trendingNow12447783
Hindi News >>देश
Advertisement

पेंशन कोई एहसान नहीं, वो तो सरकार की ड्यूटी है... हाई कोर्ट ने कहा- 12 साल से चक्कर लगा रही थी विधवा

High Court Order on Pension: जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी ने कहा, '12 साल तक एक विधवा को गैर-वाजिब कारणों से फैमिली पेंशन नहीं दी गई. उसे दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं सिर्फ इसलिए कि संगठन का विभाजन हो गया था और याचिकाकर्ता ने संबंधित संगठन के सामने आवेदन दायर नहीं किया था.'

पेंशन कोई एहसान नहीं, वो तो सरकार की ड्यूटी है... हाई कोर्ट ने कहा- 12 साल से चक्कर लगा रही थी विधवा
Rachit Kumar|Updated: Sep 26, 2024, 04:53 PM IST
Share

Pension Laws in India: पेंशन को लेकर पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की है. 12 साल से पेंशन के लिए चक्कर काट रही एक विधवा के मामले में कोर्ट ने दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम (DHBVN) और हरियाणा विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड (HVPNL) को फटकार लगाते हुए 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है.

कोर्ट ने कहा कि पेंशन और पेंशन के लाभ, जिसमें पारिवारिक पेंशन भी शामिल है कोई राज्य की तरफ से की गई चैरिटी नहीं है. यह राज्य की ड्यूटी है कि वह पेंशन दे. 

कोर्ट ने लगाई निगम को फटकार

जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी ने कहा, '12 साल तक एक विधवा को गैर-वाजिब कारणों से फैमिली पेंशन नहीं दी गई. उसे दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं सिर्फ इसलिए कि संगठन का विभाजन हो गया था और याचिकाकर्ता ने संबंधित संगठन के सामने आवेदन दायर नहीं किया था.'

कोर्ट ने कहा कि राज्य की एजेंसियों ने उस विधवा को फैमिली पेंशन ना देकर अपनी ड्यूटी का ठीक तरीके पालन नहीं किया जबकि वह कानूनन और बिना किसी विवाद के पेंशन पाने की हकदार थी. 
 
संविधान के अनुच्छेद 226, 227 के तहत याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये टिप्पणी की, जिसमें हरियाणा राज्य के अधिकारियों के 20.05.2008 से 31.07.2020 तक पारिवारिक पेंशन के बकाया पर ब्याज न देने की कार्रवाई को रद्द करने और प्रतिवादियों को इसे देने का आदेश देने की मांग की गई थी.

क्या है मामला?

याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वकील ने कहा कि उनकी क्लाइंट सुजाता मेहता एक विधवा हैं और उनके पति पूर्ववर्ती हरियाणा राज्य विद्युत बोर्ड (एचएसईबी) में रीडर-कम-सर्किल सुप्रीटेंडेंट के पद पर काम करते थे और वे इस बोर्ड से 30.06.1999 को रिटायर हुए और उनके पति का 2008 में निधन हो गया.

वकील ने कहा कि साल 2010 में मेहता ने DHBV के आगे फैमिली पेंशन के लिए एक आवेदन दायर किया लेकिन उनको कहा गया कि चूंकि उनके पति साल 1999 में HSEB के 4 संगठनों में विभाजन से पहले ही रिटायर हो गए थे इसलिए ऐसे मामलों की जांच HVPNL करेगा इसलिए एचवीपीएनएल के साथ बातचीत की जाए.

इसके बाद सुजाता मेहता ने सरकारी दफ्तरों की ठोकरें खाईं. निगम के अलग-अलग अधिकारियों के साथ बैठकें कीं लेकिन उनको पेंशन नहीं दी गई. 

कोर्ट ने कहा-कानूनन मिलनी चाहिए थी पेंशन

दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि अगर हरियाणा स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड का कानून के तहत विभाजन हुआ था तो इसके निर्देश भी जारी किए गए हैं कि किसके फैमिली पेंशन का निपटारा कौन सा संगठन करेगा तो यह उन बोर्डों का काम था, जिनको शामिल किया गया है.

जस्टिस पुरी ने कहा कि जो तरीके निगम ने अपनाए और एक विधवा को सरकारी दफ्तरों के चक्कर कटवाए, वो न केवल असंवेदनशील है बल्कि अत्यधिक निंदनीय भी हैं.

कोर्ट ने दिया ये फैसला

कोर्ट ने आदेश में याचिकाकर्ता को 6% प्रति वर्ष (साधारण) की दर से ब्याज देने का निर्देश दिया, जिसकी कैलकुलेशन याचिकाकर्ता के पति की मौत की तारीख से लेकर उसके वास्तविक भुगतान की तारीख तक तीन महीने की अवधि के भीतर की जानी है. याचिका का निपटारा करते हुए कोर्ट ने यह भी कहा कि विधवा 1 लाख रुपये के मुआवजे की भी हकदार है.

Read More
{}{}