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फिर से नापाक हरकत.. ड्रोन से नक्शा..ड्रोन से हमला? मगर चूर-चूर कर देगी इंडियन फोर्स

Jammu Kashmir: भारतीय सेना और बीएसएफ ने अब नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर ड्रोन रोधी तकनीकें तैनात की हैं. रडार..जैमर और लेजर-आधारित तकनीकों से लैस ये सिस्टम 70% ड्रोन हमलों को रोकने में सक्षम हैं.

File Photo
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Syed Khalid Hussain|Updated: Jul 17, 2025, 01:59 PM IST
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Indian Border Security: जम्मू-कश्मीर में आतंकियों का नेटवर्क अब ओवरग्राउंड वर्कर्स OGW से हटकर ड्रोन पर निर्भर होता जा रहा है. पाकिस्तान का नापाक इरादा फिर सामने आया है. उसकी खुफिया एजेंसी ISI ने आतंकी समूहों लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के साथ मिलकर एक नई रणनीति बनाई है. जिसमें ड्रोन को हथियार, गोला-बारूद, और नशीले पदार्थ गिराने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे OGW की भूमिका सीमित हो गई है. लेकिन भारतीय सुरक्षाबल इनको तत्काल नेस्तनाबूद कर रहे हैं.

OGW की जगह ड्रोन ने कैसे ली?
असल में 2020 से अब तक 1000 से ज्यादा OGW की गिरफ्तारी और सुरक्षाबलों की सख्त कार्रवाई ने आतंक का मानव नेटवर्क तोड़ दिया. ऐसे में ISI ने बिना मानव संपर्क के सीमाओं के आर-पार सामग्री भेजने के लिए ड्रोन का सहारा लिया. ये ड्रोन अब हथियारों से लेकर नक्शों और वीडियो रिकॉर्डिंग तक का काम कर रहे हैं. जिससे OGW की भूमिका सीमित होकर पीओके में समन्वय तक सिमट गई है.

कहां से आ रहे हैं ये ड्रोन और क्या लेकर आते हैं?
राजौरी, पुंछ, किश्तवाड़ और कुपवाड़ा जैसे क्षेत्रों में ड्रोन की गतिविधियाँ अधिक देखी गई हैं. हेक्साकॉप्टर और क्वाडकॉप्टर ड्रोन 5 से 20 किलो तक के पेलोड के साथ हथियार, ग्रेनेड, RDX और हेरोइन गिराते हैं. 2023 से अब तक सुरक्षा बलों ने ऐसे 200 से अधिक प्रयासों को नाकाम किया है. साथ ही, ये ड्रोन छोटे आतंकी समूहों को भी घुसपैठ के लिए मार्ग दिखाते हैं.

ड्रोन तकनीक में चीन और तुर्की की छाया
ISI के समर्थन से पाकिस्तान में 3D-प्रिंटेड पुर्जों से ड्रोन बनाए जा रहे हैं. इनमें डीजेआई माविक, फैंटम 4, चीनी विंग लूंग-2 और संभवतः तुर्की के बायरकटर TB2 जैसे एडवांस ड्रोन शामिल हैं. इनके पास हाई-रेज़ॉल्यूशन कैमरे, नाइट विज़न और जीपीएस तकनीक है. ये ड्रोन अब भारतीय सीमाओं की जासूसी कर रहे हैं और आतंकियों को रणनीतिक मदद पहुँचा रहे हैं.

सुरक्षाबलों की रणनीति और जवाबी कार्रवाई
भारतीय सेना और बीएसएफ ने अब नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर ड्रोन रोधी तकनीकें तैनात की हैं. रडार, जैमर और लेजर-आधारित तकनीकों से लैस ये सिस्टम 70% ड्रोन हमलों को रोकने में सक्षम हैं. हालांकि 100 मीटर से नीचे उड़ने वाले ड्रोन को पहचानना अभी भी चुनौती है खासकर रात के समय.

आतंकी ठिकानों तक सामान पहुंचा रहे हैं ड्रोन
पीओके के कोटली, बाग और मीरपुर में 20 से ज्यादा ड्रोन लॉन्च साइट हैं, जो भारतीय सीमा के बेहद करीब हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक 2025 में ड्रोन से घुसपैठ के मामलों में 20% की बढ़ोतरी हुई है. किश्तवाड़ और राजौरी में हाल की मुठभेड़ों में यह साफ दिखा कि ड्रोन के जरिए आतंकियों को ऊंचे इलाकों तक सप्लाई पहुँचाई गई, जिससे वे लंबे समय तक छिपे रहे.

सुरक्षा बल हर चुनौती से निपटने को तैयार
हालांकि ड्रोन की वजह से चुनौतियां बढ़ी हैं लेकिन भारतीय सुरक्षाबलों ने यह साफ कर दिया है कि वे हर हाल में आतंक के नए नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. सीमाओं पर बढ़ी निगरानी, ड्रोन रोधी सिस्टम, और उच्च स्तर की खुफिया जानकारी के साथ सेना और सुरक्षा एजेंसियां किसी भी घुसपैठ या हमले को नाकाम करने में सक्षम हैं. आतंक की यह तकनीकी चाल ज्यादा दिन नहीं चलेगी.

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