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'मैरिटल रेप कानूनी अपराध नहीं...', अदालत ने पति के खिलाफ रद्द किया केस; क्या है पूरा मामला

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने  साफ कर दिया है कि भारतीय कानून मैरिटल रेप यानी वैवाहिक बालात्कार की कॉन्सेप्ट को मान्यता नहीं देता. अदालत ने धारा 377 के तहत पति पर अपनी पत्नी के साथ 'अप्राकृतिक' यौन संबंध बनाने के लिए मुकदमा चलाने के आदेश को रद्द कर दिया. 

'मैरिटल रेप कानूनी अपराध नहीं...', अदालत ने पति के खिलाफ रद्द किया केस; क्या है पूरा मामला
Md Amjad Shoab|Updated: May 21, 2025, 11:24 PM IST
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Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने  साफ कर दिया है कि भारतीय कानून मैरिटल रेप यानी वैवाहिक बालात्कार की कॉन्सेप्ट को मान्यता नहीं देता. अदालत ने धारा 377 के तहत पति पर अपनी पत्नी के साथ 'अप्राकृतिक' यौन संबंध बनाने के लिए मुकदमा चलाने के आदेश को रद्द कर दिया. अदालत ने कहा कि कानून कुछ यौन कृत्यों को दंडित करती है, वैवाहिक संबंधों में लागू नहीं होगी, विशेषकर तब जब सहमति के अभाव का कोई आरोप न हो.

अदालत ने 13 मई के अपने आदेश में कहा, 'वैवाहिक संबंधों के संदर्भ में पति और पत्नी के बीच लिंग-योनि के अलावा अन्य संबंध को अपराध घोषित करने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को लागू नहीं किया जा सकता. इस तरह की व्याख्या नवतेज सिंह जौहर (मामले) में सुप्रीम कोर्ट के तर्क और टिप्पणियों के अनुरूप होगी.' इसके अलावा, यह भी पाया गया कि पत्नी ने स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया कि यह कृत्य उसकी इच्छा के विरुद्ध किया गया था या उसकी सहमति के बिना किया गया. पत्नी ने आरोप लगाया कि उसका पति 'नपुंसक' है तथा दावा किया कि उनका विवाह उसके और उसके पिता द्वारा अवैध संबंध स्थापित करने तथा उसके परिवार से धन ऐंठने की साजिश का हिस्सा था.

'Inherent Contradiction'
जवाब में पति ने कहा कि विवाह कानूनी रूप से वैध है और इसमें सहमति से यौन क्रिया के लिए सहमति है, जिसके लिए धारा 377 के तहत आरोप नहीं लगाया जा सकता. पत्नी के बयानों में 'Inherent Contradiction' को देखते हुए न्यायाधीश ने कहा कि उसने न केवल उस व्यक्ति पर यौन अक्षमता का आरोप लगाया, बल्कि यह भी आरोप लगाया कि उसने मुख मैथुन भी किया था.

अदालत ने कहा
अदालत ने कहा, टनवतेज सिंह जौहर (मामले) के बाद आईपीसी की धारा 377 के तहत किसी भी दो वयस्कों के बीच अपराध की स्थापना के लिए आवश्यक तत्व - सहमति की कमी - स्पष्ट रूप से गायब है. इस प्रकार, न केवल प्रथम दृष्टया मामले की कमी है, बल्कि मजबूत संदेह की सीमा भी पूरी नहीं हुई है.' इसमें कहा गया है, 'आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता है. इसलिए आरोप तय करने का निर्देश देने वाला आदेश कानून की नजर में टिकने योग्य नहीं है और इसे रद्द किया जाना चाहिए.'

'यह मानने का कोई आधार नहीं है'
अदालत ने आगे कहा, 'यह मानने का कोई आधार नहीं है कि आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 के मद्देनजर पति को आईपीसी की धारा 377 के तहत अभियोजन से संरक्षण नहीं मिलेगा, क्योंकि कानून (आईपीसी की संशोधित धारा 375) अब वैवाहिक संबंध के भीतर यौन संबंधों के साथ-साथ गुदा या मुख मैथुन सहित यौन कृत्यों के लिए निहित सहमति को मानता है.'

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