Mahakaleshwar Jyotirlinga History: सावन का पावन महीना चल रहा है. इस समय बाबा महाकाल की नगरी में हर रोज लाखों की संख्या में भक्त दर्श के लिए पहुंच रहे हैं. उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में तीसरे स्थान पर आता है. यह दक्षिणमुखी होने के चलते इस ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व है. लेकिन क्या आपको पता है उज्जैन में भगवान शिव कैसे प्रकट हुए और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना कैसे हुई? अगर नहीं तो चलिए जानते हैं महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना से जुड़ी कुछ प्रचलित कहानियां....
पढ़िए पूरी कहानी...
दरअसल, उज्जैन के पंडित महेश शर्मा के मुताबिक, उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्वयंभू और दक्षिणमुखी है, जिसकी स्थापना भगवान शिव ने खुद की थी. इसका प्रमाण राजा चंद्रसेन और एक पांच साल के बालक से जुड़ा हुआ है. प्रचलित कथाओं के मुताबिक, राजा चंद्रसेन भगवान शंकर के परम भक्त थे. राजा चंद्रसेन को उनके मित्र शिवगण मणिभद्र ने एक दिव्य चिंतामणि दी थी. इस दिव्य मणि के प्रभाव से राजा की कीर्ति पूरे देश में तेजी से फैलने लगी. जिसके कारण अन्य राजा उवन पर हमला करने लगे. संकट की घड़ी में राजा चंद्रसेन भगवान शिव की भक्ति में लीन हो गए. वे मंदिर में जाकर शिव आराधना में लग गए.
स्वयं प्रकट हुए थे भगवान शिव
जब वो भगवान शिव की पूजा में लीन थे, तभी एक विधवा महिला अपने पांच वर्षीय छोटे बालक के साथ मंदिर में पूजा करने आई. इस दौरान बच्चा राजा की भक्ती को देख आकर्षित हो गया और घर जाकर शिवलिंग की पूजा करने लगा. छोटे से बालक को भक्ति में लीन देख उसकी मां को क्रोध आया और उसने उसकी पूजा सामग्री फेंक दी. इसी दौरान भगवान शिव स्वंय वहां प्रकट हो गए, उनके साथ एक स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भी मंदिर के साथ प्रकट हो गया. इस चमत्कारी घटना को देख कर कोई आश्चर्यचकित हो गया. इसे देखने राजा चंद्रसेन, आक्रमणकारी राजा और खुद हनुमान जी भी वहां पहुंच गए. सबने छोटे बच्चे की भक्ति में सराहना की. उसी वक्त से दक्षिणमुखी महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना मानी जाती है.
एक अन्य प्रचलित कथा
महाकाल मंदिर से जुड़ी एक और भी प्रचलित कथा है, कहा जाता है कि प्रचाीन काल में अवंतिका नगरी में वेदप्रिय नामक एक ब्राह्मण रहते थे, जो भगवान शिव के परम भक्त थे. वेदप्रिय नियमित भगवान शिव का पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा करते थे. इसी दौरान रत्नमाल पर्वत पर दूषण नामक राक्षस आतंक मचाने लगा. उसका आतंक इतना बढ़ गया कि ब्राह्मणों की धार्मिक गतिविधियों में भी विघ्न डालने लगा. पहले तो भगवान शिव ने उसे चेतावनी दी, लेकिन जब उसने अति मचाना शरू कर दिया तो भगवान शिव धरती को चीरकर ‘महाकाल’ रूप में प्रकट हुए और राक्षस का वध कर दिया. इसके बाद बाबा महाकाल ने दूषण की भस्म से स्वयं का श्रृंगार किया. ब्राम्हणों की प्रार्थना स्वीकार करने के बाद भगवान शिव ने वहीं पर अपना स्थायी निवास बना लिया, जहां आज महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं.
सोर्स अमर उजाला
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां सामान्य जानकारियों और स्थानीय किवदंतियों पर आधारित हैं. Zee News इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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