Uddhav-Raj Thackeray: पूरे देश की निगाहें 12 जून को जिस समय अहमदाबाद पर टिकीं थीं, ठीक उसी समय वहां से 550 किलोमीटर दूर मुंबई के ताज लैंड्स एंड होटल में एक 'सियासी खिचड़ी' पक रही थी. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने लगभग डेढ़ घंटे तक मुलाकात की. 90 मिनट की अचानक मुलाकात ने पूरे महाराष्ट्र में सियासी भूकंप ला दिया है.
गिले शिकवे दूर कर गले मिलने की थी तैयारी
देवेंद्र और राज के मिलने से ठीक पहले तक महाराष्ट्र में कयास लगाए जा रहे थे कि 'एक से दो' हुए ठाकरे बंधु अब फिर 'दो से एक' होने जा रहे हैं. यानि पुराने गिले-शिकवे दूर कर गले मिलने के लिए मंच सजाने की तैयारी चल रही थी. लेकिन उससे ठीक पहले सीएम देवेंद्र फडणवीस ने खेला कर दिया.
ठाकरे घराना बचाना है तो एक हो
बीते कुछ समय से महाराष्ट्र की सियासत में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिससे संकेत मिल रहे थे कि उद्धव और राज अपने 'ठाकरे घराने' को बचाने के लिए हाथ मिला लेंगे. उद्धव ठाकरे ने बीती 6 जून को कहा इन्हीं चर्चाओं के बीच राजनाथ सिंह के स्टाइल में कहा था कि महाराष्ट्र की जनता जो चाहेगी, वही होगा. राजनाथ ने भी पहलगाम हमले के बाद यही कहा था- 'देश की जनता जो चाहती है, वही होगा'.
सीट बची न इज्जत!
2006 में राज ठाकरे ने अपनी सियासी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए शिवसेना से अलग राह चुनते हुए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाई थी. राज ने जिन उम्मीदों से अलग पार्टी बनाई, वो वैसा मुकाम हासिल नहीं कर सकी जैसा सोचा गया था. 2024 का विधानसभा चुनाव तो दोनों ही भाइयों के लिए बुरा रहा. उद्धव ठाकरे ने राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे के सामने अपना प्रत्याशी खड़ा कर दिया, नतीजा अमित चुनाव हार गए. राज ठाकरे तो अपना खाता तक नहीं खोल सके. वहीं उद्धव भी इतनी 'कुर्बानियों' के बाद भी सीएम की कुर्सी से दूर ही रहे.
दोनों भाई मराठी अस्मिता के झंडाबरदार
अब दोनों ही भाइयों के सामने इसी साल होने वाला निकाय चुनाव है. उद्धव और राज, दोनों ही भाइयों को इस बात का अहसास हो गया है कि 'अकेला चना भांड नहीं फोड़ सकता'. इसीलिए भलाई इसी में है कि दोनों फिर से एक हो जाएं और पूरी मजबूती से चुनाव लड़ें. बेशक सियासी अनुभव में राज ठाकरे उद्धव पर बीस पड़ते हों, लेकिन बड़े भाई की सियासी जमीन फिलहाल ज्यादा मजबूत है. दोनों के अलग रहने से मराठी मानुष का भी कहीं कहीं न कहीं थोड़ा नुकसान हुआ है, क्योंकि दोनों भाई मराठी अस्मिता के झंडाबरदार रहे हैं.
भाभी के भतीजे की शादी में बनी बात
बीते साल दिसंबर में महाराष्ट्र में एक हाई प्रोफाइल शादी हुई. ये शादी थी उद्धव ठाकरे की पत्नी रश्मि ठाकरे के भतीजे शौनक पाटनकर की. इसमें राज ठाकरे भी पहुंचे थे. शादी में राज और उद्धव का तो आमना-सामना नहीं हुआ, लेकिन राज की अपनी भाभी रश्मि ठाकरे से ठीक-ठाक बातचीत हुई. यानी शिकवा-शिकायतों की खाई थोड़ी कम हो रही थी. उसके बाद से ही दोनों भाइयों के फिर से साथ आने की बातें होने लगीं.
पिघल रही थी रिश्तों पर पड़ी बगावत की बर्फ
कुछ समय पहले महेश मांजरेकर ने एक पॉडकास्ट में राज ठाकरे से सवाल किया था कि क्या वे अब उद्धव के साथ आएंगे? इस पर राज ने कहा कि हमारे विवाद, मुद्दे छोटे हैं, महाराष्ट्र उससे कहीं ज्यादा बड़ा है. इसके बाद उद्धव ने सामना के जरिए जता दिया कि उनका मतभेद बीजेपी और एकनाथ शिंदे से है, किसी और से नहीं. यानी रिश्तों पर बगावत की बर्फ पिघल रही थी.
STORY | Fadnavis steers clear of buzz over possible Thackeray, Pawar family reunions
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— Press Trust of India (@PTI_News) June 7, 2025
तब बोले थे देवेंद्र- मैं क्यों बनूं अब्दुल्ला दीवाना
ठाकरे बंधुओं के एक होने की अटकलों पर इसी 7 जून को पत्रकारों ने सवाल किया तो सीएम देवेंद्र फडणवीस ने ये कह दिया कि भाइयों का आपसी झगड़ा है, वे खुद निपटाएं. मैं भला क्यों बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना बनूं... देवेंद्र ने तब तो इस पक रही खिचड़ी को तवज्जो नहीं दी, लेकिन अब राज से मुलाकात में ये लग रहा कि 'अब्दुल्ला' दीवाना हो ही गया...!