Raj Thackeray Uddhav Thackeray Reunion: महाराष्ट्र के राजनीति घराने के दो भाई उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) और राज ठाकरे (Raj Thackeray) एक साथ आ गए है. ठाकरे ब्रदर्स ने शिवसेना (यूबीटी) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) की ओर से संयुक्त रूप से आयोजित 'विजय रैली' में मंच साझा किया. इसे लेकर राज्य में सियासत तेज हो गई है और दोनों के बीच गठबंधन की चर्चा होने लगी है. इसके साथ ही सवाल भी उठने लगा है कि अगर गठबंधन होता है तो नेता कौन होगा और गठबंधन की मान किसके हाथ में होगी? उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच भले ही गठबंधन को लेकर चर्चा है, लेकिन ये इतना आसान नहीं हैं और इसमें कई चुनौतियां भी हैं.
अब तक धुर विरोधी रहे हैं उद्धव और राज ठाकरे
उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) और राज ठाकरे (Raj Thackeray) भले ही चचेरे भाई हैं, लेकिन पिछले 20 सालों से एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे हैं. दोनों कभी शिवसेना के प्रमुख नेता थे, लेकिन राजनीतिक महत्कांक्षाओं ने दोनों को कट्टर प्रतिद्वंद्वी बना दिया. हालांकि, अब अगर वे राजनीतिक रूप से फिर से एक हो जाते हैं तो यह महाराष्ट्र की राजनीति में एक और उथल-पुथल मचा सकता है, क्योंकि राज्य में पहले से ही 2022 शिवसेना और 2023 राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) दोनों में विभाजन के कारण उथल-पुथल हो चुका है.
हिंदी विरोध लाया करीब, बीएमसी चुनाव कराएगा गठबंधन?
शिवसेना से दरकिनार किए जाने के बाद साल 2005-06 में राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) की शुरुआत की थी. अब मराठी अस्मिता और हिंदी विरोध को लेकर राज एक बार फिर उद्धव ठाकरे के करीब आ गए हैं, जो निश्चित रूप से एक राजनीतिक सुलह है. अब इस साल के अंत तक बीएमसी चुनाव होने की उम्मीद है, ऐसे में ठाकरे ब्रदर्स का एकजुट होना मराठी गौरव के मुद्दे को उजागर कर सकता है और दोनों के बीच गठबंधन हो सकती है. ऐसे में बीएमसी चुनाव ठाकरे परिवार के राजनीतिक अस्तित्व की कुंजी साबित हो सकते हैं. भाजपा मुंबई नगर निगम जीतने के लिए दृढ़ संकल्प है, जो दशकों से शिवसेना के लिए बड़ी ताकत का स्रोत रही है. दूसरी तरफ शिवसेना प्रमुख और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे मुंबई में शिवसेना (यूबीटी) को नष्ट करने के लिए काम कर रहे हैं. उन्होंने अब तक ठाकरे गुट के 50 से अधिक पूर्व पार्षदों को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है.
ठाकरे ब्रदर्स का गठबंधन बदल सकता है पूरा खेल
शिवसेना (UBT) और एमएनएस गठबंधन खेल को बदल सकता है. दोनों चचेरे भाइयों के साथ मिलकर चुनाव प्रचार करने की मात्र दृश्यात्मक और भावनात्मक अपील ही मराठी मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित कर सकती है. यह न केवल मुंबई में, बल्कि बृहन्मुंबई महानगरपालिका में, साथ ही नासिक और पुणे जैसे गढ़ों में भी नगर निगम चुनावों को प्रभावित कर सकती है.
ठाकरे ब्रदर्स के बीच गठबंधन में क्या हैं चुनौतियां?
हालांकि, शिवसेना (UBT) और एमएनएस के कई नेता मानते हैं कि इस पुनर्मिलन को गठबंधन में बदलने के बारे में सोचना जितना आसान है, करना उतना ही मुश्किल है. दोनों भाइयों के साथ आने के लिए कई बाधाओं को पार करना होगा. इसके साथ ही सवाल यह है कि यह एकजुटता अगर होती है तो बिना टूटे कितने समय तक टिक सकती है. इसके साथ ही सबसे बड़ा मुद्दा दोनों लोगों के बीच विश्वास की कमी है. इससे पहले एमएनएस ने दो बार साल 2014 और फिर साल 2017 में उद्धव ठाकरे की पार्टी के साथ गठबंधन करने का प्रयास किया था. दोनों ही मौकों पर शिवसेना ने पहले तो इच्छा दिखाई, लेकिन बाद में जवाब देना बंद कर दिया और एमएनएस को अकेले ही आगे बढ़ना पड़ा. इसके साथ ही दोनों पार्टियों को एक-दूसरे की शर्तों के लिए मनाना भी आसान नहीं होगा.
