DNA Analysis: डॉनल्ड ट्रंप एक तरफ भारत समेत दुनिया भर के देशों से लड़ रहे हैं. और दूसरी ओर वो खुद को शांति का प्रतीक बताकर नोबल पुरस्कार की मांग भी कर रहे हैं. खैर, अब हम शांति के प्रतीक कबूतर को लेकर छिड़ी जंग का विश्लेषण करने वाले हैं. आप में से कई लोगों ने सड़क किनारे या कहीं पार्क में कबूतरों को दाना दिया होगा.
लोग कबूतरों को दाना देना पुन्य का काम मानते हैं. लेकिन गलती से भी अगर आपने मुंबई में कबूतर की ओर दाना फेंक दिया तो सीधे आपके खिलाफ FIR हो जाएगी. क्योंकि मुंबई में जब से कबूतरों को दाना डालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. लेकिन इस फैसले के बाद से ही बड़ी बहस छिड़ गई है. एक तरफ कोर्ट के ऑर्डर के बाद कबूतरों को दाना देने की वजह से एक शख्स के खिलाफ FIR दर्ज हो गई है. कई लोगों पर फाइन लगा दिया गया है तो वहीं इस फैसले के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर गए हैं. इस प्रतिबंध और इसके बाद के प्रदर्शन के विश्लेषण से पहले मुंबई के सबसे बड़े कबूतरखाने से आई तस्वीरें देखना जरूरी है.
#DNAWithRahulSinha | मायानगरी में कबूतर के दाने पर कोहराम.. कबूतरखानों में दाना लेकर जाना नहीं!#DNA #Mumbai #Pigeon #Food @RahulSinhaTV pic.twitter.com/nv22dC39V7
— Zee News (@ZeeNews) August 4, 2025
दादर कबूतरखाने को BMC ने तिरपाल से ढक दिया है.. जिसके बाद वहां आने वाले कबूतर अब या तो पास की बिल्डिंग्स पर जाकर बैठे हैं. या फिर सड़कों पर मंडराते हुए दाने का इंतजार कर रहे हैं. कुछ दिनों पहले तक जहां इन कबूतरों के लिए दाने की कोई कमी नहीं थी वहीं आज इनके लिए यहां अकाल सा पड़ गया है. एक भी आदमी इन्हें दाना डालने नहीं आ रहा है.
दावा किया जा रहा है कि कबूतरों को दाना देने पर जो पाबंदी लगी है. उसकी वजह से कई कबूतरों ने दम तोड़ दिया है. जिसके बाद मुंबई में जैन और गुजराती समाज ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है. जैन समाज के लोग सड़कों पर उतरकर इस आदेश को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. यूं तो कई NGOs इस आदेश के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं लेकिन जैन समाज इस विरोध में सबसे आगे इसीलिए है-
क्योंकि जैन समाज में कबूतरों को दाना देना उनकी जीव दया प्रथा का हिस्सा है. कई जैन परिवार और मंदिर नियमित रूप से कबूतरों को दाना खिलाने का आयोजन करते हैं, अक्सर मंदिरों या ट्रस्ट द्वारा संचालित कबूतरखानों के पास ये आयोजन किया जाता है. जिस दादर कबूतरखाने को हाल में ढका गया है कि वो भी एक जैन मंदिर ने ही बनवाया था.
आप भी ये सोच रहे होंगे की आखिर कबूतरों को लेकर आर-पार की ये जंग क्यों छिड़ी है. आखिर कबूतरों को दाना देने पर ये बैन लगाया क्यों गया है. 3 जुलाई 2025 को महाराष्ट्र सरकार में मंत्री उदय सामंत ने मुंबई में 51 कबूतरखानों को बंद करने का ऐलान किया.. इसके पीछे कबूतर से होने वाली बीमारियों का हवाला दिया गया. इसके बाद 31 जुलाई को इस मामले में सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने ये आदेश किया की कबूतरों को दाना देने वालों के खिलाफ BMC एफआईआर दर्ज करवा सकती है.
कोर्ट के इसी आदेश के बाद शनिवार को मुंबई के सारे कबूतरखानों को बंद कर दिया गया. साथ ही BMC ने यहां कड़ी निगरानी करनी भी शुरू कर दी है. जिसके बाद से कबूतरों को लेकर ये बड़ी बहस शुरू हो गई है. लेकिन सवाल उठता है कि आखिर मुंबई में कबूतरबाजी की ये प्रथा शुरू हुई कैसे. तो इसे समझने के लिए इतिहास के पन्ने पलटने पडेंगे.
एक अंग्रेजी लेखक एडवर्ड हैमिलटन ने सन् 1909 में अपनी किताब The Common Birds of Bombay में लिखा था. कबूतरों को बम्बई की ओर दो चीजें आकर्षित करती हैं- भरपूर आवास और हिंदू अनाज व्यापारियों की उदारता. बम्बई में कबूतरों को दाना देने की प्रथा इतनी पुरानी है कि सन् 1944 में बॉम्बे म्युनिसिपालिटी ने एक जैन मंदिर को दादर में कबूतरखाना बनाने की अनुमति दी थी. यही वजह है कि आज मुंबई में 50 से ज्यादा कबूतरखाने थे. लेकिन कबूतरों को लेकर बहस तब शुरू हुई जब 2013 में एक BMC अधिकारी कबूतर से टकराने के बाद बाइक से गिर गया और उसकी मौत हो गई. इसके बाद कबूतरों से इंसानों को होने वाली हानी को लेकर भी कई रिसर्च ने कबूतरखानों का विरोध शुरू कर दिया. और इसी का असर है कि आज मुंबई में कबूतरों को दाना डालना कानूनी अपराध हो गया है. और इसकी वजह से एक नई समस्या खड़ी हो गई है.
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