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Flying Squirrel: महाराष्ट्र के जंगलों में उड़ने वाली गिलहरियों की नई कॉलोनी मिली, वैज्ञानिकों की बड़ी खोज

Indian Giant Flying Squirrel: गोंदिया के नवेगांव नागजीरा टाइगर रिजर्व में 50 से अधिक भारतीय विशाल उड़ने वाली गिलहरियों की उपस्थिति एक सकारात्मक संकेत है. यह दर्शाता है कि यह क्षेत्र इस प्रजाति के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान कर रहा है.

Flying Squirrel: महाराष्ट्र के जंगलों में उड़ने वाली गिलहरियों की नई कॉलोनी मिली, वैज्ञानिकों की बड़ी खोज
Gunateet Ojha|Updated: Mar 30, 2025, 10:29 PM IST
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Navegaon Nagzira Tiger Reserve: महाराष्ट्र में गोंदिया के जंगलों में वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता हाथ लगी है. नवेगांव नागजीरा टाइगर रिजर्व (NNTR) में किए गए एक विशेष सर्वे में जीवविज्ञानियों को 50 से अधिक भारतीय विशाल उड़ने वाली गिलहरियों (Indian Giant Flying Squirrel) मिली हैं. जीवविज्ञानियों की टीम ने बताया कि गिलहरियों की इस दुर्लभ प्रजाति की संख्या को बढ़ाने और संरक्षण के उपायों को ध्यान में रखते हुए यह सर्वे किया गया.

संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम

NNTR के उप निदेशक पवन जेफ ने सर्वे के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि सर्वेक्षण फरवरी माह में चौथे चरण की निगरानी प्रक्रिया के दौरान किया गया था. उन्होंने कहा कि इस सर्वेक्षण से हमें इन दुर्लभ गिलहरियों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए प्रभावी रणनीतियां बनाने में मदद मिलेगी. उन्होंने यह भी बताया कि यह उड़ने वाली गिलहरी मुख्य रूप से चीन, भारत, लाओस, म्यांमार, श्रीलंका, ताइवान, थाईलैंड और वियतनाम में पाई जाती हैं.

एक अनोखा जीव

भारत की ये विशाल उड़ने वाली गिलहरी एक अनोखा जीव है. यह अपने पैरों के बीच फैली झिल्ली की मदद से एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक ग्लाइड कर सकती है. यह गिलहरियां ज्यादातर रात में ही देखी जाती हैं. इन्हें रात्रिचर भी कहा जाता है. ये खास गिलहरियां घने जंगलों में रहना पसंद करती हैं. इनका मुख्य भोजन फूल, फल, बीज और पत्तियां होते हैं.

क्यों कम हो रही संख्या

वैसे तो यह प्रजाति अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की 'सबसे कम चिंता' (Least Concern) वाली श्रेणी में आती है. लेकिन इसके बावजूद इसकी संख्या में कमी देखी जा रही है. इसके मुख्य कारण में से वनों की कटाई और शहरीकरण के कारण इनका प्राकृतिक आवास सिकुड़ता जा रहा है. कुछ इलाकों में इनका शिकार किया जाता है और इनकी तस्करी भी की जाती है. जंगलों में लगने वाली आग और जलवायु परिवर्तन का भी इन पर प्रभाव पड़ता है.

संरक्षण के लिए आगे की रणनीति

एक्सपर्ट्स का मानना है कि इन गिलहरियों के संरक्षण के लिए वनों का संरक्षण और गिलहरियों के प्राकृतिक आवासों को सुरक्षित रखना बेहद जरूरी है. स्थानीय समुदायों को जागरूक करना और उन्हें इनकी सुरक्षा में शामिल करना भी जरूरी है. इनके संरक्षण के लिए कानूनी सुरक्षा को मजबूत बनाना होगा ताकि अवैध शिकार और तस्करी पर रोक लगाई जा सके. अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग कर इनकी जनसंख्या की निगरानी करनी होगी.

(एजेंसी इनपुट के साथ)

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