इसके अलावा उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) और राज ठाकरे (Raj Thackeray) के बीच गठबंधन में महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (MVA) भी एक बड़ा मुद्दा है. क्योंकि, शिवसेना (UBT) अभी वर्तमान में एमवीए गठबंधन का हिस्सा है. अब सवाल उठता है कि राज के साथ गठबंधन के बाद क्या उद्धव एमवीए छोड़ देंगे या राज ठाकरे इसमें शामिल होंगे? इसकी संभावना बेहद ही कम है कि दोनों चचेरे भाई एक साथ एमवीए का हिस्सा होंगे. लेकिन, अगर दोनों भाई एमवीए से अलग गठबंधन करते हैं तो त्रिकोणीय चुनाव होंगे. ऐसी स्थिति में दोनों चचेरे भाई क्या केवल मराठी वोट के आधार पर मुंबई निकाय चुनाव जीत पाएंगे? यह बड़ा सवाल है. वोटों के ज्यादा बंट जाने से भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति गठबंधन को भी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है.
उद्धव या राज? किसके हाथ होगी गठबंधन की कमान
उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) और राज ठाकरे (Raj Thackeray) के बीच गठबंधन को लेकर सबसे बड़ा सवाल है कि गठबंधन का नेता कौन होगा? गठबंधन की कमान किसके साथ में होगी. क्या राज ठाकरे उद्धव के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे. और इसके विपरीत क्या उद्धव राज के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे? लेकिन, अगर दोनों भाई एक-दूसरे को कमान देने को राजी नहीं हुए तो गठबंधन कैसे होगा?
कट्टर विरोधी भाई कर पाएंगे एक-दूसरे पर भरोसा?
2017 के निकाय चुनावों के दौरान उद्धव ठाकरे ने राज से हाथ मिलाने से मना कर दिया था और तब उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर निकाय चुनावों को एमएनएस को खत्म करने के अवसर के रूप में देखा था. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ समय पहले एमएनएस के एक पूर्व विधायक ने कहा, '2017 के निकाय चुनावों से पहले राज ठाकरे ने उद्धव ठाकरे से हाथ मिलाने की पेशकश की थी. लेकिन, तब उद्धव राज्य में भाजपा के साथ सत्ता में थे और उन्होंने निकाय चुनावों को राज ठाकरे की पार्टी को खत्म करने के अवसर के रूप में देखा. उन्होंने अकेले ही चुनाव लड़ने का फैसला किया. शिवसेना को केवल 84 सीटें मिलीं, जो बहुमत से 20 कम थीं. जबकि, भाजपा ने 82 सीटें जीतीं. उद्धव ने भाजपा की मदद से सत्ता हासिल की और बाद में मनसे के सात विजेताओं में से छह को भी अपने पाले में कर लिया. तब से राज ने उद्धव पर और भी कम भरोसा किया है.'
कई बार व्यक्तिगत भी हो जाती है कड़वाहट
दोनों चचेरे भाइयों के बीच कड़वाहट कई बार व्यक्तिगत भी हो जाती है. साल 2017 के निकाय चुनावों से पहले राज ठाकरे ने एक सार्वजनिक रैली में आरोप लगाया था कि शिवसेना के संस्थापक और प्रमुख बाल ठाकरे अपने अंतिम दिनों में दुखी थे. उन्होंने तब कहा था, 'मैं एक बार उनसे मिलने गया था और देखा कि उन्हें तेल से भरे बटाटा वड़े दिए जा रहे थे. मैं घर गया और उनके लिए उनका पसंदीदा खाना तैयार करवाया.'
पिछले साल के विधानसभा चुनावों में राज ठाकरे को उम्मीद थी कि माहिम निर्वाचन क्षेत्र में उनके बेटे अमित ठाकरे के सामने उद्धव ठाकरे उम्मीदवार नहीं उतारेंगे. क्योंकि, जब उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे ने 2019 में पहली बार चुनाव लड़ा था, तब राज ने उनके सामने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था. हालांकि, उद्धव की शिवसेना (यूबीटी) ने माहिम में महेश सावंत को उम्मीदवार बना दिया और त्रिकोणीय मुकाबले में सावंत ने जीत हासिल की. इस सीट पर शिंदे गुट दूसरे स्थान पर रहा, जबकि राज के बेटे अमित तीसरे स्थान पर रहे.
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