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क्या खत्म होगी दरार? फिर साथ-साथ आएंगे भाई! क्या है उद्धव और राज ठाकरे का प्लान

Uddhav Thackeray: महाराष्ट्र की सियासत में अक्सर उतार- चढ़ाव देखा जाता है. एक बार फिर एक बड़ी खबर आई है. जिससे प्रदेश की राजनीति में हलचल मच सकती है. एक इंटरव्यू में बोलते हुए राज ठाकरे ने संकेत दिया है कि वो उद्धव ठाकरे के साथ आ सकते हैं. 

क्या खत्म होगी दरार? फिर साथ-साथ आएंगे भाई! क्या है उद्धव और राज ठाकरे का प्लान
Abhinaw Tripathi |Updated: Apr 19, 2025, 03:35 PM IST
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Raj Thackeray: महाराष्ट्र की राजनीति में हमेशा हलचल देखी जाती है. शिवसेना के दोनों गुट एक दूसरे के ऊपर हमेशा निशाना साधते रहते हैं. इसी बीच एक और बड़ी खबर सामने आ रही है. बता दें कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे और शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने शनिवार को महाराष्ट्र और मराठी लोगों के हितों के लिए अपने बीच मतभेदों को भुलाकर एकजुट होने की इच्छा जताई. 

असहमति मामूली हैं
अभिनेता महेश मांजरेकर के साथ एक इंटरव्यू में राज ठाकरे ने मराठी पहचान, आगामी मुंबई नगर निगम चुनाव, एकनाथ शिंदे की राजनीति और उद्धव ठाकरे के साथ संभावित गठबंधन सहित कई विषयों पर बात की. इस दौरान उन्होंने कहा कि बड़े मुद्दों की तुलना में हमारे बीच विवाद और असहमति मामूली हैं.

इच्छाशक्ति का है मामला
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र हमारे व्यक्तिगत मुद्दों से कहीं बड़ा है. मराठी पहचान के अस्तित्व की लड़ाई में ये मामले छोटे हैं. साथ आना या साथ मिलकर काम करना कोई मुश्किल बात नहीं है. यह केवल इच्छाशक्ति का मामला है और यह केवल मेरे बारे में नहीं है. मेरा मानना ​​है कि राजनीतिक दलों के सभी मराठी लोगों को एकजुट होकर एक मोर्चा बनाना चाहिए. 

राज ठाकरे ने साधा था निशाना 
बीते दिन जब महाराष्ट्र सरकार ने पांचवी तक हिंदी पढ़ाने का ऐलान किया तो उस दौरान राज ठाकरे ने सरकार की आलोचना की थी. उन्होंने कहा था कि हम हिंदू हैं हिंदी नहीं, इसके अलावा सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, 'मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि मनसे इस निर्णय को बर्दाश्त नहीं करेगी. हम केंद्र सरकार के हर चीज को ‘हिंदीकृत’ करने के मौजूदा प्रयासों को इस राज्य में सफल नहीं होने देंगे. यह देश की अन्य भाषाओं की तरह राजभाषा है. महाराष्ट्र में इसे शुरू से ही क्यों पढ़ाया जाना चाहिए? आपका जो भी त्रि-भाषा फॉर्मूला है, उसे सरकारी मामलों तक ही सीमित रखें, शिक्षा में न लाएं. 

साथ ही साथ कहा कि आज वे हम पर भाषाएं थोप रहे हैं और कल वे इसी तरह के अन्य फतवे जारी करेंगे. विपक्षी कांग्रेस ने राज्य सरकार की आलोचना करते हुए कहा उसका यह निर्णय हिंदी थोपने जैसा है. वर्तमान में संबंधित विद्यालयों में पहली से चौथी कक्षा तक केवल मराठी और अंग्रेजी ही अनिवार्य भाषा के रूप में पढ़ाई जा रही है. अब जारी सरकारी आदेश के अनुसार, अगले शैक्षणिक वर्ष से कक्षा एक से पांचवीं तक तीसरी भाषा के रूप में हिंदी अनिवार्य होगी. 

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