर देवीप्रसाद ने अपना घर भी छोड़ दिया. एक दिन भटकते-भटकते अपनाघर में उन्हें पनाह मिली और देखरेख करने वाली बेटी के रूप में मीना मिली. अब उन्हे अपने जिंदगी में एक परिवार में होने का अनुभव मिलता है.
ये कहानी है रामचंद्र जायसवाल की जिन्होंने अपने जीवन के 70 साल पुरे कर चुके हैं. इनका जीवन भी कम उतार चढ़ाव से भरा नहीं था. कोई संतान नहीं होनो से रिश्तेदारों के घर रहा करते थे. जैसे ही वृद्धाश्रम की जानकारी मिली तो रामचंद्र वृद्धाश्रम आ पंहुचे. अब उन्हें यहां समय पर खाना पीना, चाय नाश्ता सबकुछ मिल जाता है. रामचंद्र बताते हैं कि जीवन के अंतिम पढाव पर वे यहां अपने आपको सुखी महसुस करते हैं.
मीना की प्रेरणादायक कहानी
7 साल पहले आगर मालवा में सुन्दरम कलोनी में शुरू हुए इस अपनाघर के बारे में मीना बताती हैं कि उन्हें इस नेक काम के लिए राजेश खन्ना अभिनित फिल्म अवतार से प्रेरणा मिली है. स्कूल जाते-आते समय बुजुर्गों के खराब हालात देखकर उनके लिए कुछ करने का ख्याल बचपन से ही था. आगर मालवा में एक भी वृद्धाश्रम नहीं होने की जानकारी लगी तो वे यहां चली आई, और अपनाघर नाम से वृद्धाश्रम खोल लिया. मीना बताती हैं कि उनके घरवाले भी उनके इस काम में पूरा सहयोग करते हैं.
मीना का ये नेक काम आज हर महिला के लिए गौरव की बात है. एक महिला होने के बाद भी घर से सेकड़ो किलोमीटर दूर रहकर बुजुर्गों की सेवा करना किसी चुनोती से कम नहीं है, सरकारी नियमों के चलते अभी तक किसी भी तरह की सरकारी मदद भी इस आश्रम को नहीं मिल सकी है. ऐसे में इस वृद्धाश्रम को बिना किसी सहायता के चलाना किसी मुश्किल से कम नहीं लेकिन बावजूद इसके, स्थानीय लोगो की मदद से सभी चुनोतियों को पार कर मीना बुजुर्गों की सेवा में दिन- रात लगी हुई है.