Maintenance of senior citizens: .पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab Haryana High Court) ने एक व्यक्ति की 77 वर्षीय मां को ₹5,000 गुजारा भत्ता देने को चुनौती देने वाली याचिका पर हैरानी जताते हुए उसे पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारी समझाने के साथ अच्छा सबक सिखाया. अपनी टिप्पणी में जज साहब ने पैरेंट्स की सुरक्षा और उनके कानूनी अधिकारों का जिक्र करते हुए इसे अदालत की अंतरात्मा को झकझोरकर रख देने वाला मामला बताया. इस तरह हाईकोर्ट ने बता दिया कि कानून, सिनियर सिटिजंस के अधिकारों की रक्षा करता है. उम्मीद है कि इस खबर को पढ़ने के बाद कोई भी अपने, मां-बाप की सेवा में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगा.
5000 रुपये के लिए हाईकोर्ट चले आए... इमोशनल कर देगा जज साहब का फैसला
जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी ने इसे कलियुग का सटीक उदाहरण मानते हुए न सिर्फ कलजुगी बेटे की याचिका खारिज की बल्कि उसके ऊपर ₹50,000 का जुर्माना लगाया. जस्टिस पुरी ने उसे 3 महीने के भीतर ये रकम फैमिली कोर्ट, संगरूर के सामने मां के नाम पर डिपॉजिट करने का आदेश दिया है.
आदेश पढ़ते हुए जस्टिस पुरी ने कठोर टिप्पणी करते हुए कहा, 'ये याचिका कलयुग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है और इस मामले ने कोर्ट अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है. फैमिली कोर्ट के द्वारा पारित आदेश में कुछ भी अवैध नहीं है. 5,000/-रुपये की राशि भी कोई ज्यादा नहीं थी. आप पिता की प्रॉपर्टी ले चुके हैं और फिर भी 5000 रुपये के लिए हाईकोर्ट चले आए...'
क्या है पूरा मामला
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक 77 साल की महिला के पति का स्वर्गवास करीब 32 साल पहले 1992 में हुआ था. उनके परिवार में एक बेटा और एक विवाहित बेटी है. उसके दो बेटे थे, हालांकि दूसरे की भी बाद में मृत्यु हो गई थी. पति की मृत्यु के बाद, महिला की 50 बीघे ज़मीन उसके बेटे और उसके मृत बेटे के बेटों को ट्रांसफर हो गई थी.
1993 में, उन्हें उनके अतीत, वर्तमान और भविष्य के रखरखाव के लिए ₹1 लाख की राशि दी गई थी. इसके बाद वो अपनी बेटी के साथ रहने लगीं. मां को ₹5,000 गुजारा भत्ता देने के फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए, बड़े बेटे ने तर्क दिया कि चूंकि मां उसके साथ नहीं रह रही थीं, ऐसे में पारिवारिक अदालत मेंटिनेंस का आदेश पारित नहीं कर सकती थी.
कोर्ट रूम LIVE
हालांकि, मां का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने तर्क दिया कि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है और वह अपनी बेटी की दया पर जीने के लिए मजबूर है, उसके पास उसके भरण-पोषण के लिए कोई अन्य विकल्प नहीं है. कोर्ट ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण मामला बताया और कहा कि एक बार जब यह पता चला कि बुजुर्ग महिला के पास आय का कोई स्रोत नहीं है, तो उसके बेटे के लिए याचिका दायर करने का कोई आधार नहीं है.
याचिका खारिज
जस्टिस पुरी ने कहा, 'बेटा, पिता की संपत्ति का उत्तराधिकारी है, वो मां को 5,000/- रुपये महीना गुजारा भत्ता इसलिए नहीं देना चाहता, क्योंकि वो शादीशुदा बेटी के घर रहती हैं. ये तर्क समझ से परे हैं, इसका कोई आधार नहीं है, इसलिए कोर्ट याचिका खारिज करती है, डिसमिस.
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