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देश से बड़ा कुछ नहीं... ईसाई अफसर की बर्खास्तगी को हाई कोर्ट ने सही ठहराया

High Court News: हाई कोर्ट में  सेना की ओर से दलील दी गई कि रेजीमेंट में शामिल होने के बाद कमलेसन ज़रूरी रेजिमेंटल परेड में शामिल नहीं हुए. उनके सीनियर अधिकारियों ने उन्हें कई बार समझाया, पर वो नहीं माने.

देश से बड़ा कुछ नहीं... ईसाई अफसर की बर्खास्तगी को हाई कोर्ट ने सही ठहराया
Arvind Singh|Updated: May 31, 2025, 10:27 PM IST
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Delhi HC: दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय सेना के कमांडिंग अफसर की बर्खास्तगी को बरकरार रखा है जिसने ख़ुद के ईसाई धर्म से जुड़े होने का हवाला देते हुए रेजीमेंट के मंदिर और गुरुद्वारे में धार्मिक अनुष्ठान में शामिल होने से इंकार कर दिया था. सैमुअल कमलेसन नाम के अफसर ने पेंशन और ग्रेच्युटी के बिना सेना से बर्खास्तगी के आदेश को चुनौती देते हुए अपनी सेवा फिर से बहाल करने की मांग की थी लेकिन हाई कोर्ट ने उनकी अर्जी को खारिज कर दिया.

'सैनिकों की वर्दी एकजुट रखती है, धर्म बांटते नहीं'

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि लेफ्टिनेंट को सीनियर अधिकारियों ने कई बार समझाया पर वो अपनी धार्मिक मान्यताओं के चलते धार्मिक परेड में शामिल न होने के फैसले को लेकर अडिग थे. कोर्ट ने अपने आदेश में दर्ज किया कि वो उन प्रहरियों का अभिवादन करता है जो मुश्किल परिस्थितियों  में देश की सीमाओ की रक्षा करते हैं. हमारे सैन्यबलों का एक ही चरित्र है कि वो देश को सबसे ऊपर रखते है.उनके लिए देश ख़ुद से, उनके धर्म से बढ़कर है. हमारी सेना में हर धर्म, जाति,इलाके ,आस्था को मानने वाले लोग है पर सेना की वर्दी  उन्हें जोड़ती है. वो अपने धर्म, जाति या इलाके के हिसाब से बंटे हुए नहीं है.'

क्या था पूरा मामला
सैमुअल कमलेसन को मार्च 2017 में भारतीय सेवा में लेफ्टिनेंट के पद 3 कैवेलरी  रेजीमेंट में कमीशन दिया गया था. इसमें सिख जाट और राजपूत सैन्य कर्मियों के तीन स्क्वाड्रन शामिल थे. उन्हें जिस स्क्वाड्रन का लीडर बनाया गया उसमें सिख जवान शामिल थे. उनका कहना था कि उनकी रेजीमेंट में धार्मिक ज़रूरतों के तौर पर मंदिर और गुरुद्वारा तो है लेकि सर्वधर्म स्थल नहीं है. जहां सभी धार्मिक मान्यताओं के लोग जा सके. रेजिमेंट के परिसर में कोई चर्च भी नहीं है.

उनका कहना था कि वो हर सप्ताह  मंदिर, गुरुद्वारा जाते थे ताकि साप्ताहिक रेजीमेंटल परेड और उत्सव में शामिल हो सके. उन्होंने सिर्फ मन्दिर के गर्भगृह या अंदरूनी हिस्से में जाने से छूट मांगी थी जहां पूजा, हवन और आरती होती है. लेकिन सेना की ओर से दलील दी गई कि रेजीमेंट में शामिल होने के बाद कमलेसन ज़रूरी रेजिमेंटल परेड में शामिल नहीं हुए. उनके सीनियर अधिकारियों ने उन्हें कई बार समझाया, पर वो नहीं माने.

सेना का पक्ष
सेना का कहना था कि ज़रूरी रेजिमेंटल परेड के दौरान धार्मिक स्थलों के अंदर एंट्री से अधिकारी का इंकार करना यूनिट की एकजुटता और सैन्यबलों को कमज़ोर करता है.उन्हें कई बार समझाया गया, पर वो नहीं माने.

अधिकारी ने सेना के अनुशासन से ऊपर धर्म को रखा-कोर्ट
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस केस  में सवाल धार्मिक स्वतंत्रता का नहीं, बल्कि किसी वरिष्ठ अधिकारी  के वैध आदेश का पालन करने का था. आर्मी एक्ट की धारा 41 के तहत वरिष्ठ अधिकारी के आदेश की अवहेलना करना अपराध है. इस बात में कोई सन्देह नहीं है कि याचिककर्ता  को  उनके सीनियर अधिकारी धार्मिक स्थल के अंदरूनी हिस्से में आकर पूजा करने के लिए समझाते रहे ताकि सैनिकों का मनोबल बढ़ा रहे.

कोर्ट ने कहा कि सामान्य नागरिक के किए ये आदेश सख़्त लग सकता है पर सेना में अनुशासन के जो मानक है, वो देश के आम नागरिकों से बहुत अलग है. कोर्ट आर्मी इस दलील से सहमत है कि धार्मिक स्थल  में प्रवेश करने से इनकार करना सैन्य मूल्यों को कमजोर करेगा.

कोर्ट ने कहा कि इस केस में साफ है कि अधिकारी ने अपने सीनियर  के वैध आदेश से ऊपर अपने धर्म को रखा और यह साफ़ तौर पर अनुशासनहीनता को दर्शाता है. हांलाकि कोर्ट ने कहा कि अधिकारी के कोर्ट मार्शल न करने का सेना का फैसला ठीक है, क्योंकि अगर ऐसा होता तो यह हमारे सशस्त्र बलों के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के लिए ग़ैर ज़रूरी विवाद पैदा करता.

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